पिछले 11 महीने से भी अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर जारी किसान आंदोलन के बीच संयुक्त किसान मोर्चा ने उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में किसान महापंचायत करने का निर्णय लिया है। इसी मुद्दे पर बातचीत के दौरान राकेश टिकैत ने प्लान बताते हुए कहा कि आसपास के कई लोग वहां आएंगे। साथ ही उन्होंने पिछले दिनों भाजपा की तरफ से जारी किए गए कार्टून में बक्कल तारने की बात पर कहा कि हम आ रहे हैं जो करना है वो कर लें।

पत्रकार अजीत अंजुम के साथ बातचीत के दौरान किसान नेता राकेश टिकैत से जब पूछा गया कि क्या 22 नवंबर को होने वाली महापंचायत की अनुमति मिल गई है। तो उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता, हमने तो अनुमति नहीं ली। इसके बाद जब पत्रकार ने कहा कि बिना अनुमति के तो महापंचायत नहीं की जा सकती है। इसके जवाब में राकेश टिकैत ने कहा कि हम सिर्फ सूचित करते हैं जैसा पिछले 35 सालों से चल रहा है। हम परंपराओं को नहीं तोड़ते हैं।

आगे राकेश टिकैत ने कहा कि यह महापंचायत लखनऊ रेलवे स्टेशन के नजदीक इको गार्डन में होगी। इसमें बहुत सारे किसान आएंगे। नजदीक और आसपास के ज्यादा लोग आएंगे। बाहर और दूर के लोग ट्रेनों से भी जाएंगे। किसान महापंचायत में कई सारे किसान नेता भी शामिल होंगे। राकेश टिकैत के इतना कहने के बाद भी जब पत्रकार ने पूछा कि अगर आपको अनुमति नहीं मिली तो आप क्या करेंगे। इसपर टिकैत ने कहा कि अनुमति तब मिलेगी जब हमने चिट्ठी दिया होगा। हम सिर्फ सूचित करते हैं।

इसके बाद पत्रकार ने किसान नेता राकेश टिकैत से पिछले दिनों उत्तरप्रदेश भाजपा द्वारा जारी एक कार्टून से जुड़ा सवाल पूछा। कार्टून में लिखा गया था कि सुना लखनऊ जा रहे हो तुम, किमें पंगा न लिए भाई… योगी बैठ्या है बक्कल तार दिया करे और पोस्टर भी लगवा दिया करे। साथ ही इसमें राकेश टिकैत की तरह दिखने वाले एक चेहरे को भी दर्शाया गया था। 

बक्कल तारने वाले सवाल के जवाब में राकेश टिकैत ने कहा कि हम 22 तारीख को लखनऊ आ रहे। ग़लतफ़हमी मत पाले। जो तैयारी उनको करनी है, वो कर लें। साथ ही राकेश टिकैत ने कहा कि हम लखनऊ में मीटिंग करने जा रहे हैं। सरकार ने लखीमपुर खीरी में जो वादा किया था वह पूरा नहीं हुआ। अजय मिश्र टेनी की गिरफ़्तारी नहीं हुई और घायलों को पैसा नहीं मिला। धान, मक्का और बाजरे की खरीद भी नहीं हो रही है। ये बड़े सवाल हैं।

गौरतलब है कि दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन को 11 महीने से भी अधिक का समय हो चुका है। इतने दिन बीत जाने के बावजूद अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है। जनवरी महीने के बाद से ही किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है और गतिरोध बना हुआ है। केंद्र सरकार ने आखिरी मीटिंग में तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक निलंबित करने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन किसान संगठनों ने इसे नामंजूर कर दिया था। प्रदर्शनकारी किसान तीनों कानूनों की वापसी को लेकर अड़े हुए हैं। हालांकि कृषि मंत्री ने भी साफ़ कर दिया है कि तीनों कृषि कानून रद्द करने पर कोई बातचीत नहीं होगी।