अगले महीने जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में चुनाव होने जा रहे हैं। कुछ हफ्तों बाद महाराष्ट्र और झारखंड में भी इलेक्शन है। अगले साल की शुरुआत में दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव है। यानी अगले कुछ महीने चुनावी रहेंगे। राजनीतिक दलों के नेता इस दौरान काफी व्यस्त रहेंगे। ऐसे में खबरों में रहने के लिए बयानबाजी करते रहना भी जरूरी है। कई नेता बयानबाजी करके चर्चा में हैं तो कई पर बड़बोलापन के लिए तलवारें भी लटक रही हैं। जिनको अपने दलों को आगे ले जाना है, वे गठबंधन की कोशिश में लगे हैं।

चिराग की चमक

चिराग पासवान को लेकर भाजपा आलाकमान की बेचैनी बढ़ी है। चिराग केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। वे कई बार राजग सरकार की नीतियों के उलट बयानबाजी कर चुके हैं। केंद्र सरकार के बड़े सरकारी पदों पर निजी क्षेत्र के लोगों की सीधी भर्ती का तो उन्होंने खुलकर विरोध किया था। नतीजतन सरकार को नीति वापस लेनी पड़ी। जातीय जनगणना के मुद्दे पर कभी नीतीश कुमार सबसे ज्यादा मुखर थे। तब उनका राजद से गठबंधन था। उन्होंने सर्वे के नाम पर बिहार में जातीय गणना कराकर उसके आंकड़े भी जाहिर किए थे। पर अब राजग में आ जाने के बाद नीतीश इस मुद्दे पर मुखर नहीं हैं।

मुखर चिराग पासवान ज्यादा हैं। कभी खुद को प्रधानमंत्री का हनुमान बताने वाले चिराग ने पिछले दिनों अपने 2021 के दर्द को भी बयां किया। पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी पार्टी के सारे सांसद तोड़ लिए गए थे। हमला प्रत्यक्ष रूप से बेशक चाचा पशुपति कुमार पारस पर रहा हो पर परोक्ष रूप से तो भाजपा पर ही माना जाएगा। भाजपा भी भटके हुए लोगों को राह पर लाना जानती है। अमित शाह से इसी हफ्ते हुई पशुपति कुमार पारस की मुलाकात बानगी है। विकल्प तो पहले की तरह चिराग के सारे सांसदों को तोड़ने का भी है। चिराग की रणनीति तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए गठबंधन में ज्यादा सीटें पाने की ही है।

चेतावनी के बाद चित

आंध्र में पिछली बार वाइएसआर कांग्रेस की सरकार थी और जगन मोहन रेड्डी मुख्यमंत्री थे तो सहयोगी दल न होने पर भी वे पूरे पांच साल केंद्र की भाजपा सरकार के संकट मोचक साबित हुए। रेड्डी ने पिछले दिनों भाजपा को चेतावनी दी थी कि वह तेलगुदेशम के चक्कर में वाइएसआर कांग्रेस की अनदेखी न करे। वाइएसआर कांग्रेस के भी 15 सांसद ठहरे। लोकसभा में चार रह गए तो क्या राज्यसभा में तो 11 हैं। तेलगुदेशम का तो उच्च सदन में एक भी नहीं। इस चेतावनी का भाजपा पर तो कोई असर होना ही नहीं था

अलबत्ता चंद्रबाबू नायडू ने रेड्डी के दो राज्यसभा सांसदों से इस्तीफा दिला उन्हें पहला झटका जरूर दे दिया। दोनों तेलगुदेशम में वापसी कर रहे हैं। उपचुनाव में राज्यसभा की दोनों सीटें सत्तारूढ़ पार्टी होने के कारण तेलगुदेशम को जाएंगी। बेचारे जगन मोहन रेड्डी इन हालात में कैसे सुरक्षित रख पाएंगे अपने घर को।

