प्रभात झा
जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर, मोहन धारिया और मधु लिमये जनता पार्टी के जनसंघ घटक से बार-बार कह रहे थे कि आपकी दोहरी सदस्यता नहीं चलेगी। आपको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपनी सदस्यता खत्म करनी होगी। तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और सूचना प्रसारण राज्यमंत्री लालकृष्ण आडवाणी लगातार समझाते रहे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारी मातृसंस्था है। संघ में कोई सदस्यता नहीं होती, यह एक सांस्कृतिक संगठन है, जो देश की संस्कृति, भारतीय परंपरा, राष्ट्रवाद और सनातन धर्म के लिए काम करता है।
बावजूद इसके, जनता पार्टी के अन्य घटक दल नहीं माने, जबकि सच्चाई यह थी कि आपातकाल के बाद जनसंघ ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने दल का नाम और चुनाव चिह्न ‘दीपक’ भी मिटा दिया था। अटलजी और आडवाणीजी की बात जनता पार्टी नेताओं ने, यहां तक कि मोरारजी देसाई जो उस समय प्रधानमंत्री थे, ने भी इस विषय पर चुप्पी साध ली। तब अटलजी और आडवाणीजी ने तत्कालीन पूर्व संगठन मंत्री सुंदर सिंह भंडारी से आग्रह किया कि 4 अप्रैल, 1980 को देश के अपने सभी प्रांतों और राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख नेताओं की आपात बैठक बुलाई जाए।
बैठक में पहले आडवाणीजी ने जनता पार्टी से उत्पन्न सभी बातें रखीं। उन्होंने कहा कि दोहरी सदस्यता के नाम जनता पार्टी के अन्य घटक हमें संघ के ‘स्वयं सेवक’ नहीं रहने और उनके कार्यक्रमों के साथ-साथ संघ की सदस्यता छोड़ने की बात कर रहे हैं। वहां उपस्थित जगन्नाथ राव जोशी, भैरों सिंह शेखावत, सुंदर सिंह भंडारी, केदारनाथ साहनी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार, विजय कुमार मल्होत्रा, कुशाभाऊ ठाकरे, जेपी माथुर, कैलाशपति मिश्र, उत्तम राव पाटिल, विष्णुकांत शास्त्री, ओ राजगोपाल, यज्ञदत्त शर्मा, मदनलाल खुराना, अश्विनी कुमार, केशुभाई पटेल, येदियुरप्पा सहित देश के सौ से अधिक नेताओं ने एक साथ कहा कि हम सबसे पहले स्वयंसेवक हैं और संघ से हमारा नाता मरणोपरांत भी नहीं छूट सकता, चाहे इसके लिए जनता पार्टी क्यों न छोड़ना पड़े।
अंत में अटलजी ने उद्बोधन में कहा कि हम संघ के स्वयंसेवक हैं और सदा रहेंगे, लेकिन अब जनता पार्टी के सदस्य नहीं रहेंगे। उपस्थित सभी नेताओं ने एक स्वर से कहा कि हमने जनसंघ को जनता पार्टी में मिलाया था, पर जनसंघ के कार्यकर्ता तो आज भी गांव-गांव में हैं। जनसंघ के कार्यकर्ताओं और संघ के सहयोग के कारण ही जनता पार्टी को देश में इतनी सीटें सन 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद मिलीं। बैठक में एक समिति सुंदर सिंह भंडारी की अध्यक्षता में बनाई गई, और इस समिति को नया दल, नया चुनाव चिह्न और नया संविधान बनाने का कार्य सौंपा गया।
6 अप्रैल, 1980 को फिर देशभर के प्रमुख नेताओं की बैठक हुई और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। चुनाव चिह्न कमल का फूल घोषित किया गया और दल का संविधान बनाने का कार्य शुरू हुआ। भाजपा बन गई। इसका पहला अधिवेशन मुंबई के माहिम क्षेत्र में आयोजित किया गया। सभी वरिष्ठ नेतृत्व ने एक स्वर में जनसंघ के तीन बार अध्यक्ष रहे अटल बिहारी वाजपेयी को लाखों कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में अटलजी ने कहा, ‘अंधेरा छंटेगा सूरज निकलेगा और कमल खिलेगा’।
