5th Ramnath Goenka Lecture: कोरोना महामारी के बाद विश्व ने कई चुनौतियों का सामना किया है। ऐस में भारत ने इन चुनौतियों से निपटने में पूरी दुनिया के सामने एक अहम भूमिका निभाई है। बिल गेट्स ने बुधवार को कहा कि कोविड महामारी के पहले 25 हफ्तों में वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र की 25 साल की प्रगति नष्ट हो गई और तीन साल बाद, अधिकांश देशों की स्वास्थ्य प्रणालियां अभी भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं आई हैं। उन्होंने कहा कि महामारी ने भारत में इनोवेशन को आगे बढ़ाया है।
गेट्स ने यहां पांचवें रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में कहा कि टीका विकास और डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा मंच के अपने कीर्तिमान के साथ भारत में ‘नवाचार और सरलता’ के केंद्र के रूप में विकसित होने की क्षमता है ताकि ‘वैश्विक साझेदारी के नए युग’ की शुरुआत की जा सके जो दुनिया की बड़ी से बड़ी चुनौतियों से पार पा सकता है।
विषमताओं को पाटने के लिए नवाचार की ताकत और ‘नवाचार में वैश्विक स्तर पर बड़ी उछाल’ में भारत की भूमिका को रेखांकित करते हुए गेट्स ने कहा, ‘जब मैं माइक्रोसाफ्ट में था, तो हमने 1998 में यहां एक विकास केंद्र स्थापित करने का विकल्प चुना। हमने ऐसा इसलिए किया क्योंकि हम जानते थे कि भारत वैश्विक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाने जा रहा था न केवल नई सफलताओं के लाभार्थी के रूप में, बल्कि उनके एक नवप्रवर्तक के रूप में भी। इसके साथ ही सफलताओं के पैमाने के रूप में भी। भारत उच्च गुणवत्ता वाले लेकिन लागत प्रभावी नवाचारों को विकसित कर सकता है और उन्हें तेजी से अपना सकता है। टीके इसका प्रमुख उदाहरण हैं।’
गेट्स ने कहा, जब भी जलवायु परिवर्तन या स्वास्थ्य देखभाल में दुनिया की बड़ी चुनौतियों से पार पाने की बात जब आती है तो भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है, जैसा कि रोटावायरस टीके जैसे कम लागत वाले नवाचारों ने वैश्विक स्तर पर जीवन बचाए और अपशिष्ट से जैव ईंधन एवं उर्वरक बनाने जैसे किफायती समाधानों से जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़ा काम हुआ।
लेखक, जनहितैषी, निवेशक, प्रौद्योगिकी अन्वेषक और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष एवं ट्रस्टी ने द न्यूयार्क टाइम्स के पहले पन्ने के एक लेख को उद्घृत करते हुए अपने व्याख्यान की शुरुआत की, जिसमें हर साल दस्त से मरने वाले 30 लाख बच्चों के बारे में बताया गया था, जिनमें से 90% विकासशील देशों से थे।
उन्होंने कहा कि उनके पास अपनी नवजात बेटी के लिए चिंताओं की एक सूची थी, लेकिन दस्त उनमें से नहीं था। उन्होंने उन हालातों से लेकर एक ऐसी स्थिति तक भारत की यात्रा के बारे में बात की, जहां देश में एक साल की उम्र के 83% बच्चों को रोटावायरस टीके मिलते हैं, जिससे हर साल 200,000 जिंदगियां बचाई जा रही हैं।
गेट्स ने कहा कि भारत में बचपन में टीकाकरण का स्तर महामारी से पहले के स्तर पर वापस आ रहा है, लेकिन कई अन्य देशों के लिए इसे पटरी पर आने में तीन साल और लग सकते हैं। उन्होंने कोविड-19 के दौरान नवाचारों और सस्ती किट विकसित करने एवं परीक्षण को बढ़ाने की भारत की क्षमता के बारे में बात की।
