Bihar CM History: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ने लगा है। तेजस्वी यादव इस बार पिछली गलतियों से सबक लेकर नए सिरे से सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ चुनावी रणनीति बना रहे हैं। दूसरी ओर पीएम मोदी के दौरों के बीच जेडीयू-बीजेपी अपना खेमा मजबूत कर रहे हैं लेकिन बिहार के मुख्यमंत्रियों की सीरीज में आज हम बात करते हैं दूसरे सीएम दीप नारायाण सिंह की, जो कि महज 17 दिन तक ही इस पद पर रहे थे।

बिहार के दूसरे सीएम दीपनारायण सिंह महज 13 दिन सीएम रहे थे लेकिन वे एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जाने जाते हैं, जो कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे। वे मूल रूप से भागलपुर के रहने वाले थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब भी भागलपुर आते थे, तो उनके ही आवास पर ठहरते थे और उनसे मुलाकात किए बिना लौटते नहीं थे।

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देशप्रेम के चलते लंदन से लौटे भारत

दीपनारायण सिंह जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन इससे ज्यादा अहम यह है कि उन्होंने भारत के लिए बड़े योगदान दिए। उन्होंने इंग्लैंड की राजधानी लंदन से लॉ की डिग्री ली थी लेकिन देशप्रेम ने उन्हें वापस लौटने को मजबूर कर दिया था। इतना ही नहीं, बैलगाड़ी पर बैठकर स्वराज फंड के लिए एक-एक पैसे जोड़कर एक लाख रुपये जुटाए थे, जिसको लेकर उनकी चर्चा आज भी होती है।

समाज के लिए न्योछावर कर दी थी खुद की प्रॉपर्टी

बिहार के दूसरे और 17 दिन के कार्यवाहक सीएम दीपनारायण सिंह का योगदान सामाजिक, शैक्षणिक व अन्य विकास कार्यों में रहा था। आधुनिक शिक्षा के लिए दीपनारायण सिंह ने लीला-दीप ट्रस्ट संस्थान एवं गरीबों के लिए अपनी पहली पत्नी के नाम पर नाथनगर में एक अनाथालय और स्कूल खोला था, जिनका नाम रमानंदी देवी था।

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दीपनारायण सिंह के योगदान की बात करें तो वे लोगों के लिए इतने ज्यादा प्रतिबद्ध थे कि समाज के विकास के लिए अपनी सारी संपत्ति तक न्योछावर कर दी थी। वे 1909 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बनाए गए थे। दीपनारायण सिंह नमक सत्याग्रह आंदोलन में अहम भूमिका निभा चुके थे।

शुरुआती जीवन पर नजर

बिहार के कार्यवाहक और दूसरे सीएम दीपनारायण सिंह का जन्म 26 जनवरी 1875 को भागलपुर जिले के जमींदार तेजनारायण सिंह के घर में हुआ था। वो जब 13 साल के थे, तब उन्होंने अपने पिता के साथ 1888 में इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। उस दौरान इनकी दोस्ती संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा से हुई और ये दोस्ती फिर फिर लाइफ टाइम तक रही।

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दीपनारायण सिंह 1905-06 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने थे। इसके बाद 1906 से लेकर 1910 तक, बिहार के लगभग सभी प्रांतीय सम्मेलन की अध्यक्षता उन्होंने ही की थी। उन्हें 1909 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया। इसके बाद 1928 में वे बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बने। साल 1930 के नमक सत्याग्रह के दौरान, जब राजेन्द्र प्रसाद (देश के प्रथम राष्ट्रपति) को गिरफ्तार कर लिया गया था, तो उन्होंने दीप नारायण सिंह को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया गया।

1930 में हुई थी गिरफ्तारी

वे अपनी यात्रा के दौरान 27 जुलाई 1930 को आरा और बक्सर गए थे। इसके बाद दीपनारायण सिंह को 27 अगस्त को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें चार महीने तक हजारीबाग की जेल में रखा गया था। महात्मा गांधी से उनके कनेक्शन की बात करें तो उनसे दीपनारायण सिंह की मुलाकात 1920 में हुई थी और उसके बाद दीपनारायण बापू के भी प्रिय बन गए थे।

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महारात्मा गांधी के विचारों उन्हें इतना प्रभावित किया कि जीवन-पर्यंत गांधीवादी रहे। असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। उन्होंने पूरे भागलपुर में बैलगाड़ी पर सवार होकर तिलक स्वराज फंड के लिए अकेले ही एक लाख रुपये जमा कर लिए थे।

देश की पहली संसद में भी रह चुके हैं सदस्य

दीपनारायण सिंह स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत की पहली संसद के सदस्य के रूप में भी काम कर चुके हैं। वे बिहार विधानसभा के सदस्य भी थे। बिहार विधानसभा के सदस्य थे। वे राष्ट्रवादी राजेंद्र बाबू, अनुग्रह बाबू और श्री बाबू की तिकड़ी से जुड़े थे। वे कृष्ण सिंह के बाद बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। 1979 में बिहार के हाजीपुर में पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय द्वारा दीपनारायण सिंह के सम्मान में एक म्युजियम की स्थापना की गई थी।