केंद्र सरकार संसद में जम्मू-कश्मीर से जुड़े चार विधेयक लेकर आई है। विधेयकों को विधानसभा चुनाव कराने की प्रस्तावना के रूप में देखा जा रहा है और उनमें ऐसे प्रावधान हैं जो संभावित रूप से केंद्र शासित प्रदेश के सामाजिक-राजनीतिक स्वरूप को बदल सकते हैं। यह संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 के लिए विशेष रूप से सच है। सभी चार विधेयक 26 जुलाई को लोकसभा में पेश किए गए थे।

भारत में अनुसूचित जनजातियां

संविधान का अनुच्छेद 366(25) अनुसूचित जनजातियों को ‘ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों के रूप में परिभाषित करता है जिन्हें अनुच्छेद 342 के तहत समझा जाता है। अनुच्छेद 342(1) राष्ट्रपति को राज्यपाल से परामर्श के बाद किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में एसटी निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 342(2) कहता है, “संसद कानून द्वारा खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी जनजाति या आदिवासी समुदाय के हिस्से या समूह को शामिल या बाहर कर सकती है।”

संविधान एसटी स्थिति निर्धारित करने के लिए मानदंड निर्दिष्ट नहीं करता है। हालांकि प्रिमिटिव ट्रेट्स, भौगोलिक अलगाव, विशिष्ट संस्कृति, पिछड़ापन जैसी विशेषताएं अच्छी तरह से स्थापित की गई हैं।

किसी समुदाय को एसटी के रूप में नामित करने के लिए पूर्ण औचित्य के साथ संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकार की सिफारिश और भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की सहमति जरूरी है।

एसटी से संबंधित देश का पहला आदेश संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 था, जिसे 6 सितंबर 1950 को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा जारी किया गया था। इसमें जनजातियों की राज्यवार सूची शामिल थी, और 2016 तक 16 समान आदेशों का पालन किया गया था। वहीं जम्मू-कश्मीर के लिए पहला एसटी-संबंधित आदेश 7 अक्टूबर, 1989 को जारी किया गया था और 17 सितंबर, 1991 को संशोधित किया गया था।

जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा संसद में लाया गया विधेयक संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश, 1989 में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है। गड्डा ब्राह्मण, कोली, पद्दारी जनजाति और पहाड़ी जातीय समूह को जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया है।

इन चार समुदायों को एसटी सूची में शामिल करने पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन की सिफारिश के बाद केंद्र ने भारत के रजिस्ट्रार जनरल और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से परामर्श किया। वहीं चार नए समुदायों के जुड़ने से जम्मू-कश्मीर में कुल 16 एसटी समुदाय होंगे।

कौन हैं पहाड़ी समुदाय?

पहाड़ी एक भाषाई समूह है। वे जम्मू-कश्मीर की आबादी का 8.16% हैं। 1 फरवरी 2018 को जारी जम्मू-कश्मीर सरकार के पहाड़ी भाषी लोगों की जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार पुंछ जिले की 56.03%, राजौरी में 56.10%, कुपवाड़ा में 11.84%, बारामूला में 14%, अनंतनाग में 7.86%, गांदरबल का 5.88% और शोपियां जिले की 5.04% आबादी पहाड़ी है।

पहाड़ी लोग भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर गुज्जरों के साथ समानता का दावा करके अपनी पृष्ठभूमि और आदिवासी पहचान को तर्कसंगत बनाते हैं। प्रस्तावित विस्तारित एसटी सूची में पहाड़ी समुदाय को शामिल करने का गुज्जर-बकरवाल ने कड़ा विरोध किया है, जो जम्मू-कश्मीर की आबादी का लगभग 10% हैं और प्रदेश में सबसे बड़ा एसटी समुदाय हैं। गुज्जर-बकरवाल पहाड़ी लोगों को शामिल करने को अपने जनजातीय अधिकारों को कमजोर करने के उद्देश्य से देखते हैं।

90 सदस्यीय जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नौ सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में अपग्रेड करने के तुरंत बाद सरकार ने जनवरी 2020 में पहाड़ी भाषी लोगों को 4% आरक्षण दिया।

हालांकि 1980 के दशक से कई राज्य सरकारों ने पहाड़ियों के लिए एसटी दर्जे की सिफारिश की है, लेकिन केंद्र के पास इस सिफारिश को अस्वीकार करने का एक कारण है। पहाड़ियों को हमेशा एक भाषाई समूह माना जाता था – “पहाड़ी भाषी लोग” और इस प्रकार वे एसटी के रूप में माने जाने वाले अपेक्षित मानदंडों को पूरा करने में असमर्थ थे। इसीलिए यह विधेयक “पहाड़ी जातीय समूह” को संदर्भित करता है, न कि “पहाड़ी भाषी लोगों” को।

क्या फायदा होगा बीजेपी को?

