झारखंड की राजनीति में उस वक्त हलचल मच गई जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रस्तावक मंडल मुर्मू पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप लगा। आमतौर पर प्रस्तावक का काम नामांकन पर हस्ताक्षर करना भर होता है, लेकिन इस मामले में मुर्मू की भूमिका ने सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को सकते में डाल दिया। पार्टी को शक हुआ कि संथाल विद्रोह के नायक सिद्धो-कान्हू के वंशज मुर्मू शायद विपक्षी खेमे के करीब जा रहे हैं। इस आशंका में मुर्मू की गाड़ी का पीछा किया गया और उन्हें हिरासत में लिया गया। मामला इतना गंभीर हो गया कि चुनाव आयोग को दखल देना पड़ा। इस घटना में झारखंड के गिरिडीह में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रस्तावक मंडल मुर्मू की भूमिका को लेकर बवाल मच गया।

प्रस्तावक का काम चुनावी नामांकन में उम्मीदवार के पक्ष में हस्ताक्षर करना होता है

दरअसल प्रस्तावक का काम चुनावी नामांकन में उम्मीदवार के पक्ष में हस्ताक्षर करना होता है, लेकिन यहां मामला तब गर्मा गया जब जेएमएम को संदेह हुआ कि मुर्मू का झुकाव बीजेपी की ओर हो रहा है। रविवार दोपहर इस संदेह के चलते कई घटनाएं हुईं और यह मंगलवार तक चलता रहा। इस मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हस्तक्षेप करना पड़ा।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रस्तावक मंडल मुर्मू के बीजेपी के कुछ नेताओं से मिलने की खबर ने जेएमएम में बेचैनी पैदा कर दी। आशंका थी कि बीजेपी के साथ मिलकर मुर्मू सोरेन की उम्मीदवारी पर असर डाल सकते हैं। इसी डर के चलते रविवार को उनकी गाड़ी का पीछा किया गया और पुलिस ने गिरिडीह के डुमरी में उन्हें रोक लिया। इसके बाद मुर्मू और उनके साथी को कुछ समय के लिए हिरासत में भी रखा गया।

गिरिडीह पुलिस के कार्रवाई पर सवाल, गाड़ी रोकने का वीडियो रिकार्डिंग भी नहीं कराया

मंगलवार को इस मामले पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने झारखंड के मुख्य सचिव और डीजीपी को फटकार लगाई। उन्होंने गिरिडीह पुलिस के इस कार्रवाई पर सवाल उठाए, जिसमें बिना वीडियो रिकॉर्डिंग किए मुर्मू की गाड़ी को रोका गया। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि अगर वाहन चेकिंग में कुछ आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिले, तो गाड़ी छोड़ देनी चाहिए। लेकिन यहां मुर्मू और उनके साथी भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) नेताओं को हिरासत में लेकर पुलिस स्टेशन ले जाया गया।

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इस मामले में मुर्मू ने भी अपनी सफाई दी। उन्होंने यह तो माना कि वे बीजेपी नेताओं से मिले थे, लेकिन उन्होंने अपने “अपहरण” या जबरदस्ती कहीं ले जाने की बात से इंकार कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि बतौर प्रस्तावक उनके पास किसी से भी मिलने की आजादी है और यह जरूरी नहीं कि वे सिर्फ जेएमएम के संपर्क में रहें।

मुर्मू की बैकग्राउंड भी इस मामले को और खास बनाती है, क्योंकि वे संथाल विद्रोह के नायक सिद्धो-कान्हू के वंशज हैं, जो 1855 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़े थे। ऐसे में उनका किसी भी पार्टी के समर्थन में होना दोनों ही पक्षों के लिए महत्वपूर्ण है।

इस घटनाक्रम में बीजेपी की भी भूमिका उजागर हुई। बीजेपी के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने इस घटना का वीडियो पोस्ट किया और दावा किया कि मुर्मू उनसे मिलने जा रहे थे। दुबे के अनुसार, मुर्मू और वे झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा लेकर चर्चा कर रहे थे, जिसे बीजेपी चुनावी प्रचार का मुख्य मुद्दा बना रही है।

जेएमएम ने इस पूरे मामले पर चुनाव आयोग को पत्र लिखा और बीजेपी पर मिलीभगत का आरोप लगाया। पार्टी का कहना है कि मुर्मू के बीजेपी से जुड़ने से सोरेन की उम्मीदवारी पर असर पड़ सकता है। बीजेपी ने भी जेएमएम के आरोपों पर पलटवार किया और साफ कहा कि मुर्मू का अपहरण नहीं हुआ था।