एनडीए हो या इंडिया, सत्य के लिए नहीं, बल्कि सत्ता के लिए लड़ रहे हैं। सत्य की लड़ाई लड़ने के नाम पर तो एनडीए 2014 में आई थी, लेकिन भ्रष्टाचार और कुशासन की जितनी कमी और आरोप भाजपा सरकार पर लगे, वैसा तो आज आजादी के 75 वर्ष बाद तक किसी अन्य दलों पर नहीं लगाए गए थे। जिस तरह से देश की निरीह जनता को अपने लच्छेदार भाषणों से, अपने वादों या फिर जुमलों से मोहित किया गया कि वह भ्रमित हो गई और अपने खुले विचारों से उनका स्वागत करते हुए उन्हें सत्ता के सर्वोच्च पद पर बैठाया। लेकिन, यह क्या? वैसे भारतीय मानसिक रूप से बड़े मजबूत होते हैं, लेकिन दिल के उदार और साफ भी होते हैं। शायद यही वह वजह भी है कि चतुर नेताओं द्वारा बार-बार ठगे भी जाते रहे हैं। 

जनता के सामने अब NDA बनाम I.N.D.I.A. का विकल्प

अभी लगभग दस वर्षों से देश में जो कुछ हुआ है और आज भी हो रहा है, उसे पूरे विश्व ने देखा है और हमने भोगा है, इसलिए किसी के कहने या लिखने-बोलने पर न जाकर, याद कीजिए भाजपा द्वारा आपके साथ किए गए वादे, जिसमें उनके जरिये नाना तरह के सब्जबाग दिखाए गए थे। आप सोचकर देखिए कि क्या वे सभी वादे, जिसे बाद में उन्होंने खुद ‘चुनावी जुमला’ स्वीकार किया, पूरे किए? क्या आपके खाते में पंद्रह लाख रुपए आए? क्या आपके बच्चों या आपके आसपास के किसी युवा को नौकरी मिली?

यदि  हां, तो फिर आप भाग्यवान हैं और आपको वर्तमान केंद्रीय सरकार पर गर्व करना चाहिए और यदि नहीं… तो फिर उस प्रतिनिधि से आपको इस बार पूछना चाहिए कि फिर उन्हें बरगलाने, जुमलों से शिकार करने क्यों आए हैं? क्योंकि, आपके एक वोट की ताकत से चुनकर सत्ता में पहुंचने के बाद ये आपको अपनी सुरक्षा के नाम पर अपने नजदीक तक नहीं फटकने देते हैं। 

“BJP के खिलाफ बोलने वाले देशद्रोही और भ्रष्ट हैं”

देश के आमलोगों में यह बात फैलाई गई कि इस देश में भाजपा या उनके चंद कथित ‘शीर्ष’ नेताओं का विरोध करने वाले लोग देशद्रोही हैं और वे भ्रष्ट भी हैं। इसलिए उन्हें देश में भ्रष्टाचार करने से रोका जाए। फिर कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया गया। सरकारी प्रतिष्ठत संस्थाओं का दुरुपयोग शुरू किया गया। इन केंद्रीय संस्थाओं के नाम पर विपक्ष के नेताओं को डराया गया, गलत-सही आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद किया जाने लगा।

कुल मिलाकर प्रयास यह किया गया कि देश को केवल यह पता लग सके कि भाजपा ही देश को भ्रष्टाचारियों से मुक्त करा सकती है। केवल वही दूध से धुली ईमानदार पार्टी है। शेष सभी देश विरोधी हैं। उन्हें चिह्नित करके डराया गया, जेल भेजा गया। यदि तथाकथित आरोपी डरकर उनके दल में उनकी शर्तों पर आत्मसमर्पण कर दिया, तो देखते ही देखते वे देशभक्त और ईमानदार हो गए। फिर उन्हें मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजा जाता है, वे दूध से धुले हुए ईमानदार और देशभक्त हो जाते रहे हैं। आखिर कोई कब तक ईमानदारी के नाम पर यह सब झेले!

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एकजुट करना शुरू किया। पहले उन्होंने व्यक्तिगत रूप से देश के सभी विपक्षी दलों के नेताओं से एक-एक कर मिलना शुरू किया। नीतीश कुमार का प्रयास परवान चढ़ने लगा और व‍िपक्षी नेताओं की पहली बैठक पटना में आयोजित की गई। विपक्षी एकजुटता के इस प्रयास की सत्तारूढ़ दल द्वारा जमकर आलोचना की गई। तरह-तरह के आरोप लगाते हुए कहा गया कि सभी भ्रष्टाचारी वर्तमान ईमानदार सत्तारूढ़ को सत्ता से बाहर करने का झूठा और अपनी जान बचाने का प्रयास किया है जो ताश के पत्तों की तरह जल्द बिखर जाएगा। 

व‍िपक्षी नेताओं की दूसरी बैठक बेंगलुरु में हुई, तो उसमें इसका नामकरण INDIA ( इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलाइंस, भारतीय राष्ट्रीय विकासवादी समावेशी गठबंधन) किया गया। विपक्षी एकता के मजबूत स्वरूप को देखते हुए सत्तारूढ़ दल में खलबली मचाने लगी। इसे ‘घमंडिया’ नाम दिया गया और इसकी तुलना ईस्ट इण्डिया कंपनी और आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन से करने लगे।

गठबंधन इंडिया की तीसरी और सर्वाधिक महत्वपूर्ण बैठक, जो मुंबई में हुई, उस पर बात करते हैं। जब मुंबई में बैठक करके विपक्षी अपने सभी समस्याओं को हल करने का समाधान ढूंढ रहे थे कि भाजपा ने नहले पर दहला मार दिया। संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने अचानक पांच दिन 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र  बुलाने का ऐलान कर दिया। एजेंडा बताए ब‍िना। तो एजेंडे के बारे में कयास लगने शुरू हो गए।

मीड‍िया में बैठक की खबरें दब गईं। खबरें भले ही दब गईं, लेक‍िन व‍िपक्षी नेताओं का भाजपा के ख‍िलाफ मजबूती से लड़ने का इरादा कम नहीं हुआ है। इनका मानना है कि भाजपा, जो सत्य और न्याय के नाम पर वर्ष 2014 में सत्ता में आई थी, उसने समाज में अंधभक्तों को तो पैदा जरूर किया, किसी को राष्ट्रभक्त नहीं बना सका। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)