दारूल उलूम की सर्वोच्च प्रबंध समिति के वरिष्ठ सदस्य एवं ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के अध्यक्ष और असम की डूबरी लोकसभा सीट से दूसरी बार सांसद बने मौलाना बदरूद्दीन अजमल ने दो टूक कहा कि उनकी पार्टी असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी बनाकर चुनाव में उतरेगी। दारूल उलूम की मजलिसे शूरा की बैठक में भाग लेने के बाद मौलाना बदरूद्दीन ने यह कहा।
मौलाना बदरूद्दीन की एआइयूडीएफ के 126 सदस्यीय असम विधानसभा में सत्तारूढ कांग्रेस के बाद सबसे बड़ा दल है। उसके 18 विधायक और तीन सांसद हैं। मौलाना ने कहा कि उनकी पार्टी ने यह अंतिम निर्णय लिया है कि वह किसी भी सूरत में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे। मौलाना ने कहा कि पहले तो उन्हें यह भरोसा है कि उनकी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो वह न कांग्रेस के साथ जाएंगे और न भाजपा के साथ जाएंगे। तात्कालिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेंगे।
बदरूद्दीन ने बिहार में नीतीश कुमार की जीत पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश कुमार की अगुवाई में बनने वाले मोर्चे में वह शामिल हो सकते हैं पर तब भी विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में एआइयूडीएफ अतुल बड़ा की अगुवाई वाले असम गण परिषद, जिसके 9 विधायक है, के साथ गठबंधन कर सकते हैं। तृणमूल कांग्रेस और हगरामा की अगुवाई वाली बीपीएफ के साथ भी गठबंधन पर विचार हो सकता है।
उन्होंने कहा कि इस बार हमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों से लड़ना होगा। पिछले चुनाव में मुकाबला कांग्रेस से था। असम में आज भाजपा बड़ी चुनौती है। पिछले चुनाव में उसके पांच विधायक चुने गए। लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 14 में से सात सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई। असम में एआइयूडीएफ ने लोकसभा चुनाव में आठ सीटें लड़ी थी और तीन जीती थी। उन्होंने कहा कि इस बार उनका इरादा विधानसभा की 75-80 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का है। यदि हमें दमदार उम्मीदवार मिलते हैं तो हम सभी 126 सीटों पर भी चुनाव लड़ सकते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोगों को बहुत आशाएं थी। लेकिन ऐसा लगता है कि वह राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के दबाव से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। भाजपा और संघ के अनुसांगिक संगठनों के कई नेता देश में ऐसा माहौल बनाने में लगे हैं जिससे असहिष्णुता बढ़ रही है। जो देश के लिए अच्छा नहीं है। इस वजह से भी नरेंद्र मोदी की छवि और अपील प्रभावित हुई है। जिसका भाजपा को बिहार में खामियाजा उठाना पड़ा है।
उन्होंने कहा कि असम में बांग्लादेशी नागरिकों की मौजूदगी का हौवा खड़ा कर सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश होती है। हमने नेशनल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (एनआरसी) का स्वागत किया है। जिसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में हो रही है। इसकी जो भी रिपोर्ट होगी उसे स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार असम से 18 माह के दौरान एक भी बांग्लादेशी नागरिक को नहीं निकाल पाई है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई अल्पसंख्यक और आदिवासी इलाकों में साधारण लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने तक में विफल रहे हैं। कांग्रेस पिछले 14 वर्षों में वहां लगातार सत्ता में है। लेकिन अल्पसंख्यकों के इलाके में चिकित्सा, शिक्षा, संपर्क मार्ग, सड़के, बिजली-पीने का पानी जैसी कोई सुविधा जनसाधारण को नहीं मिली हुई है। एआइयूडीएफ का चुनाव में इन क्षेत्रों का विकास ही मुख्य एजंडा होगा। करीब 35 फीसद मुसलिम आबादी वाले असम में एआइयूडीएफ जिस तरह से एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी है उससे बदरूद्दीन अजमल इतने उत्साहित है कि वह मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं। इस पर उनका कहना था कि यह असम की जनता तय करेगी की उनका भाग्य विधाता कौन होगा।

