भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लगातार तीसरी बार हरियाणा में जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। राजनीतिक पंडितों से लेकर सभी सर्वेक्षण भाजपा की विदाई की बात कह रहे थे लेकिन अन्य कारणों के साथ ही केंद्रीय मंत्री अमित शाह और धर्मेंद्र प्रधान की रणनीति से पार्टी ने इस प्रदेश में बाजी को पलट दिया। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा 27 मौजूदा सीटें बचाने में कामयाब रही है तो 22 नई सीटें भी जीती हैं। इनमें से नौ नई सीटें जाटों के गढ़ से जीती हैं। इसी के साथ हरियाणा के 57 साल के इतिहास में भाजपा पहली पार्टी है जो लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है।

अमित शाह ने हरियाणा के लिए बूथ स्तर की रणनीति तैयार की थी। इसके अलावा पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को ‘जब तक परिणाम न आ जाएं तब तक हार नहीं मानने’ की रणनीति पर काम करने के लिए कहा था। इसके अलावा प्रदेश के लिए चुनाव प्रभारी बनाए गए धर्मेंद्र प्रधान ने सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के लिए बड़े से बड़े नेता का टिकट काटने में संकोच नहीं किया। इसकी वजह से प्रदेश में मतदान से पहले बड़े पैमाने पर बगावत भी देखने को मिली लेकिन आखिरकार यह रणनीति कामयाब हुई। इतना ही नहीं प्रधान की टीम ने 25 पर टिकट बदले थे, उनमें से 16 उम्मीदवार जीत रहे हैं या आगे हैं यानी 67 फीसद। साफ है कि भाजपा का टिकट बदलने का फार्मूला काम कर गया।

भाजपा ने चुनाव के दौरान कांग्रेस के जमाने की याद दिलाते हुए ‘पर्ची-खर्ची’ का मुद्दा उठाया। भाजपा ने बिना पर्ची-बिना खर्ची नौकरी देने का चुनावी नारा भी दिया। इस मुद्दे का न केवल स्थानीय नेताओं ने अपने भाषण में जिक्र किया बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भी अपनी रैलियों में जमकर इस मुद्दे पर बात की। युवा के मन में यह बात बैठ गई। साथ ही भाजपा की यह बात भी नौजवानों को पसंद आई कि उन्होंने कांग्रेस के कार्यकाल से दोगुनी नौकरी दी हैं।

सवर्ण वोटों को लेकर बीजेपी थी आश्वस्त

प्रदेश में इस उलटफेर के पीछे का कारण गैर जाट वोटों के ध्रुवीकरण को भी माना जा रहा है। हरियाणा में 36 से ज्यादा बिरादरी हैं और इनमें सबसे बड़ी आबादी जाटों की है। भाजपा ने यहां गैर-जाट की राजनीति करनी शुरू कर की। सवर्णों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी और राजपूत वोटों को लेकर आश्वस्त थी।

हरियाणा के बाद अब महाराष्ट्र पर BJP की नजर, मराठा मुकाबले के लिए पार्टी की क्या है रणनीति?

भाजपा को इस बार दलितों का भी खूब साथ मिला। भाजपा ने पिछड़े और दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। हरियाणा में अनुसूचित जातियों (एससी) की कुल जनसंख्या करीब 20 फीसद है और एससी समुदाय के लिए कुल 17 सीटें आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 17 में से 4 सीटें जीती थीं। जबकि इस बार भाजपा एससी के लिए आरक्षित सीटों में सात पर जीत रही है। इतना ही नहीं कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा के बारे में तथाकथित भूपेंद्र हुड्डा समर्थक की अभद्र टिप्पणी ने एक खास वर्ग को नाराज किया। खुद कुमारी सैलजा ने करीब 12 दिनों तक चुप्पी साधे रखी। इस मुद्दे को भाजपा ने दलित अपमान से जोड़ा और खूब भुनाया। बाद में राहुल गांधी के साथ उन्होंने मंच साझा किया। वे खुद को मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार बता चुकी हैं।

राहुल-प्रियंका ने की थी 70 रैलियां

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 150 से ज्यादा रैलियां कीं। चार रैलियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और 10 गृहमंत्री अमित शाह ने की थीं। मोदी ने अपनी चार रैली से 20 सीटों को कवर किया। वहीं, कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत 70 रैलियां ही की हैं।