इराम सिद्दिकी
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की अंतरराज्यीय सीमा पर बिजासन घाट पर पिछले दो दिनों से हजारों प्रवासी मजदूर किसी साधन का इंतजार कर रहे हैं जो उन्हें उनके गांवों तक ले जा सके। उसी भीड़ में शंभू राजभर हैं जिनके चेहरे पर हताशा, निराशा और गुस्सा झलक रहा है। राजभर को इंतजार है ऐसी किसी बस का जो उन्हें भारत-नेपाल की सीमा पर यूपी के महाराजगंज पहुंचा सके। उनकी इस यात्रा का नया पड़ाव यूपी के महाराजगंज जिले में स्थित उनका गांव है।
हालांकि, उत्तर की ओर जाने के इस गेटवे पर वो अकेले जद्दोजहद नहीं कर रहे। उनकी ही तरह करीब 13,000 प्रवासी मजदूर पिछले कुछ दिनों में बरवनी जिले के इस घाट पर इकट्ठा हुए हैं। ये सभी लोग यूपी, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कामगार हैं, जो कोरोना संकट और लॉकडाउन में रोजी-रोटी छिन जाने पर अपने-अपने घरों को वापस जाना चाहते हैं।
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राजभर के विपरीत कई ऐसे लोग भी हैं जो इंतजार नहीं कर पा रहे हैं। मुंबई में प्लम्बरिंग का काम करने वाले एक शख्स के अलावा कई लोग गुरुवार (14 मई) को पुलिसवालों के साथ भिड़ गए। थके, हारे, गुस्साए प्रवासी मजदूरों ने पुलिस पर ईंट-पत्थर भी फेंके और बाद में एनएच जाम कर दिया।
10 मई, जब से महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों को बसों से बिजासन घाट पहुंचाना शुरू किया है, तब से यह जगह रणक्षेत्र के रूप में तब्दील हो चुका है। लोग बसों में चढ़ने के लिए मारामरी कर रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार के परिवहन विभाग के मुताबिक अब तक करीब 1.36 लाख प्रवासी मजदूरों को राज्य की अलग-अलग सीमाओं पर सरकारी बसों से पहुंचाया जा चुका है। इनमें से 70 फीसदी को एमपी बॉर्डर भेजा गया है।
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