मेवालाल चौधरी। JDU कोटे से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली कैबिनेट में मंत्री बने हैं। सोमवार को इन्होंने सीएम के बाद पद और गोपनीयता की शपथ ली। पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज होने के बाद इन्हें नीतीश ने पार्टी से निलंबित कर दिया था। वैसे, नीतीश से इनके करीबी रिश्ते रहे हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगता है, जब भागलपुर सबौर स्थित कृषि कालेज को नीतीश सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्जा दिया तो चौधरी पहले कुलपति बनाए गए थे। रिटायर हुए तो मुख्यमंत्री ने 2015 में जदयू का टिकट दे दिया। फिर तारापुर से विधायक निर्वाचित हुए।
दिलचस्प बात कि यह कुलपति बने तो इनकी पत्नी नीता चौधरी जदयू से विधायक बनीं। यह 2010 की बात है। पर बहाली में गड़बड़ी की बात पर और राजभवन से प्राथमिकी दर्ज होने के बाद विपक्षी तेवर इनके खिलाफ कड़े होने की वजह से चौधरी को जदयू से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार को मजबूर होना पड़ा था। 2020 चुनाव में फिर विधायक निर्वाचित होने पर मेवालाल की किस्मत का दरवाजा खुल गया।
सबौर कृषि विश्वविद्यालय में 161 कनीय शिक्षक और वैज्ञानिकों की बहाली में धांधली का आरोप विपक्ष में रहते सुशील कुमार मोदी ने ही सदन में उठाया था। उनकी मांग पर ही राजभवन ने रिटायर जस्टिस महफूज आलम से गड़बड़ियों की जांच कराई थी। बताया जाता है कि जज ने 63 पन्ने की जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी की पुष्टि की थी। इसी आधार पर राज्यपाल सह कुलाधिपति के आदेश पर थाना सबौर में 35/17 नंबर की एफआईआर दर्ज की थी।
बाद में पांच गवाहों के बयान दफा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए थे। ये बहाली जुलाई 2011 में प्रकाशित विज्ञापन के माध्यम से बाकायदा इंटरव्यू प्रक्रिया के तहत की गई थी। इनके खिलाफ इस मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था। इनकी अग्रिम जमानत की अर्जी एडीजे राकेश मालवीय ने रद्द कर दी थी। अग्रिम जमानत की अर्जी पर उनकी तरफ से वकील जवाहर प्रसाद साह और ममता कुमारी ने बहस की थी। पुलिस के मांगे कुर्की वारंट का भी विरोध यह कहकर किया था कि मेवालाल चौधरी जनप्रतिनिधि है। उन्हें बदनाम करने की साजिश रची गई है।
वकीलों की दलील सुनने के बाद अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने केस की फाइल ही जिला जज को लौटा दी थी। जिला जज ने केस पटना निगरानी कोर्ट में अगली सुनवाई के लिए ट्रांसफर कर दिया था। इससे पहले तब के एसएसपी मनोज कुमार ने बताया था कि उनके पासपोर्ट जब्त करने के बाबत क्षेत्रीय पासपोर्ट दफ्तर लिखा था। वरीय लोक अभियोजक सत्यनारायण प्रसाद शाह ने बताया कि नियम के मुताबिक भ्रष्टाचार मामले की सुनवाई निगरानी कोर्ट ही करता है।
जानकारों के मुताबिक, वहां मामला लंबित है। मगर इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी है। फिर भी ऐसे आरोपों के बावजूद चौधरी की किस्मत खुली। यह बड़ी बात है। दिलचस्प बात यह है कि सदन में इसको लेकर जांच की मांग करने वाले सुशील मोदी इस बार सदन से ही नदारद कर दिए गए। वे एमएलसी हैं। उपमुख्यमंत्री का पद दूसरे भाजपा कार्यकर्ता को इस दफा सौंपा गया है।