शौर्य, पराक्रम और स्वाभिमान की प्रतीक चंबल घाटी के डाकुओं के आंतक ने भले ही हमारे देश की कई सरकारों को हिलाया हो लेकिन यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि चंबल के डाकुओं ने अग्रेंजी हुकूमत के दौरान आजादी के दीवानों की तरह अपनी देशप्रेमी छवि से देशवासियों के दिलों में ऐसी जगह बनाई कि हम उन्हें स्वतंत्रता दिवस के दिन याद किए बिना रह नहीं पाते हैं। चंबल में आजादी के मतवालों पर शोध कर रहे शाह आलम का कहना है कि डाकुओं ने देश के क्रांतिकारियों को न केवल असलहा व गोला बारूद मुहैया कराया बल्कि उनको छिपने का स्थान भी दिया। बीहड़ में बसे डकैतों के पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिला कर क्रांतिकारियों का साथ दिया लेकिन आजादी के बाद उन्हें कुछ नहीं मिला। राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में चंबल के किनारे 450 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बागी आजादी से पहले रहा करते थे। उन्हें पिंडारी कहा जाता था। पिंडारी मुगलकालीन जमींदारों के पाले हुए वफादार सिपाही हुआ करते थे, जिनका इस्तेमाल जमींदार विवाद को निबटाने के लिए किया करते थे। मुगलकाल की समाप्ति के बाद अंग्रेजी शासन में चंबल के किनारे रहने वाले इन्हीं पिंडारियों ने जीवन यापन के लिए वहीं डकैती डालना शुरू कर दिया और बचने के लिए अपनाया चंबल की वादियों का रास्ता।
चंबल के बीहड़ों में आजादी की जंग 1909 से शुरू हुई थी। चंबल के किनारे बसी हथकान रियासत के हथकान थाने में चर्चित डकैत पंचम सिंह, पामर और मुस्कुंड के सहयोग से क्रांतिकारी पंडित गेंदालाल दीक्षित ने थाने पर हमला कर 21 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया और थाना लूट लिया। इन्हीं डकैतों ने क्रांतिकारियों नें गेंदालाल दीक्षित, अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में सन 1909 में ही पिंहार तहसील का खजाना लूटा और उन्हीं हथियारों से हरदोई से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी रेलवे स्टेशन पर रोक कर सरकारी खजाना लूटा। स्वतंत्रता आदोलंन के दौरान साल 1914-15 में क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल घाटी में क्रांतिकारियों के एक संगठन मातृवेदी का गठन किया। इस संगठन में हर उस आदमी की हिस्सेदारी का आह्वान किया गया जो देश हित मे काम करने का इच्छुक हो।
ब्रह्मचारी नामक चंबल के खूंखार डाकू के मन में देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा हो गया और उसने अपने एक सैकड़ा से अधिक साथियों के साथ मातृवेदी संगठन का सहयोग करना शुरू कर दिया। ब्रह्मचारी डकैत के क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ने के बाद चंबल के क्रांतिकारी आंदोलन की शक्ति काफी बढ़ गई और ब्रिटिश शासन के दमन चक्र के विरुद्धप्रतिशोध तेज हो गया। ब्रह्मचारी अपने बागी साथियों के साथ चंबल के ग्वालियर में डाका डालता था और चंबल यमुना में बीहड़ों में शरण लिया करता था। ब्रह्मचारी ने लूटे गए धन से मातृवेदी संगठन के लिए खासी तादात में हथियार खरीदे। इसी दौरान चंबल संभाग के ग्वालियर में एक किले को लूटने की योजना ब्रह्मचारी और उसके साथियो ने बनाई लेकिन योजना को अमली जामा पहनाए जाने से पहले ही अंग्रेजों को इस योजना का पता चल गया। ऐसे मे अंग्रेजों ने ब्रह्मचारी के खेमे में अपना मुखबिर को भेज दिया और इस मुखबिर ने पड़ाव डाले दल के पूरे खाने में जहरीला पदार्थ डाल दिया।
इस मुखबिर की करतूत का ब्रह्मचारी ने पता लगा कर मुखबिर को मारा डाला लेकिन तब तक अग्रेजों ने ब्रह्मचारी के पड़ाव पर हमला कर दिया। दोनों ओर से काफी गोलियों चलीं। ब्रह्मचारी समेत उनके दल के करीब 35 बागी शहीद हो गए। चकरनगर ब्लॉक प्रमुख के प्रभा मुकेश सिंह का कहना है कि चंबल घाटी का खासा योगदान रहा है आजादी की लड़ाई में। आजादी के दौरान कई ऐसे गांव रहे हैं जिन गांव में अंग्रेज प्रवेश करने को तरसते रहे हैं और ऐसे भी कई गांव रहे हैं जहां पर अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट तक उतार दिया है। चंबल इलाके का कांयछी ऐसा गांव माना गया है जहां पर अंग्रेज अफसर आजादी के दीवानों को खोजने के लिए गांव को ही नहीं खोज पाए।