आगामी विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है। लेकिन चुनाव के पहले माकपा व कांग्रेस जिस तरह से करीब आ रहे हैं और सीटों का बंटवारा हो रहा है, इससे जीत के प्रति फिर से आशावादी तृणमूल कांग्रेस का खेल बिगड़ सकता है। इसके साथ ही सीटों के बंटवारे से पैदा हुए असंतोष से भी इसे खतरा है।

हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व अन्य तृणमूल नेताओं के बयान से भी पार्टी की असहजता साफ झलक रही है। चुनाव आयोग द्वारा छह चरणों में सात दिन चुनाव कराने की घोषणा ने जले पर नमक का काम किया है। चुनाव के पहले उभरी नई परिस्थिति में तृणमूल कांग्रेस की बौखलाहट साफ झलक रही है। समझौते के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की बयानबाजी तेज हो गई है। विधानसभा चुनाव कांग्रेस व तृणमूल ने साथ मिल कर लड़ा था, लेकिन यूपीए (दो) सरकार से तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापसी के बाद राज्य से भी कांग्रेस तृणमूल सरकार से अलग हो गई थी। उसके बाद से तृणमूल कांग्रेस ने अकेले ही पंचायत चुनाव, नगरपालिका चुनाव व लोकसभा चुनाव लड़ा और उसे बढ़त मिली। कांग्रेस व वाममोर्चा भी अलग-अलग लड़े और उनके निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटती गई। कांग्रेस व वाममोर्चा के कई निर्वाचित विधायक व प्रतिनिधि तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।

पंचायत चुनाव, लोकसभा चुनाव व नगरपालिका चुनाव में अगर तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन देखें, तो यह साफ लगता है कि विधानसभा चुनाव में तृणमूल की जीत आसान होगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2014 में 42 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 34 सीटें हासिल की थी। वोट फीसद 39.86 था। विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से उसके सीटों की संख्या 214 होनी चाहिए थी। वहीं वाममोर्चा 29.76 फीसद मत के साथ दो लोकसभा सीट (विधानसभा क्षेत्र के अनुसार 28 सीटें), कांग्रेस 8.68 फीसद मत के साथ चार लोकसभा सीटें (27 विधासनभा सीटें) और भाजपा 17.01 फीसदी मत के साथ दो सीटें (25 विधानसभा सीटें) पर जीत हासिल की।

अगर इस आंकड़े से मापदंड तय किया जाए, तो तृणमूल की जीत तय लगती है, लेकिन इस चुनाव के पूर्व राजनीतिक परिस्थिति में बदलाव आया है? कांग्रेस व वाममोर्चा नजदीक आए हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा थी। इसका फायदा राज्य में भाजपा को मिला था, नगर निगम चुनाव में भाजपा के मतों का फीसद का घटना इसका उदाहरण है। अब जब कांग्रेस व वाममोर्चा के बीच अलिखित समझौता हो रहा है। उसमें वाममोर्चा के 29.76 मत और कांग्रेस के 8.68 फीसद मत आपस में मिलते हैं और तृणमूल विरोधी मत एकजुट होता है, तो मत का प्रतिशत 38.44 फीसद के आसपास होने की संभावना है।

लोकसभा चुनाव 2014 में तृणमूल के मतों का प्रतिशत 39.86 फीसद था। ऐसी स्थिति में वाममोर्चा व कांग्रेस के नजदीक आने पर विधानसभा चुनाव रोचक हो सकता है और यह तृणमूल कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है।