अगला सप्‍ताह राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्‍याय यात्रा और अयोध्‍या के राम मंद‍िर में प्राण-प्रत‍िष्‍ठा के चलते इत‍िहास में दर्ज होने वाला है। नेताओं, खास कर सत्‍ताधारी बीजेपी पर न‍िर्भर करता है क‍ि इन्‍हें सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराना है या वाद-व‍िवाद, आलोचनाओं, शंकराचार्यों के अपमान जैसी घटनाओं के चलते काले पन्‍नों के साथ दर्ज करवाना है। 

कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ सांसद राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू हो चुकी है। पिछले सप्ताह इम्फाल में यात्रा को झंडी दिखाकर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पदयात्रियों को विदा किया। यह यात्रा 21 मार्च को मुंबई में समाप्त होगी। इस बार की यह यात्रा लगभग 6,800 किलोमीटर की है, जो पैदल और बस द्वारा पूरी की जाएगी। राहुल गांधी ने पदयात्रा के उद्देश्य के बारे में बताया है कि हम आपके ‘मन की बात’ सुनने आए हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि हम अपने मन की बात नहीं, बल्कि आपके ‘मन की बात’ सुनने आए हैं।

रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही चुनावी माहौल बनने लगा है

पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और किरन रिजिजू जैसे नेताओं ने सत्‍ताधारी दल की ओर से मुख्य भूमिका निभाते हुए ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पर कमेंट शुरू कर दिए हैं। अभी तो यात्रा लंबी चलेगी। देखते हैं, इस यात्रा पर किन-क‍िन नेताओं की क्या-क्या प्रतिक्रियाएं आती हैं। अब देश में लगने लगा है कि इसी वर्ष लोकसभा का चुनाव है। माहौल बिल्कुल चुनावी रंग में रंगने लगा है। अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम (22 जनवरी) माहौल को कुछ ज्‍यादा ही राजनीत‍िक और व‍िवादास्‍पद बना रहा है। 

अपने जीवन में मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकते थे श्रीराम

कहते हैं, हमारे श्रीराम नियम नहीं तोड़ सकते थे, मर्यादा नहीं लांघ सकते थे। वह चाहते तो राज्याभिषेक के समय वन गमन की आज्ञा को अन्यायपूर्ण कहकर ठुकरा सकते थे, भरत द्वारा वन से अयोध्‍या वापस लौटने का आग्रह बदली हुई परिस्थितियों में समय की आवश्यकता कहकर मान सकते थे। सुग्रीव के बजाय बाली से मित्रता कर सकते थे, हिरण सोने का हो ही नहीं सकता कह कर सीता के अनुरोध को टाल सकते थे…। लेकिन, यदि वह ऐसा कर लेते, तो ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कैसे कहलाते! 

सनातन धर्म की रक्षा के लिए शंकराचार्य ने की थी ज्योतिर्पीठों की स्थापना

आदि शंकराचार्य यदि भारत में घूम-घूम कर सनातन धर्म की रक्षा के लिए मठों और ज्योतिर्पीठों की स्थापना नहीं करते तो आज सनातन का नामलेवा कोई नहीं बचा होता। भगवान बुद्ध ने उपनिषद के निर्विकार ब्रह्म को देखकर उसे व्यर्थ समझकर छोड़ दिया था। शंकर ने फिर उसी ब्रह्म को स्वीकर किया। उसने सामंती जीवन के गतिरोध, बौद्धों के शून्य को इस प्रकार स्वीकार करके जगत को मिथ्या कहा और बौद्धों के दार्शनिक भूमि को फिर ब्राह्मण धर्म में आत्मसात कर लिया। उसी आदि शंकराचार्यों द्वारा स्थापित शंकराचार्यों को अपमानित किया जाएगा, उनके लिए अनर्गल शब्दों का प्रयोग किया जाएगा, तो फिर उन सनातनियों के लिए मंदिर का क्या महत्व रह जाएगा, क्योंकि श्रीराम तो हर सनातनियों की धमनियों में बहता रक्त हैं। 

कांग्रेस की न्‍याय यात्रा और अयोध्‍या के मंद‍िर में श्रीराम की प्राण-प्रत‍िष्‍ठा ऐसे कार्यक्रम हैं, ज‍िनके चलते अगला सप्‍ताह इतिहास में दर्ज होगा। अब इसे सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराना है या वाद-व‍िवाद, आलोचनाओं, शंकराचार्यों के अपमान जैसी घटनाओं के चलते काले पन्‍नों के साथ दर्ज करवाना है यह बात ज्‍यादा अहम‍ियत रखती है।

भाजपा जो भी करती है, चुनाव जीत कर एक बार फ‍िर सत्‍ता में वापस लौटने के मकसद से। लेक‍िन, ध्‍यान रहे क‍ि हम विशाल भारतवर्ष में रहते हैं, अतः मतभिन्नता तो रहेगी ही, लेकिन होना तो वही चाहिए, जो धर्म के अनुरूप हो।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। यहां व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक के न‍िजी व‍िचार हैं।)