मनोज कुमार मिश्र
जो वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव में नहीं हो सका, वह 2024 के आम चुनाव में हो गया। 2019 में भी कांग्रेस के कई नेता आम आदमी पार्टी (आप) से दिल्ली में सीटों पर समझौता करना चाहते थे। मगर, कांग्रेस की वरिष्ठ नेता व दिल्ली की लगातार 15 साल मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के विरोध के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। शीला दीक्षित खुद दिल्ली उत्तर पूर्व लोकसभा से चुनाव लड़ीं और न केवल उस सीट पर बल्कि पूरी दिल्ली में कांग्रेस को आप के मुकाबले ज्यादा वोट मिले। मगर, इस बार कांग्रेस और आप के बीच लोकसभा सीटों को लेकर हुआ समझौता दोनों दलों के लिए एक नई राजनीति की शुरुआत है।
अब यह सभी को पता है कि वर्षों तक दिल्ली की राजनीति में शीर्ष पर रहने वाली कांग्रेस पिछले दस साल में आप के चलते ही हाशिए पर पहुंच गई। बावजूद इसके दोनों दलों के बीच इस बार कई राज्यों में हुए समझौते को राजनीति में एक अवसर की तरह देखा जा रहा है। दिल्ली में कांग्रेस के पास खोने के लिए अब ज्यादा कुछ बचा नहीं है, अगर कोई लोकसभा सीट उसे मिलती है तो राजधानी में फिर से खड़ा होने के लिए उसका मजबूत आधार तैयार हो जाएगा।
कथित शराब घोटाले समेत अन्य मामलों में फंसी आप को अगर जनसमर्थन मिला तो उसकी राजनीति फिर आगे बढ़ने लगेगी। अभी दिल्ली के मुख्यमंत्री व आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है। शराब घोटाले में जो नेता जेल गए, उन्हें जमानत नहीं मिल रही है।
वहीं, चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में तीस जनवरी को जो कुछ हुआ, उससे भाजपा की साख को बट्टा लगा है। पेश मामले में चुनाव अधिकारी ने आप के मेयर के पक्ष में आए आठ मतों को गलत तरीके से अवैध घोषित करके भाजपा के मेयर पद के उम्मीदवार मनोज सोनकर को विजयी घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल नतीजे बदलने का निर्देश दिया, बल्कि चुनाव अधिकारी अनिल मसीह के खिलाफ कारर्वाई करने के आदेश भी दिए।
इस घटना से भाजपा को बैकफुट पर आना पड़ा और आप आक्रामक हो गई। संयोग से इस घटना को विपक्षी दलों ने भी ठीक से उठाया और संकट झेल रही आप ने कांग्रेस से गठबंधन करके सकारात्मक संकेत दे दिया। आप ने अपने हिस्से की हरियाणा की एक और दिल्ली की चार लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।
वैसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के एलान और विपक्षी गठबंधन के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रास्ता बदल लेने से विपक्षी गठबंधन बेअसर होने लगा था। मगर, अब आप और कांग्रेस का गठबंधन विपक्षी दलों के लिए अच्छा संकेत माना जा रहा है। पंजाब और दिल्ली में सरकार में होने के चलते राज्य सभा में तो आप के सदस्यों की संख्या दस है, लेकिन लोकसभा में एक ही सदस्य है।
आप के लिए लोकसभा में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए भी कांग्रेस या दूसरे दलों से तालमेल जरूरी है। इसकी शुरुआत उन्होंने कर दी है। दो-तीन महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव से थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर दे तो कांग्रेस के दिन वापस लौटने लगेंगे। उसे सात सीटों में से तीन सीट मिली है। आप के लिए भी लोकसभा चुनाव उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर जनमत संग्रह बनने वाला है।