Question on Bilkis Bano Case: गुजरात बिलकिस बानो मामले में विवाद थम नहीं रहा है और आरोपियों की रिहाई को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। कई लोगों ने कहा है कि केंद्र सरकार का इस मामले में दोहरा रवैया है। विपक्ष भी सरकार के रवैये पर लगातार दबाव बना रहा है। केंद्रीय जांच ब्यूरो के एक पूर्व निदेशक का कहना है कि केंद्र को बिलकिस बानो गैंगरेप और मर्डर केस में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए थी। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार लगातार साइलेंट मोड में है। यह उसके “दोहरे मानदंड” का संकेत है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व सीबीआई निदेशक ने याद दिलाया कि 2015 में राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों में से एक को रिहा करने के तमिलनाडु के फैसले का नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सफलतापूर्वक विरोध किया था। केंद्र ने दावा किया था संघीय एजेंसियों द्वारा की गई जांच मामलों में छूट का एकमात्र अधिकार केंद्र के पास है और शीर्ष अदालत ने इस तर्क को बरकरार रखा था।

उन्होंने पूछा, “बिलकिस बानो मामले में यह दोहरा मापदंड क्यों? मोदी सरकार ने 2015 में राजीव हत्याकांड के दोषी को रिहा करने के तमिलनाडु के फैसले का कड़ा विरोध किया था। बिलकिस मामले में एक अलग पैमाना क्यों लागू किया जा रहा है?”

केंद्र सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के लिए उनसे अनुमति ली थी। साथ ही एजेंसी को भी आधिकारिक तौर पर बताना चाहिए कि क्या केंद्र की सलाह पर यह कदम उठाया गया है। और अगर नहीं तो उसे इसे ऊपरी अदालत में चुनौती देने से कौन रोक रहा है।

पिछले मई में दो न्यायाधीशों वाली शीर्ष अदालत की पीठ द्वारा दिए गए एक फैसले से यह विषय कुछ हद तक जटिल हो गया है। फैसले में कहा गया है कि बिलकिस बानो मामले में छूट की शक्ति गुजरात सरकार के पास निहित है, क्योंकि अपराध उस राज्य में किया गया था।

इस फैसले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा पारित 2015 के फैसले का उल्लेख नहीं था, जिसमें कहा गया था कि केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच किए गए मामलों में सजा को माफ करने के लिए केंद्र की अनुमति अनिवार्य है। हालांकि कानून के जानकार कहते हैं कि बिलकिस बानो खुद सुप्रीम कोर्ट के 2015 के फैसले का हवाला देते हुए छूट को चुनौती देने के लिए आजाद हैं।