कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर मद्रास हाइकोर्ट ने चुनाव आयोग को जैसी कड़ी फटकार लगाई, वैसा पहले कभी देखने को नहीं मिला। अदालत के पास कठोर शब्दों के लिए संभवतः आधार भी था।
अगर चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश (बंगाल, असम, केरल, तमिल नाडु और पुदुचेरी) में विधानसभा चुनावों की घोषणा की तारीख 26 फरवरी के बाद से आयोग के बयान देखे जाएं तो पता चलता है कि कोरोना संक्रमण की देश में आई दूसरी लहर रूपी सुनामी महसूस ही नहीं हुई। चेतते हुए अप्रैल की 22वीं तारीख आ गई। रोचक संयोग यह है कि उसी दिन उसने जैसे ही बंगाल में चुनाव अभियान पर अंकुश लगाए थे, एक घंटे बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी अगले दिन की चार रैलियां रद्द कर दीं। इससे पहले, कांग्रेस और टीएमसी ने कई बार याचिका दायर की कि कोविड की लहर के मद्देनज़र मतदान की तिथियों को फिर से निर्धारित किया जाए। केंद्र के बयान बताते हैं कि उसे चुनावों की घोषणा यानी 26 फरवरी से पहले यह अंदाजा था कि तमिलनाडु और केरल में कोविड के केस हर रोज़ बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन आयोग ने उन सावधानियों का एलान किया जो उसने बिहार चुनाव के वक्त जारी की थीं, जबकि बिहार चुनाव के वक्त कोरोना ढाल पर आ चुका था।

एक दिन बाद यानी 27 फरवरी को केंद्र ने बंगाल को लेकर भी खतरे का निशान दिखा दिया। वहां भी कोविड के मामले बढ़ते जा रहे थे। 31 मार्च आते-आते बंगाल में दैनिक संक्रमण की संख्या 982 हो चुकी थी। 10 दिन पहले यह मात्र 320 थी। अप्रैल में टीएमसी ने कई बार अनुरोध किया कि बाकी चरणों के मतदान एक ही दिन करा लिए जाएं। 15 अप्रैल को आयोग ने साफ कर दिया कि ऐसा नहीं होगा।
वह दिन था- 16 अप्रैल, जब आयोग ने पहली बार माना कि स्थिति अभूतपूर्व है। उसने शाम सात से सुबह दस बजे के बीच चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी। तब तक दैनिक संक्रमण संख्या दो लाख पार कर चुकी थी। इसी के साथ उसने बाद वाले 22, 26 और 29 अप्रैल वाले चरणों के लिए मतदान पूर्व का शांतिकाल 48 से बढ़ा कर 72 घंटे कर दिया। तब तक बंगाल में नए संक्रमण सात हजार का अंक छू रहे थे।

टीएमसी और कांग्रेस ने पुनः मतदान तारीखों में बदलाव का प्रयास किया। टीएमसी ने वही बाकी चरण एक बार कराने की बात कही तो कांग्रेस ने रमजान तक मतदान स्थगित करने की सलाह दी। कांग्रेस का तर्क था कि इस मोहलत में कोरोना लहर धीमी पड़ जाएगी। लेकिन आयोग नहीं माना। 21 तारीख को उसने जवाब दिया जिसमें कानूनी और संसाधनों की अड़चन का हवाला दिया गया था। इस समय तक बंगाल में दैनिक संक्रमण दस हजार हो चुके थे। यह संख्या एक अप्रैल से दस गुनी थी।
चुनाव आयोग के एक पूर्व अधिकारी का मानना है कि तीन नहीं कम से कम अंतिम दो चरणों के मतदान एक साथ कराए जा सकते थे, क्योंकि दोनों की अधिसूचना एक ही तारीख 31 मार्च को जारी हुई थी। लेकिन आयोग के एक मौजूदा अधिकारी का मानना है कि ऐसा करना कानूनी रूप से भले ही संभव हो, दो चरणों की 70 सीटों पर इतने कम समय में कराना बहुत कठिन बात है।
