बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं। जहां एक ओर लालू यादव व नीतीश कुमार उसके खिलाफ एकजुट हो गए हैं वहीं उसके अपने सहयोगी दल उसे आंखें दिखा रहे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी ने जीतन राम मांझी के साथ गठबंधन होने की स्थिति में उसके उन पांच विधायकों को टिकट नहीं देने की चेतावनी दी है जो कि लोजपा छोड़ कर जद (एकी) में चले गए थे। वहीं रालोसपा के प्रमुख व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के फैसले में विलंब करने से गठबंधन को नुकसान पहुंच रहा है। रालोसपा कुशवाहा को राजग की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की पैरवी कर रहा है। पार्टी ने रविवार को ही एक प्रस्ताव पारित कर बिहार चुनाव में कुशवाहा को राजग का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की मांग की थी।
महज सौ दिन बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। जहां एक ओर पिछले लोकसभा चुनाव में अलग अलग लड़ कर 41 फीसदी वोट हासिल करने वाले जद (एकी), राजद, कांग्रेस व राकांपा इस बार एकजुट हैं वहीं मात्र 31 फीसद वोट हासिल कर भारी जीत हासिल करने वाली भाजपा को अपने सहयोगी दलों को मनाना पड़ रहा है। पार्टी महादलित नेता जीतन राम मांझी के अलावा पप्पू यादव के साथ भी तालमेल करना चाहती है। पर इसमें रामविलास पासवान की लोजपा ने रोड़े अटका दिए हैं।
कुशवाहा ने बिहार के लिए नेतृत्व के मामले में भाजपा से जल्द निर्णय लेने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह किसी चेहरे को पेश नहीं करना चाहता है तो उसे इसकी घोषणा करनी चाहिए ताकि भगवा दल और उसके सहयोगियों की ओर से की जा रही बयानबाजियों पर रोक लगाई जा सके क्योंकि ये राजग की संभावनाओं के लिए घातक हैं। उन्होंने इस आरोप को खारिज कर दिया कि उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश करने की बात दबाव की रणनीति है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि प्रत्येक पार्टी को एक विकल्प देने का अधिकार है पर इस मामले में अंतिम फैसला भाजपा नीत राजग को करना है।
उधर, भाजपा ने रालोसपा के उस प्रस्ताव को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जिसमें उपेंद्र कुशवाहा को बिहार में राजग के मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने की बात कही गई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अभी तक सीट बंटवारे व अन्य मुद्दों को लेकर बातचीत शुरू नहीं हुई है। जब तक कोई निर्णय नहीं हो जाता, कोई भी दल कोई भी दावा कर सकता। उन्होंने रालोसपा के दावों के आधार पर इन खबरों को बकवास करार दिया कि राजग में दरार आ रही है।
कुशवाहा ने भी लगभग इसी सुर में कहा कि राजग को मिलकर बैठना चाहिए और इस मुद्दे पर यथाशीघ्र फैसला करना चाहिए। विलंब से हमें नुकसान हो रहा है और ज्यादा देर से ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि लालू यादव व नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। हमने कोई शर्त नहीं रखी है बल्कि केवल एक विकल्प की पेशकश की है। ऐसे समय में जब विपक्षी गठबंधन (लालू-नीतीश) एक स्वर में बोल रहे हैं, यह जरूरी हो जाता है कि हम भी एकजुट होकर बोलें।
कुशवाहा ने ध्यान दिलाया कि प्रधानमंत्री न केवल भाजपा बल्कि राजग का भी चेहरा हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चुनाव लड़ना सर्वोत्तम दांव होगा। भाजपा अभी तक अपने मुख्यमंत्री पद के दावेदार की घोषणा से बचती रही है क्योंकि पार्टी में एक वर्ग का मानना है कि अन्य आकांक्षियों के दावों की अनदेखी करना राजनीतिक रूप से उसके लिए भारी पड़ सकता है।
पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को इस चेहरे के रूप में एक स्वाभाविक पसंद माना जा रहा है लेकिन उच्च जातियों के कुछ राज्यस्तरीय नेता उनका विरोध कर रहे हैं। बहरहाल, पार्टी प्रधानमंत्री के नाम पर राज्य का चुनाव लड़ने को लेकर भी पसोपेश में है क्योंकि विपरीत नतीजों से उनकी छवि को नुकसान हो सकता है।
कुशवाहा राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ओबीसी की कोइरी (कुशवाहा) जाति से आते हैं। वे सितंबर-अक्तूबर में होने वाले 243 सदस्यीय राज्य विधानसभा के चुनाव में 67 सीटों पर दावा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा को 102 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। 2010 में उसने इतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ा था जब वह जद (एकी) की कनिष्ठ सहयोगी थी। उन्होंने कहा कि रामविलास पासवान नीत लोजपा को 74 सीटें दी जानी चाहिए।
उधर, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भाजपा के सहयोगी दलों के बीच मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और उनकी ओर से लड़ी जाने वाले सीटों की संख्या को लेकर जारी असंतोष को और हवा दी और कुशवाहा के दावे को सही बताया। लालू ने कहा कि कुशवाहा में मुख्यमंत्री बनने के गुण हैं। वे परिपक्व हैं, मेहनती हैं और राज्य में शीर्ष पद चाहते हैं। उनकी ओर से मुख्यमंत्री पद का दावा करने में कुछ भी गलत नहीं है।