आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी सहयोगी आतिशी को मुख्यमंत्री बनवा दिया है। उन्होंने नाखून कटा कर शहीद होने के अंदाज में यह कह कर इस्तीफा दिया कि पूरी तरह से आरोप मुक्त होने तक वे और उनके साथ लंबे समय तक उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया कोई पद नहीं लेंगे। वे इस बात को छुपाना चाहते हैं कि उन दोनों की जमानत की शर्तों में यह शामिल है कि वे न तो सचिवालय जा सकते हैं और न ही कोई फाइल देख सकते हैं। चूंकि किसी के जेल जाने पर जबरन इस्तीफा देने का कोई विधान नहीं है अन्यथा जेल में रहते हुए वे जिस तरह छह महीने वे मुख्यमंत्री बने रहे वह पूरी तरह से अनैतिक था।

शराब घोटाले के आरोप में जेल जाने से केजरीवाल और ‘आप’ की परेशानी यही है कि इस आरोप ने उनके मूल दावे को ही ध्वस्त किया। ईमानदार राजनीति के दावे के साथ ही केजरीवाल राजनीति में आए। भले ही उनकी जीत में मुफ्त बिजली-पानी आदि का असर ज्यादा रहा लेकिन वे और उनके साथी सबसे बड़ी पहचान अपनी ईमानदारी को मानते और प्रचारित करते रहे।

आतिशी और सौरभ को ज्यादा मंत्रालय देना केजरीवाल का नया प्रयोग नहीं

मगर अब उनकी साख दांव पर है। शराब घोटाले ने उनके भविष्य की राजनीति को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। वे और उनकी पार्टी का आरोप है कि भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार उनकी सरकार को काम न करने दे रही है और भ्रष्टाचार के बेबुनियाद आरोप लगा कर परेशान कर रही है।

कुछ महीने के लिए आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने और उनके साथ -साथ ज्यादा विभाग सौरभ भारद्वाज को देना केजरीवाल के लिए नया प्रयोग नहीं है। उन्होंने शुरू से ही अपने पास कोई विभाग नहीं रख कर पहले मनीष सिसोदिया और सतेन्द्र जैन को ज्यादा विभाग दिए। उन दोनों के जेल जाने का बाद आतिशी और सौरभ भारद्वाज को ज्यादा विभाग दिए। मुख्यमंत्री पद छोड़ने के समय उन्होंने चुनाव आयोग से फरवरी, 2025 के बजाए इसी साल नवंबर में विधान सभा चुनाव कराने की मांग की।