बढ़ते कर्ज के बोझ के कारण वहां महंगाई चरम पर है और विदेशी मुद्रा भंडार गिर चुका है। पाकिस्तान आर्थिक बदहाली की कगार तक पहुंच गया है। भारत के दूसरे पड़ोसी मुल्क नेपाल की बदहाली के संकेत मिलने लगे हैं। कहा जा रहा है कि अगर नेपाल सरकार ने ‘ऋण जाल’ कूटनीति को लेकर बेहद सावधानी नहीं बरती, तो उसे भी श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे आर्थिक हालात का सामना करना पड़ सकता है।

सबसे अधिक आबादी वाला दुनिया का पांचवां देश पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक संकट जैसी विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है और ये समस्याएं इसे श्रीलंका जैसी स्थिति में धकेलने को तैयार खड़ी हैं। कोविड-19 महामारी की मार से उबर रहे पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ ने न केवल भूमि को, बल्कि इसकी जर्जर अर्थव्यवस्था को भी डुबा दिया। एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट की ओर से किए गए नए अध्ययन के अनुसार, देश का ऋण सतत ऋण बन चुका है।

पाकिस्तान पर ऋण की तलवार लटक रही है, जो इसकी आयात-आधारित अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है तथा इसके दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम होंगे। पाकिस्तान का बाहरी ऋण और देयता करीब 130 अरब अमेरिकी डालर है, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 95.39 फीसद है।

आर्थिक तंगी झेल रहे पाकिस्तान को अगले 12 महीनों में करीब 22 अरब डालर और साढ़े तीन साल में कुल 80 अरब डालर वापस करना है, जबकि इसका विदेशी मुद्रा भंडार केवल 3.2 अरब डालर है तथा इसकी आर्थिक विकास दर महज दो फीसद है। फिलहाल पाकिस्तान अपने केंद्रीय बजट का लगभग आधा हिस्सा ऋण चुकाने में इस्तेमाल कर रहा है।

यद्यपि पाकिस्तान सरकार ने कर्ज का बोझ कम करने के लिए कई प्रकार के प्रयास किए हैं, लेकिन यह आसमान छूती महंगाई की पृष्ठभूमि में काफी नहीं है। पाकिस्तान के ऊपर ऋण का व्यापक बोझ नुकसानप्रद नीतियों और आर्थिक असंतुलन पर दबाव आदि का नतीजा है। इससे निपटने के लिए पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 22 कार्यक्रमों सहित विभिन्न आर्थिक सहयोगों एवं ऋणों पर निर्भरता बढ़ाता रहा है।

देश में सत्ता संभाल चुकी लगातार सरकारें पाकिस्तान को ऋण के चक्रव्यूह से बाहर निकालने के लिए कोई ढांचागत सुधार करने में विफल रही हैं। अल्पावधि के उपाय केवल मौजूदा स्थिति को टाल सकते हैं, जबकि पाकिस्तान को दीर्घकालिक ढांचागत सुधार के उपायों की सख्त जरूरत है। दूसरी ओर, नेपाल के बारे में कहा जा रहा है कि उसके लिए चीन की ऋण कूटनीति ‘ऋण जाल कूटनीति’ में परिवर्तित हो सकती है।

पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के अलावा, नेपाल ने अभी-अभी दो प्रमुख परियोजनाओं – भैराहवा में गौतमबुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और राजधानी काठमांडू में चोभर ड्राई पोर्ट – का निर्माण पूरा किया है। सभी चीन पोषित हैं। इनमें से कोई भी महंगी परियोजना प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रही है।

यदि किसी परियोजना की व्यावसायिक रणनीति अप्रभावी है या बिना कठोर तैयारी के स्थापित की गई है, तो यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भावी पीढ़ियों के लिए बेहद नकारात्मक संदेश है। यहां जोखिम यह है कि देश का राष्ट्रीय ऋण उस समय बहुत अधिक भारी साबित हो सकता है, जब नेपाल को गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे में बड़े निवेश की आवश्यकता हो।

लगाम की कवायद

वित्त वर्ष 2022-2023 के लिए, नेपाल सरकार को आंतरिक ऋण के तौर पर अधिकतम 256 अरब नेपाली रुपए (लगभग दो अरब डालर) जुटाने की अनुमति है। बाहरी कर्ज पर लगाम लगाने का यह फैसला ऐसे समय में सामने आया है, जब श्रीलंका समेत कई देश कर्ज चुकाने में असफल हो रहे हैं। ऐसे में नेपाली अधिकारी चीन से कर्ज लेने में खासी सतर्कता बरत रहे हैं और बेजिंग से ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ पहल के तहत परियोजनाओं के लिए ऋण के बजाय दान का अनुरोध कर रहे हैं।