भाजपा का राजनीतिक लक्ष्य जम्मू के हिंदू बहुल जिलों से परे अपनी चुनावी सफलताओं का विस्तार करना है। बीजेपी का लक्ष्य जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम-बहुल इलाकों में चुनावी पकड़ स्थापित करना है। पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने से इन क्षेत्रों में बीजेपी को समर्थन हासिल करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा यदि एक बार विधेयक कानून बन जाता है, तो पहाड़ी उम्मीदवार एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं और इन सीटों पर गुज्जर-बकरवाल के एकाधिकार को चुनौती दे सकते हैं।

हालांकि भाजपा का इरादा सीधे तौर पर गुज्जर-बक्करवाल को नाराज करने का नहीं है, लेकिन उसे पहाड़ी-गुर्जर विभाजन में चुनावी लाभ दिख रहा है। भाजपा को पहाड़ियों का समर्थन हासिल करके कश्मीर की दो सीटों पर चुनावी लाभ मिलने की भी उम्मीद है। परिसीमन के बाद पीर पंजाल में नौहसेरा और सुंदरबनी-कालाकोट अब हिंदू-बहुल सीटें हैं, जबकि राजौरी दो मुख्य समुदायों के बीच समान रूप से विभाजित है। इन सीटों पर पहाड़ी मुसलमानों के साथ-साथ भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक उसके लिए काम आसान कर सकता है।

जम्मू-कश्मीर पहाड़ी पीपुल्स मूवमेंट के प्रमुख शाहबाज़ खान ने जोर देकर कहा, “पहाड़ी एक जातीय समूह हैं, बिल्कुल गुज्जरों की तरह। हम भी एक जनजाति हैं। गुर्जरों ने खुद को राष्ट्रवादी के रूप में चित्रित किया है और पिछली केंद्र सरकारों को आश्वस्त किया है कि हम एसटी में शामिल होने के लायक नहीं हैं। हमारे साथ गलत व्यवहार केवल इसलिए किया गया क्योंकि इस क्षेत्र के 70% पहाड़ी पीओके में रहते हैं और वहां बहुसंख्यक हैं। जमीनी तौर पर गुज्जरों और हमारे बीच कोई अंतर नहीं है। हमारा रहन-सहन एक जैसा है। फर्क सिर्फ भाषा का है। जब 1991 में गुर्जरों को एसटी में शामिल किया गया, तो हमें गलत तरीके से हटा दिया गया।”

शाहबाज़ खान ने कहा कि पहाड़ी लोग भाजपा के आभारी हैं। उन्होंने कहा, “हमारे लोग इसे भाजपा का बहुत बड़ा उपकार मानते हैं। हमने राजौरी में हर पार्टी के पहाड़ी नेताओं की एक बड़ी बैठक की। इसमें भाजपा के जम्मू-कश्मीर अध्यक्ष रविंदर रैना और महासचिव विबोध गुप्ता ने भाग लिया क्योंकि वे भी पहाड़ी हैं। पहाड़ियों ने भाजपा से वादा किया था कि एक बार जब हमें एसटी का दर्जा मिल जाएगा, तो हम सब मिलकर कम से कम एक बार आपके लिए वोट करेंगे। गुर्जरों के कड़े विरोध के बावजूद भाजपा ने ऐसा किया (पहाड़ियों को संभावित विस्तारित एसटी सूची में शामिल किया)।”

शाहबाज़ खान ने कहा, ”पीओके की लगभग 85% आबादी पहाड़ी है। जब विंग कमांडर अभिनंदन का विमान नौशेरा के सामने पीओके के खोई रत्ता इलाके में गिरा, तो पीओके में पहाड़ी लोग ही थे जो सबसे पहले उन्हें पानी पिलाने और उनके घावों का इलाज करने के लिए आगे आए, जब तक कि पाकिस्तानी सेना वहां नहीं पहुंच गई।” वहीं बीजेपी अध्यक्ष रविंदर रैना के अनुसार, ”पहाड़ियों को आरक्षण से किसी के नाखुश होने का सवाल ही नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि पहाड़ियों को आरक्षण गुज्जर-बकरवाल और अन्य एसटी समुदायों को मिलने वाले 10% आरक्षण के अतिरिक्त होगा।”

लोकसभा में पेश किया गया दूसरा महत्वपूर्ण विधेयक जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023, कमजोर और वंचित वर्गों (सामाजिक जातियों) के नामकरण को ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ में बदल देगा। इसका मतलब है कि सूची में चांग, ​​जाट, सैनी, पेरना/ कौरो (कौरव), आचार्य, गोरखा और पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों सहित 15 और समुदायों/जातियों को शामिल किया गया है। ये नए लाभार्थी जम्मू में भाजपा को समर्थन करते हैं। सरकार ने जम्मू-कश्मीर में एक नई आरक्षण व्यवस्था बनाई है जिससे भाजपा को चुनावी फायदा होने की संभावना है।