पत्रकारों को पढ़ने की सलाह

कभी-कभी वह मौका भी आता है जब राजनेता पत्रकारों को पढ़ाई की अहमियत बताते हैं। पत्रकारों को पढ़ने की सलाह देते हैं। अरुणाचल प्रदेश के शिक्षा पुस्तकालय मंत्री पासंग दोरजी सोना ने पत्रकारों से अपनी पेशेवर विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए किताबें पढ़ने की सलाह दी। अरुणाचल प्रेस क्लब में एक नए पुस्तकालय खंड के उद्घाटन पर सोना ने कहा कि पढ़ने की आदत बचपन से ही विकसित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों को अच्छी तरह से जानकारी रखने में पढ़ना अहम भूमिका निभाता है, यह गुण मीडिया के लोगों के लिए विशेष रूप से अहम है। पढ़ना न केवल मस्तिष्क को समृद्ध करता है, बल्कि पेशेवरों को अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता लाने के लिए जरूरी है।

महा विवाद

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति में जारी खींचतान जग जाहिर है। भाजपा विधानसभा चुनाव में अपना मुख्यमंत्री चाहती है तो एकनाथ शिंदे अपने समर्थकों से लगातार कह रहे हैं कि अमित शाह ने चुनाव बाद भी उन्हें ही मुख्यमंत्री रखने का भरोसा दिया है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार से शिंदे की शिवसेना की कतई पटरी नहीं बैठ रही। अजित पवार को भाजपा के साथ लाने वाले उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हैं। इस फैसले को लेकर वे भाजपा और संघ परिवार के निशाने पर हैं। अजित पवार की लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद महायुति में हैसियत घटी है।

सिंधु दुर्ग में शिवाजी की 35 फुट ऊंची प्रतिमा पिछले हफ्ते गिर गई तो नया विवाद पैदा हो गया। विपक्षी महाविकास अघाड़ी ने तो इसे मुद्दा बनाया ही, महायुति के अंतरविरोध भी सामने आ गए। कांस्य की इस प्रतिमा का खुद प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव से पहले लोकार्पण किया था। शिवाजी मराठी अस्मिता के नायक हैं। विपक्षी गठबंधन इसे शिवाजी महाराज का अपमान और भ्रष्टाचार व चुनाव में फायदा उठाने की हड़बड़ी के कारण पर्याप्त सावधानी बरते बिना बनाई गई प्रतिमा बता रहा है।

शुरू में मुख्यमंत्री शिंदे ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि यह नौसेना की लगवाई प्रतिमा थी, महाराष्टÑ सरकार की नहीं। अजित पवार ने पहल कर इसके लिए माफी मांगी तो फिर शिंदे को भी माफी मांगनी पड़ी। यहां तक कि प्रधानमंत्री महाराष्ट्र गए तो उन्होंने भी माफी मांगी।

उम्मीद पर वार

विधानसभा चुनाव से पहले ही हरियाणा की राजनीति गरमा गई है। यह तो लगभग साफ ही दिख रहा है कि यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होगा। जाटों के बाद सूबे में सबसे ज्यादा संख्या दलितों की है। लिहाजा हरियाणा भाजपा ने कांग्रेस को चुनौती दी है कि अगर वह दलितों से वाकई प्रेम करती है तो अपनी दलित नेता सैलजा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे। लेकिन, कांग्रेस ने पहले ही घोषणा कर दी है कि किसी भी सांसद को विधानसभा चुनाव नहीं लड़ाएगी। इससे मुख्यमंत्री पद के दो दावेदारों सैलजा और रणदीप सुरजेवाला के अरमानों पर पानी फिर गया है। सैलजा तो खुलेआम कह चुकी हैं कि मुख्यमंत्री बनना उनकी हसरत है। कांगे्रस ने एक तरह से भूपिंदर सिंह हुड्डा को बना रखा है मुख्यमंत्री पद का अपना उम्मीदवार। भाजपा ने कांगे्रस को यह कहकर चिढ़ाया है कि उसने तो एक ओबीसी नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है, कांग्रेस दलित सैलजा को करके दिखाए। भाजपा भूल रही है कि उसने अभी तक देश में कहीं भी किसी भी दलित को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। फिर वह सैलजा की उम्मीदों पर वार क्यों कर रही है?

संकलन: मृणाल वल्लरी