Delhi Assembly Polls 2024 AAP Congress: आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेगी। यह फैसला आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की राजनीति को समझने वालों के लिए ज्यादा हैरान करने वाला नहीं है लेकिन कांग्रेस के लिए एक बड़े झटके की तरह जरूर है। कांग्रेस आम आदमी पार्टी से बड़ा राजनीतिक दल है। आप ने एक झटके में गठबंधन से इनकार करने का ऐलान कर कांग्रेस को दिखाने की कोशिश है कि उसे दिल्ली में उसकी कोई जरूरत नहीं है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी 2013 के विधानसभा के चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार भी बना चुकी है हालांकि तब यह सरकार सिर्फ 49 दिन तक ही चली थी और केजरीवाल के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की वजह से सरकार गिर गई थी।
दल मिले थे दिल नहीं
लोकसभा चुनाव 2024 में जब इंडिया गठबंधन बना था तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में गठबंधन किया था। यह गठबंधन भी काफी ना-नुकुर के बाद हुआ था लेकिन फिर भी दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ने पर राजी हुए थे। दिल्ली और हरियाणा में भले ही दोनों दलों ने गठबंधन किया था लेकिन पंजाब में दोनों ने अकेले-अकेले चुनाव लड़ा था। मतलब दल साथ आए थे इन नेताओं के दिल आपस में नहीं जुड़े थे।

दिल्ली की सात सीटों में से आम आदमी पार्टी ने चार और कांग्रेस ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन पूरी ताकत लगाने के बाद भी गठबंधन एक भी सीट नहीं जीत पाया और बीजेपी को सभी सीटों पर जीत मिली थी।
दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर कौन बना सांसद
सीट का नाम | इन्हें मिली जीत |
नई दिल्ली | बांसुरी स्वराज |
चांदनी चौक | प्रवीण खंडेलवाल |
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली | योगेंद्र चंदोलिया |
उत्तर-पूर्वी दिल्ली | मनोज तिवारी |
पूर्वी दिल्ली | हर्ष मल्होत्रा |
दक्षिणी दिल्ली | रामबीर सिंह बिधूड़ी |
पश्चिमी दिल्ली | कमलजीत सहरावत |
दिल्ली में विधानसभा की 70 सीटें हैं। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की एकतरफा लहर चली थी। 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 67 जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
दिल्ली में किसका कितना वोट शेयर
राजनीतिक दल | 2019 लोकसभा चुनाव में (प्रतिशत में) | 2020 विधानसभा चुनाव में (प्रतिशत में) | 2024 लोकसभा चुनाव में (प्रतिशत में) |
बीजेपी | 56.7 | 38.5 | 54.4 |
कांग्रेस | 22.6 | 4.3 | 18.9 (तीन सीटों पर लड़ी थी) |
आप | 18.2 | 53.6 | 24.2 (चार सीटों पर लड़ी थी) |
आइए, जानते हैं कि केजरीवाल के कांग्रेस से गठबंधन करने से इनकार करने के पीछे तीन बड़े कारण कौन से हैं।
1- दिल्ली में कमजोर खिलाड़ी है कांग्रेस
आप के कांग्रेस से गठबंधन न करने की पहली बड़ी वजह यह है कि दिल्ली में कांग्रेस एक कमजोर खिलाड़ी है। पार्टी 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल पाई। 2020 के विधानसभा चुनाव में तो अधिकतर सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी। केजरीवाल इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें कांग्रेस से गठबंधन करके दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई बहुत बड़ा सियासी फायदा नहीं हो सकता।
2- बीजेपी से मिल रही कड़ी चुनौती
इस बार आम आदमी पार्टी को बीजेपी से कड़ी चुनौती मिल रही है। बीजेपी 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद दिल्ली में नई रणनीति के साथ काम कर रही है। वह अपने तमाम बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतार रही है। दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में जीत के बाद पार्टी के हौसले बुलंद हैं।
