अंबाला छावनी की गिनती हरियाणा के चर्चित विधानसभा हलकों में होती है। पूर्व गृह मंत्री अनिल विज के विधानसभा क्षेत्र वाली इस सीट पर इस बार मुकाबला तिकोना माना जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व कांग्रेस दोनों ने अपनी पूरी ताकत झोंकी हुई है, लेकिन यहां से आजाद उम्मीदवार के रूप में उतरीं चित्रा सरवारा ने मुकाबलों को इस बार भी रोचक बना दिया है। चित्रा पूर्व मंत्री निर्मल सिंह की बेटी हैं, जो अंबाला सिटी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।
टिकट न मिलने पर चित्रा ने बागी होकर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन किया। भाजपा की ओर से अनिल विज सातवीं बार मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने सैलजा समर्थक परविंदर सिंह परी को टिकट दिया है। इंडियन नैशलन लोकदल (इनैलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन व आम आदमी पार्टी (आप) भी यहां अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं। इनैलो-बसपा के प्रत्याशी ओंकार सिंह भी दमखम के साथ चुनावी मैदान में है।
भले ही मुकाबला त्रिकोणीय लगता है, लेकिन असल में लड़ाई एक बार फिर विज और चित्रा के बीच नजर आ रही है। 2019 में भी कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतारा था लेकिन तब भी चित्रा ने बागी होकर चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रही थीं। तब कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई थी। इस बार भी स्थित वैसी ही है, लेकिन इतना फर्क जरूर है कि कांग्रेस के परविंदर सिंह परी चित्रा और विज दोनों के लिए चुनौती बने हुए हैं।
हरियाणा की राजनीति में विज का बड़ा है कद
पार्टी में ही नहीं सूबे की राजनीति में भी अनिल विज का सियासी कद काफी बड़ा माना जाता है। हाल में उन्होंने मुख्यमंत्री पद का दावा भी ठोक दिया है। वह प्रदेश भाजपा की पहली कतार के नेताओं में शामिल हैं। लोगों का मानना है कि उनके कार्यकाल में छावनी क्षेत्र में विकास के रेकार्ड काम हुए हैं। अपनी साफगोई व दबंग रवैये के चलते वह हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। 2019 में विज ने यह सीट करीब 20 हजार मतों से जीती थी लेकिन कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी बंतो कटारिया को यहां से करीब तीन हजार मतों की बढ़त ही मिल पाई थी। इसलिए विज भी अधिक जोर लगा रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अंबाला के बराड़ा में हुई चुनावी रैली में विज की अनुपस्थिति पर भी कई सवाल उठे थे।
परी और चित्रा छावनी की खुदी पड़ी सड़कों और जलभराव के मुद्दे पर विज को घेर रहे हैं। चित्रा को जहां हलके में महिलाओं, युवाओं व ग्रामीण इलाकों का अच्छा खासा खासा समर्थन मिल रहा है, वहीं परविंदर परी को इस बार कांग्रेस पार्टी के काडर वोटों और सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिलने की उम्मीद है। हालांकि उनके साथ कोई बड़ा नेता खड़ा नजर नहीं आ रहा। अगले कुछ दिनों में कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री सैलजा व और कांग्रेसी नेता उनके चुनाव प्रचार के लिए आ सकते हैं। परी का यह पहला चुनाव है।
परिणाम का होगा दूरगामी असर
अभी यह देखना है कि वह किसके वोट बैंक में ज्यादा सेंध लगाते हैं और अंबाला की सियासत में अपनी कितनी मजबूत पहचान बना पाते हैं। दरअसल, अंबाला छावनी का चुनाव इस बार कई नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है। कहा जा रहा है कि नतीजा जो भी हो लेकिन अंबाला की राजनीति में इसका दूरगामी असर होगा।