सन 1984 में चुनाव हुए। तब इंदिराजी की हत्या हो गई। भाजपा को देश में सिर्फ दो सीटें मिलीं। यहां तक कि अटलजी ग्वालियर से चुनाव में माधवराव सिंधिया से हार गए। मगर अटलजी उठे और कहा कि हम चुनाव हारे हैं, लड़ाई नहीं। हम दुगुनी ताकत से पूरे देश में कमल खिलाएंगे। कार्यकर्ता तो देश भर में थे। राष्ट्रीय और प्रांतीय नेतृत्व ने पूरे भारत का अखंड प्रवास कर छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं और भारत की जनता को जगाने का कार्य जारी रखा। धीरे-धीरे हर लोकसभा चुनाव में भाजपा की संख्या बढ़ती गई। सन 1989 में 85 सीटें और सन 1991 में भाजपा को 120 सीटें मिलीं।
एक स्थिति यह आई कि सन 1996 के चुनाव में भाजपा को 182 सीटों पर जीत मिली। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण अटलजी को प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई गई, लेकिन वह सरकार मात्र तेरह दिन तक चली। फिर चुनाव हुए, और भाजपा को उस समय के राजग के साथ, अच्छी सीटें मिलीं। अटलजी फिर तेरह महीने के लिए प्रधानमंत्री बने। सहयोगियों ने धोखा दिया और अटलजी की सरकार एक वोट से गिर गई। अटलजी ने इस्तीफा देने से पहले संसद में अपने भाषण में कहा, ‘सरकारें आएंगी, जाएंगी, लेकिन हम खरीद-फरोख्त से बनी सरकार को चिमटी से भी नहीं छूएंगे’।
सन 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए की सरकार बनी और अटलजी तीसरी बार पांच साल तक प्रधानमंत्री बने रहे। फिर सन 2004 में लोकसभा चुनाव में भाजपा पराजित हुई और यूपीए की सरकार बनी। उसके बाद यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बने। यह सरकार दस साल चली। इन दस सालों में यूपीए सरकार घोटालों में डूब गई। पूरे देश में यूपीए से देश के लोग निराश हो चुके थे।
मगर इतिहास करवट लेता है। गुजरात में बारह वर्ष शानदार सरकार चलाने वाले नरेंद्र मोदी को भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने लोकसभा चुनाव के प्रचार का संयोजक और कुछ दिनों बाद उन्हें भाजपा की ओर से देश का भावी प्रधानमंत्री बनाने की दलीय घोषणा की। नरेंद्र मोदी का नाम आते ही देश में एक नए राजनीतिक युग का संचार हुआ।
नई आशाएं जगीं, उम्मीदों की नई किरणें दिखने लगीं। गुजरात के विकास की अमिट छाप देश ने देखा था। नरेंद्र मोदी ने पूरे देश का विश्वास जीता और तीस वर्ष बाद किसी पार्टी (भाजपा) की बहुमत की सरकार बनी। कुल सीटें भाजपा की 282 और राजग की 336 आईं। उसके बाद प्रधानमंत्री एक दिन भी नहीं रुके। उनके कदम बढ़ते गए। इसी बीच में राजनाथ सिंह देश के गृहमंत्री बने और भाजपा के नए अध्यक्ष अमित शाह बने। संगठन का कार्य संभालते ही अमित शाह ने अपने अखंड प्रवास और अनेकानेक कार्यों और कार्यक्रमों से पूरे भारतवर्ष में भाजपा को खड़ा कर विश्व में भाजपा को सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनाकर इतिहास रचा। हर जिले में भाजपा कार्यालय सहित बारह ऐसे कार्य सौंपे, जिसे भाजपा के हर जिलों में होना ही था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को परिवारवाद, वंशवाद की राजनीति तथा भ्रष्टाचार से मुक्ति और गरीब, महिला, किसान, युवा के लिए अपनी सरकार समर्पित कर दी। भारत के गांव गरीबों की ही नहीं, बल्कि विकास के इतने आयाम तय किए कि सन 2019 में भाजपा को 303 सीटें अकेले मिलीं और एनडीए को कुल 352 सीटें। जनसंघ के जमाने से घोषणा-पत्र में जो बातें आज तक कही जा रही थीं, मोदी जी ने उसे साकार करने की दिशा में एक पल भी नहीं गंवाया।
(लेखक भााजपा के पूर्व सांसद हैं)