प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च के आखिरी हफ्ते से ही देश में कोरोनावायरस संक्रमण के खतरे का हवाला देते हुए लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था। इसके चलते लाखों की संख्या में प्रवासी जहां-तहां फंस गए। कुछ ने तो साधन न होने के बाद पैदल ही लौटने का फैसला कर लिया, तो कुछ ने जब तक उनके पास पैसे थे, तब तक अपने घरों से दूर रहने का ही फैसला किया। हालांकि, अब ज्यादातर राज्यों में प्रवासी मजदूर फिर सड़कों पर आ गए हैं। रविवार को बड़ी संख्या में एक बार फिर प्रवासियों को मास्क लगाए और बैग टांगे दिल्ली से पैदल ही उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर लौटते देखा गया। पुलिस ने इन सभी को गाजियाबाद की सीमा पर ही रोक लिया।

जब एक व्यक्ति से इस बारे में पूछा गया, तो उसने कहा, “हमारे पास अब पैसे नहीं बचे हैं। न ही खाने के लिए और न ही घर का किराया देने के लिए। जीना मुश्किल हो गया है। हमें किसी तरह घर पहुंचना है। हमारे लिए कोई भी बस या ट्रेन सेवा तक शुरू नहीं की गई है।”

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गौरतलब है कि सरकार ने कई राज्यों में प्रवासी मजदूरों को लाने-ले जाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है। हालांकि, एक समय में एक ट्रेन से 1200 लोगों को ही भेजा जा सकता है। दूसरी तरफ इसके लिए प्रवासी मजदूरों को रजिस्ट्रेशन के लिए लंबी लाइनों में भी लगना पड़ता है और उनके चयन की सूचना मैसेज पर मिलने के बाद ही उन्हें ट्रेन या बस से ले जाने के लिए बुलाया जाता है।

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक दिन पहले ही कहा था कि उनकी सरकार राज्य के हर श्रमिक और कामगार को सुरक्षित घर तक पहुंचाएगी। उन्होंने बताया था कि कई राज्यों से श्रमिकों को लेकर चलीं 79 ट्रेनें प्रदेश पहुंचेंगी या पहुंच चुकी हैं। इसके अलावा 10 हजार से ज्यादा बसों को भी श्रमिकों को अपने घर पहुंचाने के लिए लगाया गया था। सीएम योगी ने इस दौरान अपील की थी कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए कोई भी व्यक्ति पैदल या साइकिल से घर पहुंचने की जल्दी न करे।