बाद में, द इंडियन एक्सप्रेस के कार्यकारी निदेशक अनंत गोयनका के साथ बातचीत में, नवाचार को प्रोत्साहित करने और प्रौद्योगिकी के साझाकरण में संतुलन के बारे में पूछे जाने पर, गेट्स ने कहा कि इस क्षेत्र में एक ‘प्रकार का आदर्श’ समाधान मौजूद है। उन्होंने कहा कि कंपनियों के लिए निवेश की वापसी मुख्य रूप से अमीर देशों में बिक्री से आती है, कुछ हद तक मध्यम आय वाले देशों से, और कम आय वाले देशों के लिए कीमत वही होनी चाहिए जो दवा बनाने की लागत है। जलवायु प्रौद्योगिकियों के लिए, बाजार प्रतिस्पर्धा और राजनीतिक प्रक्रियाएं ‘शुरू होंगी।’
उन्होंने कहा कि बड़ी दवा कंपनियों ने अविश्वसनीय नवाचार किए हैं, मोटापे की दवाओं की नई श्रेणी ले आई हैं और अल्जाइमर्स की दवा के लिए अनुसंधान जारी रखा है, और इसलिए ‘मैं चिकित्सा नवाचार में लाभ के मकसद से छुटकारा नहीं पाना चाहता हूं।’जलवायु संकट पर गेट्स ने कहा, ‘अधिकांश उत्सर्जन अमीर देशों से होते हैं और फिर भी अधिकांश नुकसान मध्यम आय और भूमध्य रेखा के पास स्थित निम्न आय वाले देशों को होता है। यह अतुलनीय अन्याय है। और, भले ही यह आप को प्रभावित कर रहा है, हमें तुरंत कार्रवाई करने की आवश्यकता है, हमें बहुत बड़े पैमाने पर कार्य करने की आवश्यकता है।’
गेट्स ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के साथ की चुनौतियों में से एक ‘ग्रीन प्रीमियम’ है जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के बगैर निर्मित उत्पादों के साथ आती हैं। उन्होंने कहा, ‘यदि आप हरित जेट ईंधन खरीदने की कोशिश करते हैं, तो यह दोगुना महंगा है। यदि आप उत्सर्जन के बगैर सीमेंट खरीदना चाहते हैं, तो यह दोगुना महंगा है।
अब कोई कह सकता है कि जलवायु महत्त्वपूर्ण है, इसलिए चलो किसी को उस अतिरिक्त लागत के लिए चेक लिखने के लिए कह दें। लेकिन दुख की बात है कि यह एक वर्ष में खरबों डालर होगा। और, कोई निधि नहीं है … यहां तक कि अमीर देशों में भी,’ उन्होंने कहा कि जलवायु संकट एक नवाचार चुनौती है जो हरित प्रीमियम को कम कर रही है।
इससे पहले अपने स्वागत भाषण में द इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक राज कमल झा ने कहा कि गेट्स आए दिन के स्थायी सवालों के लिए ‘विज्ञान और उम्मीद’ लाए हैं। झा ने उनकी इस टिप्पणी का हवाला देते हुए कि ‘नवोन्मेष एक हथौड़ा है और मैं इसे दिख रही हर कील पर इस्तेमाल करूंगा,’ झा ने कहा कि गेट्स ने शिक्षा से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य तक जो कीलें देखीं, वे ‘सामाजिक बदलाव और आम जनता की भलाई का विस्तार करने की राह में आड़े आ रही थीं।’
महामारी के बाद यह पहला रामनाथ गोयनका व्याख्यान था। इंडियन एक्सप्रेस के संस्थापक के नाम पर शुरू की गई इस व्याख्यानमाला को आरबीआइ के गवर्नर रहे रघुराम राजन, भारत के राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी, पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और विदेश मंत्री एस जयशंकर संबोधित कर चुके हैं।
जलवायु परिवर्तन पर गेट्स ने कहा कि चुनौती ‘बड़े पैमाने पर’ नवाचार की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दुनिया को हरित होने के लिए बड़ी कीमत चुकाए बिना शुद्ध-शून्य उत्सर्जन मिले।उन्होंने कहा, ‘यह अन्याय है कि जो लोग जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं, वे इससे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। उन्होंने कहा, मैं विश्व को बेहतर बनाने में नई प्रौद्योगिकियों की क्षमता को लेकर अपने जीवन में इतना कभी आशावादी नहीं रहा।’