Bihar Politics: साल 2025 के आखिर में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके पहले आखिरी बजट सत्र के दौरान विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व सीएम तेजस्वी यादव के बीच तीखी जुबानी तकरार हुई। इस दौरान सीएम नीतीश ने तेजस्वी को संबोधित करते हुए दावा किया कि उन्होंने ही उनके पिता (लालू प्रसाद यादव) को सीएम बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
पिछले कुछ दिनों में चुनावी सरगर्मी के बीच एक तरफ जहां तेजस्वी यादव नीतीश कुमार पर हमलावर हैं, तो दूसरी ओर नीतीश उन पर राजनीतिक परिपक्वता की कमी का जिक्र करते हुए उन्हें ‘बच्चा’ कह रहे हैं, लेकिन फिर नीतीश थोड़ा ज्यादा आगे निकल गए। उन्होंने कह दिया कि लालू को बिहार का सीएम बनाने में उनकी भूमिका थी, जिसके बाद से सवाल उठने लगे कि आखिर यह दावा कितना सच हैं, इसे समझने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलटने होंगे।
लालू नीतीश के बीच कब हुई थी दोस्ती
यह कहानी 1974 से शुरू कर सकते हैं। उस दौर में लालू पहली बार जब पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बनकर सुर्खियों में आए थे। यह जेपी आंदोलन का समय था, और पूरे राज्य में कांग्रेस के खिलाफ अभियान चल रहा है। बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में छात्र नेता रहे नीतीश कुमार भी एक्टिव राजनीति में उतरे थे। हालांकि एक बात यह भी है कि दोनों ही नेताओं की राजनीतिक धाराएं अलग थी।
लालू प्रसाद यादव ने 1977 में छपरा से लोकसभा का चुनाव जीता था, जबकि विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें पहली चुनावी जीत 1985 में मिली थी। ये दोनों ही उस समय पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व वाले लोकदल का हिस्सा था, जिसके चलते दोनों के बीच दोस्ती हुई थी।
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कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद बदली सियासत
फरवरी 1988 में जब कर्पूरी ठाकुर की निधन हुआ तो पार्टी में लालू यादव के साथ ही शिवानंद तिवारी, नीतीश कुमार, रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह और विजय कृष्ण पार्टी के सेकेंड लाइन लीडरशिप के नेता था। इसके अलावा विनायक प्रसाद यादव, अनूप लाल यादव और गजेंद्र हिमांशु का दबदबा था, जो कि लालू और उनके साथियों से भी वरिष्ठ थे।
लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर के बाद तेज तर्रार रुख अपनाते हुए उत्तराधिकारी के तौर पर दावा पेश करने की कोशिशें शुरू कर दी थीं। हरियाणा के पूर्व सीएम और पूर्व डिप्टी पीएम चौधरी देवीलाल और शरद यादव से करीबी के चलते उस वक्त अनूप लाल यादव नेता विपक्ष बनने वाले थे, लेकिन आखिर वक्त में शिवानंद तिवारी और नीतीश कुमार ने इस पद के लिए लालू यादव को सपोर्ट कर उन्हें बड़ी छलांग लगाने में मदद की थी। ऐसे में लालू नेता विपक्ष बनने के साथ ही लोकदल के नेता भी बन गए थे।
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लालू को बीच में लगा था झटका
ऐसे में जब वी.पी. सिंह ने अपने जनमोर्चा को लोकदल और अन्य समाजवादी दलों के साथ मिलाकर जनता दल बनाया, तो लालू को नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि वी.पी. सिंह को उनका समर्थन नहीं मिला था। इसके बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने सीएम पद का चेहरा पेश नहीं किया, जबकि उसके पास पूर्व सीएम सुंदर दास जैसे वरिष्ठ नेता थे।
वहीं जब जनता दल ने बिहार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की तो सीएम पद को लेकर दांव पेच शुरु हो गए। वीपी सिंह चाहते थे कि सुंदर दास सीएम बनें, लेकिन देवीलाल ने लालू का समर्थन किया। यही वह समय था जब लालू ने मदद के लिए चंद्रशेखर को बुलाया। चंद्रशेखर उत्तर बिहार के एक प्रभावशाली नेता रघुनाथ झा का समर्थन कर रहे थे, जो सीएम की दौड़ में थे, लेकिन उन्हें पता था कि वे कभी नहीं जीतेंगे। राम सुंदर दास को जीतने से रोकने के लिए चंद्रशेखर ने लालू का समर्थन किया और अंत में लालू जीत गए। पार्टी के आंतरिक चुनाव में लालू को 59 वोट मिले, दास को 56 और रघुनाथ झा को 14 वोट मिले। रघुनाथ झा को मिले वोटों ने ही कहीं न कहीं लालू की जीत सुनिश्चित की।
लालू के सीएम बनने में नीतीश की क्या भूमिका?
अब सवाल यह कि नीतीश, लालू के सीएम बनने में अपनी भूमिका क्यों बता रहे हैं तो बता दें कि नीतीश का इशारा लालू के लिए उनके जोरदार पैरवी की ओर था। समस्तीपुर के वरिष्ठ नेता विजयवंत चौधरी का कहना है कि वे चंद्रशेखर के खेमे में थे। उन्होंने देखा कि शिवानंद तिवारी और नीतीश कुमार ने बहुत ही कड़े मुकाबले में लालू के लिए पैरवी की। लालू का सीएम बनना तय था, उन्हें अपने साथियों का समर्थन मिला। विधानसभा में तेजस्वी पर कटाक्ष करते समय नीतीश का यही मतलब रहा होगा।
चौधरी ने कहा कि नीतीश कुमार ने लालू का समर्थन करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि 1989 में उन्हें विजय कृष्ण से आगे बढ़कर बाढ़ लोकसभा का टिकट मिला था, जो वरिष्ठ कांग्रेस नेता राम लखन सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। विजयंत चौधरी ने कहा कि नीतीश राम लखन को हराकर एक जायंट किलर के तौर पर उभरे थे, सीएम के लिए अपने दोस्त का समर्थन किया और इस तरह युवा समाजवादी नेताओं का युग शुरू हुआ।
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नीतीश कुमार की क्या है पॉलिटिक्स?
1991 के चुनावों में जब वी.पी. सिंह बिहार में प्रचार करने आए तो लालू ने वी.पी. सिंह पर पलटवार किया। तब तक वी.पी. सिंह पूर्व प्रधानमंत्री बन चुके थे। जब लालू ने वी.पी. सिंह को हेलीकॉप्टर में अपनी पसंदीदा सीट पर देखा तो उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री से कहा कि राजा साहब, मेरी सीट से हट जाइए। वीपी सिंह ने उनकी बात मान ली।
नीतीश की सियासत की बात करें तो उन्होंने 1994 में जनता दल छोड़ दिया और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता दल का गठन किया। जेपी आंदोलन के समय से दोस्त रहे नीतीश और लालू ने अलग-अलग रास्ते अपनाए और बिहार की राजनीति को नया आकार दिया। वे एक बार 2015 में और फिर 2020 में साथ आए, लेकिन दोनों बार गठबंधन टूट गया। हालांकि बीच-बीच में लालू नीतीश को अपने खेमे में आने का प्रस्ताव देते रहे हैं। बिहार से संबंधित अन्य सभी खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।