शाहबाज शरीफ पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बन चुके हैं। उनके आने से भारत पर पड़ने वाले असर को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए इमरान खान की सरकार गिराने के बाद शाहबाज ने भारत को लेकर बयान दिया कि हम भारत के साथ शांति चाहते हैं, लेकिन कश्मीर मुद्दे के हल के बिना ये संभव नहीं है। इससे माना जा रहा है कि वे पाकिस्तान के मूल रवैए में बदलाव लाने की कोशिश भी नहीं करेंगे।
यह जरूर है कि वे बातचीत का दौर शुरू करने के हीमायती रहे हैं। इमरान खान के दौर में भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत रुक गई है। सार्क जैसा संगठन निष्क्रिय पड़ा हुआ। सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि क्या शाहबाज उस गिरह को खोल सकेंगे। एक अहम सवाल सरकार बनने-बिगड़ने के खेल में पाकिस्तान की सेना और अदालत की भूमिका को लेकर भी उठ रहा है। इमरान खान की सरकार गिरने में सेना और अदालत की सक्रिय भूमिका रही है। इस लिहाज से क्या शाहबाज कुछ नया कर पाएंगे?
कभी तीखे, कभी नरम
शाहबाज ने भारत और कश्मीर को लेकर कई बार विवादित बयान दिया है। अप्रैल 2018 में जब पाकिस्तान में चुनाव चल रहे थे, तब शहबाज ने एक रैली में कहा था, ‘हमारा खून खौल रहा है। कश्मीर को हम पाकिस्तान का हिस्सा बनाकर रहेंगे।’ उसी साल सिंगापुर में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की मुलाकात के संदर्भ में कहा था, ‘अगर अमेरिका और उत्तर कोरिया परमाणु हमले की कगार से वापस लौट सकते हैं तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि भारत और पाकिस्तान ऐसा नहीं कर सकते।’ 2015 में शरीफ ने कहा था कि भारत में कुछ कट्टरपंथी पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते नहीं चाहते हैं।
शाहबाज शरीफ 2013 में भारत दौरे पर आए थे। तब मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे और शाहबाज पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री। प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद उन्होंने साथ मिलकर काम करने की बात कही थी।
अदालत की दखल
पाकिस्तान में वहां की सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद शनिवार देर रात नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ, जिसके बाद इमरान खान की सरकार गिर गई है। इससे पहले भी अदालत ने वहां की सत्ता में बैठे लोगों को अपनी ताकत अहसास कराया है। 1953 में पाकिस्तान में पहली बार तख्तापलट हुआ था। राष्ट्रपति का पद पहले गवर्नर-जनरल का पद हुआ करता था। इस पद पर बैठे गुलाम मोहम्मद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन की सरकार को बर्खास्त कर दिया था, लेकिन संविधान सभा के समर्थन की वजह से वह अपने पद पर बने हुए थे। इनजीमुद्दीन को उनके पद से हटाने के लिए 24 अक्तूबर 1954 को गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने संविधान सभा को भी भंग कर दिया। तब सिंध हाईकोर्ट ने असेंबली के फैसले को रद्द कर दिया था।
अदालत और सेना
वर्ष 1958 में सेना प्रमुख जनरल अयूब खान के कहने पर राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने मार्शल ला लागू कर दिया था। 13 दिन बाद सेना प्रमुख अयूब खान ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। अदालत ने अयूब खान का साथ दिया। लेकिन 1987 में जब जिया-उल-हक ने प्रधानमंत्री मोहम्मद खान जुनेजा को पद से हटाया, तब इसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया था। इसी तरह 1990 में नेशनल असेंबली को भंग कर दिया गया था। बेनजीर भुट्टो की सरकार गिर गई थी। मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले को सही बताया था। 1993 में नवाज शरीफ को हटाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया।
सेना के दबाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद 1999 में तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्तापलट किया। नवाज शरीफ और खुफिया एजंसी के प्रमुख जनरल जियाउद्दीन के बीच इस्लामाबाद में एक गोपनीय बैठक हुई। ये दोनों मिलकर परवेज मुशर्रफ के खिलाफ कदम उठाना चाहते थे। इसका पता लगते ही 12 अक्तूबर 1999 को सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट कर दिया।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने भी परवेज के फैसले को देश के लिए जरूरी बताया। 2013 में नवाज शरीफ ने मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया था। इस मामले में 17 दिसंबर 2019 को पेशावर की स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाई। बाद में लाहौर हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के फैसले को असंवैधानिक करार दिया था। 2017 में पनामा पेपर्स भ्रष्टाचार मामले में नवाज शरीफ का नाम सामने आने पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। शरीफ को सात साल जेल की सजा हुई।संवैधानिक संकट क्यों
पाकिस्तान इस्लामी राष्ट्र है। इस वजह से पाकिस्तान में संविधान पर धर्म हावी रहा है। धार्मिक कट्टरता पाकिस्तान के संवैधानिक संकट की एक बड़ी वजह मानी जाती है। पाकिस्तान में जनरल जिया-उल-हक के समय से ही सेना का नियंत्रण सरकार पर बढ़ता गया। जब से पाकिस्तान में सेना की भूमिका बढ़ी है, वहां सेना की मदद के बिना सरकार का स्थिर बने रहना मुश्किल है।
पाकिस्तान की विदेश नीति 1947 के बाद अमेरिका का पिछलग्गू बने रहने की थी। अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना और सरकार को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया। अमेरिका ने सेना को आर्थिक मदद दी, जिसके बाद अमेरिकी शह पर सेना की सियासत में पैठ बनी। पाकिस्तान के पड़ोस में कई अस्थिर देश- जैसे अफगानिस्तान और ईरान हैं। इसका सीधा असर पाकिस्तान की सरकार पर भी पड़ता है।
क्या कहते हैं जानकार
आज बात पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर होनी चाहिए न कि कश्मीर पर। पीओके के हालात खराब है, वहां की अवाम भारत में मिलना चाहती है, इस पर बात होनी चाहिए।
- मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एके सिवाच
इमरान खान के आने के बाद से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते और भी तल्ख हो गए थे। शाहबाज के आने के बाद कम से कम बातचीत का रास्ता खुल सकता है। हालांकि, दोनों देशों के रिश्तों पर कोई खास प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है।
- मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) संजय मेस्टन