कोरोनावायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था। 24 मार्च के बाद से लगातार बंद होते उद्योगों और व्यापारों से दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई। हजारों की संख्या में तो प्रवासी अपने घरों की तरफ पैदल ही कूच कर गए, लेकिन कई लोग जहां-तहां फंस गए। इससे उनके परिवारों के खाने-पीने तक की समस्याएं पैदा हो गई। कर्नाटक में भी हाल ज्यादा अलग नहीं रहा। इन्हीं स्थितियों के बीच कोलार के रहने वाले दो मुस्लिम भाई बेबस लोगों के लिए सहारा बन कर आगे आए।
कोलार के रहने वाले भाई तजामुल और मुजम्मिल पाशा ने खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए बाकियों से आगे कदम उठाते हुए, अपनी जमीन तक बेच दी। इस बिक्री से उन्हें कठिन समय में 25 लाख रुपए मिले, जिसे उन्होंने अपने भाइयों के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों की भलाई में लगाया है, जिन्हें लॉकडाउन में मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है।
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दोनों भाई घर बेचकर जुटाए गए पैसों से जरूरतमंदों के लिए राशन और सब्जियां खरीद रहे हैं। वे अब तक कोलार में 2800 परिवारों के 12 हजार लोगों को मदद पहुंचा चुके हैं। दोनों ने 25 लाख जुटाने के बाद सबसे पहले दोस्तों के जरिए थोक में राशन और सब्जियां जुटाना शुरू किया और अपने घरों में इकट्ठा करने लगे। इसके बाद दोनों ने राशन पैकेट बनाए, जिसमें 10 किलो चावल, 1 किलो आटा, 1 किलो गेहूं, 1 किलो चीनी, तेल, चाय पत्ती, मसाले, हैंड सैनिटाइजर और फेस मास्क रखे गए।
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दोनों भाई यह राशन पैकेट लोगों के घर पहुंचाने तक ही नहीं रुके। उन्होंने अपने घर के पास एक टेंट लगाया, जिसमें कम्युनिटी किचन शुरू किया गया, ताकि जो घर में खाना नहीं बना सकते, उन्हें भी भूखा न रहना पड़े। खास बात यह है कि तजामुल और मुजम्मिल की इस पहल को पुलिस की भी मदद मिली। पुलिस ने उनके साथियों को जरूरी खरीदारी के लिए पास जारी किए।
माता-पिता के देहांत के बाद चौथी क्लास में पढ़ाई छोड़ी, तब हर धर्म ने खिलाया था खानाः तजामुल
तजामुल का कहना है कि जब वह आठ साल और उसका भाई मुजम्मिल 5 साल का था, तभी उनके माता-पिता गुजर गए। इसके बाद वे दादी के साथ कोलार आ गए थे। पैसे की कमी की वजह से उन्हें चौथी क्लास में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। तजामुल के मुताबिक, “इस दौर में एक दयालु व्यक्ति ने उन्हें मस्जिद के पास घर दे दिया। हिंदू, मुस्लिम, एक सिख परिवार व कई अन्य लोग उन दिनों हमें खाना देते थे। धर्म और जाति हमारे लिए कभी बाधा नहीं बना। हमें मानवता साथ लाई और अब भी हम मानवता के लिए काम कर रहे हैं। उन दिनों ने हमें खाने का महत्व महसूस कराया था।”