अयोध्या की तीर्थयात्रा पर आ रहे भक्तों को मंदिर और भगवान श्री राम के दर्शन के अलावा वहां के कुछ और दृश्य अपनी ओर खींच रहे हैं। अयोध्या मंदिर के पास चार एकड़ के रामसेवकपुर परिसर में टिन शेड के नीचे कुछ ऐसा है, जिनका वहां पहुंच रहे भक्त सिर झुकाकर दर्शन कर रहे हैं और आशीर्वाद ले रहे हैं। ये देश और विदेश के विभिन्न कोनों से आए पत्थरों के आठ टुकड़े हैं, जो भक्तों के लिए राम लला की मूर्ति जितना ही पवित्र हैं। ये शिलाएं राम लला की मूर्ति निर्माण के लिए लाए गये थे, हालांकि बाद में मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज की बनाई 51 इंच ऊंची प्रतिमा का चयन कर लिया गया।

रामसेवकपुरम का प्रबंधन विश्व हिंदू परिषद (VHP) करता है। पहले यह गुलाबी बलुआ पत्थरों को काटने और तराशने की कार्यशाला थी। इन्हीं तराशे गए पत्थरों का उपयोग राम मंदिर में किया गया है। राम जन्मभूमि और हनुमान गढ़ी के दर्शन के बाद श्रद्धालु रामसेवकपुरम भी पहुंच रहे हैं। जब महाराष्ट्र से भक्तों का एक समूह शुक्रवार दोपहर रामसेवकपुरम पहुंचा, तो एक स्थानीय गाइड विमल कुमार उन्हें शालिग्राम की छह फुट ऊंची “देवशिला” के पास ले गए। ये फरवरी में नेपाल से राम लला की मूर्ति के लिए लाई गई थीं।

यह आठ शिलाओं में से एक है – दो नेपाल के गलेश्वर धाम से और तीन-तीन राजस्थान और कर्नाटक से लाई गई हैं। भक्तों ने शिलाओं की परिक्रमा की, ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए और “दानपात्र” (दान पेटी) में कुछ नकद रुपये भी डाले। राजस्थान के सीकर से आए अमानाराम ने पत्थरों के बारे में अपनी भावनाएं बताते हुए कहा, ”मैंने सुना था कि यहां रामसेवकपुरम में शालिग्राम पत्थर लाए गए हैं। ये सभी पत्थर पवित्र हैं। मैं राम मंदिर के अंदर राम लला की मूर्ति को कभी नहीं छू पाऊंगा, लेकिन मैं उन पत्थरों को छू सकता हूं जो मूर्तियां बनाने के लिए लाए गये थे।”

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उत्तर प्रदेश के महोबा के एक अन्य भक्त रजनीश पांडे ने देवशिलाओं को माथे से छुकर बोले, “राम विष्णु के अवतार थे और शालिग्राम को विष्णु का ही रूप माना जाता है। इसलिए मैं शालिग्राम और अन्य पत्थरों की पूजा करने के लिए यहां आया हूं।” मुंबई के बजरंग दल कार्यकर्ता प्रकाश बाहेवाल ने कहा, “ये पत्थर पूजनीय हैं क्योंकि ये भगवान राम के लिए हैं।” बाहेवाल ने दावा किया कि वह कार सेवक के तौर पर पहली बार 1989 में अयोध्या आए थे।

उन्होंने याद करते हुए कहा, “उस समय कारसेवकों को गिरफ्तार करने के लिए चारों ओर पुलिसकर्मी थे, आज यहां पुलिसकर्मी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। 1989 में, गिरफ्तारी से बचने के लिए हमें खुद को छिपाना पड़ा। आज मैं उसी अयोध्या में गर्व से घूम रहा हूं। यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कारण हुआ है।” एक स्थानीय विहिप नेता ने कहा कि पत्थरों को पहली बार फरवरी में खुले में रखा गया था, लेकिन जब भक्त आने लगे तो एक शेड बनाया गया। उन्होंने कहा, यहां प्रतिदिन लगभग 15,000 तीर्थयात्री आते हैं। जब राम मंदिर का निर्माण पूरा हो जाएगा तो इन पत्थरों को राम जन्मभूमि में पहुंचा दिया जाएगा। पत्थरों की पूजा करने की वजह के बारे में उन्होंने कहा कि ये रामलला की मूर्ति के लिए लाए गए थे।

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने तीर्थयात्रियों के लिए सीटों की व्यवस्था की, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार रामसेवकपुरम परिसर के अंदर एक मुफ्त चिकित्सा शिविर चला रही है, और वीएचपी शिविर में आने वालों को चाय और रस्क की पेशकश की जाती है।

नेपाल के जनकपुर से एक सप्ताह की 1,000 किमी की सड़क यात्रा के बाद पिछले साल फरवरी में दो शालिग्राम शिलाएं अयोध्या लाई गई थीं। नेपाल के जानकी मंदिर के पुजारियों ने ये शिलाएं ट्रस्ट के पदाधिकारियों को सौंप दी थीं। इस अवसर पर 51 पुजारियों ने भक्तों की भारी भीड़ की उपस्थिति में पूजा-अर्चना की। जानकी मंदिर के पुजारी राम तपेश्वर दास और नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री बिमलेंद्र निधि ने शालिग्राम शिलाएं ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को सौंपी थीं।