राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की तरह 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी नागरिकों को बहु-उद्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान पत्र (MNIC) जारी करने की योजना बनाई थी। उन्होंने एक पायलट प्रोजेक्ट लांच किया था, लेकिन योजना असफल होने पर 2009 में इसे बंद कर दिया गया। इसमें उम्मीद से काफी कम लोगों की ही नागरिकता साबित की जा सकी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक “नागरिकता साबित करना एक जटिल और कठिन कार्य है।” और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के पास जरूरी “दस्तावेज़ों” की भी कमी है।

12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के चयनित 13 जिलों की लगभग 30.95 लाख की आबादी को कवर करने वाला बहु-उद्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान पत्र (MNIC) पायलट प्रोजेक्ट नवंबर 2003 में स्वीकृत हुआ था। औपचारिक रूप से गृह मंत्रालय ने इसे अक्टूबर 2006 में लांच किया था। पायलट परियोजना आधिकारिक तौर पर 31 मार्च 2008 को पूरी हुई थी। मई 2007 से मोटे तौर पर 12 लाख से अधिक एमएनआईसी कार्ड जारी होना शुरू हुए थे। 31 मार्च 2009 को इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।

पायलट प्रोजेक्ट की निगरानी करने वाले सचिवों की समिति के एक सदस्य ने द संडे एक्सप्रेस को बताया कि “नागरिकता एक बहुत ही जटिल और कठिन मुद्दा है।” समिति ने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में, विशेषकर खेतिहर मजदूर, भूमिहीन मजदूर, विवाहित महिलाएं और व्यक्ति अपनी नागरिकता साबित करने के लिए घर पर मौजूद नहीं थे। इससे इस योजना में “कमजोर दस्तावेज” बड़ी समस्या बन गई।

इस परियोजना के लिए 44.36 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई थी, जिसे बिना किसी परिणाम या डेटा को सार्वजनिक किए छोड़ दिया गया। सूत्रों ने कहा कि पायलट प्रोजेक्ट की सफलता दर अभी भी 45% से कम होगी।

यूपीए सरकार ने 2011 में पायलट प्रोजेक्ट के परिणाम को भी स्वीकार किया था, जब तत्कालीन राज्य मंत्री (गृह) गुरुदास कामत ने संसद को बताया था कि “पायलट प्रोजेक्ट के अनुभव से पता चला है कि नागरिकता के निर्धारण की प्रक्रिया बोझिल है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में दस्तावेज़ का आधार कमजोर है।”