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में पूर्व सांसद प्रवेश सहिब सिंह वर्मा, मीनाक्षी लेखी और रमेश बिधूड़ी का टिकट काट दिया था। माना जा रहा है कि पार्टी इन तीनों ही नेताओं को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारकर उनके सियासी अनुभव का फायदा लेना चाहती है। इसके अलावा पिछले कुछ महीनों में आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी का हाथ पकड़ लिया है। ऐसे नेताओं में पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत, विधायक ब्रह्म सिंह तंवर प्रमुख हैं। पूर्व मंत्री राज कुमार आनंद, पूर्व विधायक वीणा आनंद के साथ कुछ और नेता भी बीजेपी में शामिल हो गए थे।
केजरीवाल किसी भी सूरत में बीजेपी की ओर से मिल रही चुनौती को हल्के में नहीं लेना चाहते इसलिए वह सभी 70 सीटों पर अकेले लड़ना चाहते हैं।

3- आबकारी घोटाले का साया और स्वाति मालीवाल प्रकरण
दिल्ली में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के सामने कथित आबकारी घोटाला और स्वाति मालीवाल प्रकरण बड़ी चुनौती है। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह जैसे बड़े नेता कथित आबकरी घोटाला मामले में जेल काट चुके हैं। बीजेपी का कहना है कि केजरीवाल ही इस कथित घोटाले के मास्टरमाइंड हैं और आप सरकार ने इसमें करोड़ों का घोटाला किया है।
कथित आबकारी घोटाले के अलावा आम आदमी पार्टी राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल पर हुए हमले की घटना की वजह से भी परेशान है। इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पूर्व पीए विभव कुमार पर मालीवाल ने बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। मालीवाल ने कहा है कि विभव कुमार ने उनके साथ अरविंद केजरीवाल के सरकारी आवास पर मारपीट की।
स्वाति मालीवाल ने इस मामले में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को जिस तरह लगातार घेरा है, उससे महिला सुरक्षा को लेकर पार्टी को जवाब देना भारी पड़ रहा है। बीजेपी भी स्वाति मालीवाल पर हमले के मामले को लगातार उठा रही है।
दिल्ली में पिछले दो विधानसभा चुनाव के आंकड़े इस बात को स्पष्ट रूप से बताते हैं कि दिल्ली में कांग्रेस कोई चुनौती नहीं है हालांकि बीजेपी ने केजरीवाल को घेरने की पूरी कोशिश की है लेकिन वह भी इसमें बहुत हद तक कामयाब नहीं हो पाई है।
याद दिलाना होगा कि अक्टूबर में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से गठबंधन करना चाहते थे लेकिन कांग्रेस उन्हें उनके द्वारा मांगी जा रही सीटें देने के लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद आम आदमी पार्टी ने अकेले ही हरियाणा में चुनाव लड़ा था। इसका नुकसान कांग्रेस को भी हुआ था और वह वहां सरकार नहीं बना सकी थी। शायद केजरीवाल कांग्रेस की ओर से किए गए इस बर्ताव का बदला लेना चाहते थे।
दिल्ली में पिछले कुछ चुनावों के नतीजे
साल | बीजेपी को मिली सीटें | आप को मिली सीटें | कांग्रेस को मिली सीटें |
2013 विधानसभा चुनाव (70 सीटें) | 31 | 28 | 8 |
2014 लोकसभा चुनाव (7 सीटें) | 7 | 0 | 0 |
2015 विधानसभा चुनाव (70 सीटें) | 3 | 67 | 0 |
2019 लोकसभा चुनाव (7 सीटें) | 7 | 0 | 0 |
2020 विधानसभा चुनाव (70 सीटें) | 8 | 62 | 0 |
2024 लोकसभा चुनाव (7 सीटें) | 7 | 0 | 0 |
बीजेपी लगा रही जोर, कामयाबी मिलेगी?
दिल्ली में पहली बार विधानसभा के चुनाव 1993 में हुए थे। तब बीजेपी ने राज्य में अपनी सरकार बनाई थी लेकिन उसके बाद से वह यहां सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकी। 1998 से 2013 तक दिल्ली में कांग्रेस की सरकार रही।
2013 में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार चलाई थी जो सिर्फ 49 दिन चली थी। उसके बाद 2015 और 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल की थी।
2014 में जब केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनी तब से पार्टी को उम्मीद है कि वह एक बार फिर राजधानी में सरकार बनाएगी। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह सहित पार्टी के तमाम नेताओं ने दिल्ली में सरकार बनाने के लिए ताकत झोंकी लेकिन पार्टी को करारी हार मिली और उसके लिए नतीजे बहुत खराब रहे।
2025 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक बार फिर पूरी ताकत जुटाकर मैदान में उतर रही है लेकिन देखना होगा कि क्या वह सरकार बना पाएगी?