‘बैरिकेड’ सरकार

यह जरूरी नहीं कि हर बार दिल्ली पुलिस ही अवरोधक लगाकर प्रदर्शनकारियों को रोके, कई बार सरकार भी अवरोधक का काम करती है। बीते दिनों किसान आंदोलन में ऐसी स्थिति बनती दिखी। करीब दो महीने की गोलबंदी के बाद कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली कूच की हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उतराखंड आदि जगहों से मुकम्मल शुरूआत हुई थी।

पहले दिन ही दिल्ली में 50 हजार की भीड़ जुट जाना तय था। मसला केवल प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं था। खुफिया सूचना थी कि किसान राशन-पानी से भरी ट्रैक्टर लेकर दिल्ली पहुंच रहे है और लंबा टिकने के मूड में हैं। केंद्र के भी हाथ-पांव फूलने लगे। बस क्या था, दिल्ली से सटे दोनों राज्यों में किसान कानून लाने वाली पार्टी की ही तो सरकार है।

इशारा क्या हुआ, हरियाणा-यूपी की सरकारें भी मानो दिल्ली पुलिस की भुमिका में आ गर्इं। किसी ने ठीक ही कहा है, अगर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इस समय भाजपा की सरकार नहीं होती तो दिल्ली में किसान ही किसान नजर आते। कहना गलत नहीं होगा कि दोनों प्रदेश की सरकार किसानों के लिए उनके दिल्ली कूच के खिलाफ ‘बैरिकेड-सरकार’ ही बन गई।

मझधार में पुलिस

दिल्ली में किसानों के आंदोलन से दिल्ली पुलिस की फजीहत सामने आ गई। पुलिस ने पहले यह तय कर रखा था कि किसी भी हालत में किसानों को दिल्ली में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी और इसके लिए उसने कमर भी कस ली थी, लेकिन दिल्ली सरकार के अचानक यह कहने पर कि वह किसानों के लिए दिल्ली के स्टेडियम को जेल में तब्दील करने की इजाजत नहीं देगी, पुलिस की ऐसी की तैसी हो गई। आनन-फानन में केंद्र सरकार से अनुमति लेकर तय किया गया कि किसानों को सिंघु बॉर्डर के निरंकारी परिसर में आने की अनुमति दी जाए। तब यह कहना कोई गलत नहीं होगा कि पुलिस ना इधर की रही और न उधर की।

दलों की रसोई

राजनीति नेताओं को कहां से कहां ले जाती है, इसका उदाहरण किसानों के प्रदर्शन पर निगम और राज्य सरकार के बंदोबस्त से पता चलता है। एक तरफ दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार किसानों के लिए पूरा द्वार खोले हुए है तो दूसरी तरफ कांग्रेस और भाजपा में भी तीमारदारी के लिए भागमभाग शुरू हो गई है। नतीजा यह हो गया है कि कहीं भाजपा कहीं आप और कहीं कांग्रेस तीनों ने किसानों के लिए एक साथ रसोई का बंदोबस्त कर दिया है। इसीलिए कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है।

मजबूरी में कार्रवाई

कोविड-19 को लेकर मास्क नहीं पहनने पर जूर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। पर बीते दिनों सत्ता दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एक विधायक को जन्मदिन की पार्टी देने के लिए जब पहुंचे तो सभी नियम को ताक पर रख दिया। किसी ने फोटो खींच ली और उसे सोशल मीडिया के साथ जिला पुलिस के वॉट्सऐप ग्रुप में साझा कर दिया। अब पुलिस के सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो गई।

कार्रवाई करे तो छुटभैया नेता नाराज, विधायक के भी नाराज होने का डर। अगर कार्रवाई नहीं करे तो वायरल तस्वीर पर मीडियाकर्मियों को कार्रवाई के संबध्ां में जवाब देने की मजबूरी। आखिरकार जिला पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ना चाहते हुए भी कोविड-19 के निर्देशों के उल्लंघन करने का मामला दर्ज कर लिया।

हालांकि, कार्रवाई के नाम पर क्या खेल किया गया इसका अंदाजा पहले भी था और मामला दर्ज होने के साथ भी साफ हो गया। फोटो में तकरीबन 20-25 लोग दिख रहे थे। किसी ने मास्क नहीं लगा रखा था। पर पुलिस ने मामला दर्ज करते वक्त ना तो संख्या का जिक्र किया था और ना ही किसी के काम का जिक्र किया था। इससे तो यही लगता है कि यह कार्रवाई मजबूरी में की गई कार्रवाई के अलावा कुछ और नहीं था।

चुनाव का असर

बिहार चुनाव का असर दिल्ली के नेताओं की दूरियों पर भी साफ नजर आ रहा है। दिल्ली के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी व संगठन महामंत्री सिद्धार्थन एक बार फिर से एक साथ नजर आ रहे हैं। जानकार बता रहे हैं कि बिहार में उनके रंग ढंग का असर है कि पार्टी के संगठन मंत्री इन दिनों पूर्व प्रदेश के साथ कई कार्यक्रमों में एक साथ नजर आए हैं। इन प्रमुख कार्यक्रमों में पूर्व प्रदेश के अध्यक्ष के साथ रहने की चर्चा भी पार्टी के नेताओं के लिए चर्चा की बात बनी हुई है। मनोज तिवारी बिहार में एक फायर ब्रांड नेता हैं और उनका असर इस चुनाव में उभर कर आया है।

सुर्खियों तक योजनाएं

मीडिया की सुर्खियों में आने के लिए शुरू की जा रही सरकारी योजनाएं चंद दिनों में दम तोड़ देंगी। इस कड़ी में हाल ही में नोएडा प्राधिकरण ने प्लास्टिक लाओ, कपड़े का थैला ले जाओ की मुहिम शुरू की है। बड़े जोर शोर से प्रचारित कर इस योजना की शुरुआत जिस दिन हुई, उस दिन बामुशकिल चंद लोगों ने प्लास्टिक देकर अधिकारियों से कपड़े का थैला लेते हुए फोटो खिंचवाए। यही फोटो, समाचार पत्र, इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया पर छाए रहे।

लेकिन शुरुआत के अगले दिन किसी नागरिक ने प्लास्टिक देकर थैला लिया या लोगों तक इसके बाबत जागरूकता के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। लिहाजा, महज एक दिन बाद के बांटे गए थैलों या जमा हुई प्लास्टिक का कोई ब्योरा नहीं है। इससे पहले भी प्राधिकरण ने एकल इस्तेमाल योग्य प्लास्टिक व थर्मोकोल के उपयोग को बंद करने के लिए कई ऐसे ही अभियान चलाए थे। जैसे नोएडा स्टेडियम परिसर में बर्तन बैंक स्थापित किया गया था।

जहां पर भंडारे, समारोह आदि के लिए बर्तन लेकर थर्मोकोल के उत्पादों के विकल्प में शुरू किया गया था। बर्तन बैंक का उपयोग चंद दिनों तक सक्रिय रहा। उसके बाद बर्तन बैंक की स्थापना दस्तावेजों में सीमित रह गई है। यहां तक कि लोग भी बर्तन बैंक को भूल चुके हैं। नतीजतन कोविड काल में लागू पूर्णबंदी के दौरान जमकर एकल इस्तेमाल योग्य प्लास्टिक, पॉलीथीन की थैलियों का इस्तेमाल खुद सरकारी कर्मचारियों की देखरेख में हुआ।
-बेदिल