अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता जताते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा गया कि जब दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुई चर्चा को लेकर भारत के विचारों को नहीं शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि भारत को इस समय चिंता है कि क्या अफगानिस्तान में समावेशी सरकार बन पाएगी। अफगानी ज़मीन का इस्तेमाल आतंक के लिए भी किया जा सकता है।

अमेरिका-भारत सामरिक गठजोड़ मंच (USISPF) के वार्षिक शिखर सम्मेलन में गुरुवार को विदेश मंत्री ने कहा कि भारत तालिबानी सरकार को मान्यता देने की जल्दबाजी में नहीं है। उन्होंने कहा कि दोहा में समझौते और बातचीत के दौरान भारत को विश्वास में नहीं लिया गया। इस बात पर भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने उनपर तंज कस दिया।

सोशल मीडिया पर एक ट्वीट का रिप्लाई करते हुए उन्होंने लिखा, ‘मीटिंग में बुलाए जाने के लिए वेटर की तरह इंतजार करते रह गए।’ स्वामी पहले भी विदेश मंत्री पर इसी तरह ताना मार चुके हैं। कोरोना काल के दौरान जब जयशंकर लंदन गए थे तो ऐसी खबरें आई थीं कि उन्हें क्वारंटीन कर दिया गया है। इसके बाद स्वामी ने तंज कसते हुए कहा था कि उन्हें वेटर की तरह कपड़े पहनाए गए हैं।

कब हुआ था अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता?
पिछले साल फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें अमेरिका ने अपने सैनिकों को वापस बुलाने का वादा किया था। वहीं तालिबान से हिंसा समाप्त करने का आश्वासन मांगा गया था। विदेश मंत्री जयशंकर ने इस मामले में कहा कि अफगानिस्तान भारत के करीब है। ऐसे में वहां की स्थितियों में हो रहे परिवर्तन का असर भारत पर भी पड़ता है।

जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान के मामले में भारत औऱ अमेरिका लगभग एक तरह की ही सोच रखता है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ पहलू ऐसे भी हैं जिनपर विचार नहीं मिलते।