दिल्ली में स्थित चीनी दूतावास ने भारत की सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के दो सांसदों के ताइवान की राष्ट्रपति के शपथ-ग्रहण कार्यक्रम में शामिल रहने पर कड़ी आपत्ति जताई है। गौरतलब है कि भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी और राहुल कासवान हाल ही में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ताइवान में दोबारा चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बनीं साई-इंग वेन के कार्यक्रम में शामिल थे। दोनों ने इस मौके पर साई को वीडियो संदेश भेजकर बधाई दी थी।

क्या था वीडियो संदेश में?
वीडियो मैसेज में लेखी और कासवान ने कहा था कि ताइवान और भारत लोकतांत्रिक मूल्यों पर विश्वास करते हैं। दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं और एक-दूसरे से आजादी, लोकतंत्र और मानवाधिकार के प्रति सम्मान से जुड़े हैं। पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते भी बढ़े हैं। खासकर व्यापार और निवेश में।” इतना ही नहीं मीनाक्षी लेखी ने राष्ट्रपति साई को अलग से मैसेज भी भेजा, जिसे समारोह में मेहमानों को सुनाया गया।

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चीन को क्या समस्या?
एक समय ब्रिटेन का उपनिवेश रहे ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है। उसने ताइवान को अपने साथ मिलाने के लिए एकीकरण नीति भी बनाई है। हालांकि, ताइवान लगातार खुद को एक स्वायत्त और स्वतंत्र देश बताता है। चीन की नीतियों की वजह से ही दुनिया के ज्यादातर देश अब तक ताइवान के अस्तित्व को नहीं मानते और उसे चीन का हिस्सा बताते हैं। भारत भी अब तक उन देशों में ही शामिल रहा है, जिनके ताइवान से राजनयिक रिश्ते नहीं हैं। हालांकि, भारत की नीतियों में ताइवान के प्रति बदलाव से चीन को समस्या पैदा हो गई है।

इसी को लेकर नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास की काउंसलर लिउ बिंग ने आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि यूएन के चार्टर में ‘वन चाइना’ पॉलिसी ही अंतरराष्ट्रीय नियम का आधार है। भारत भी दोनों देशों के बीच स्थापित हुए द्विपक्षीय रिश्तों के तहत इसी नीति के तहत चलता रहा है। बिंग ने कहा कि भारत का ताइवान के लिए बधाई संदेश गलत संकेत भेजता है। इससे अलगाववादियों को गलत और खतरनाक रास्ते पर जाने का बल मिलेगा। राजनयिक ने यहां तक कहा कि भारत को ताइवान के संबंध में इस तरह के बयानों से बचना चाहिए।

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