कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच किसान आंदोलन को लेकर घमासान जारी है। बीजेपी जहां इस आंदोलन की मंशा पर सवाल खड़े कर रही है वहीं अब किसानों के आंदोलन से भी अलग-अलग आवाजें सामने आने लगी हैं। आज तक पर डिबेट के दौरान एंकर चित्रा त्रिपाठी ने किसान नेता राकेश टिकैत से जब पूछा कि आपको क्या लगता है किसानों के लिए इस आंदोलन को आगे इस समय चलाना ठीक है? क्या आपको नहीं लगता कि कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया जाना चाहिए? इस पर राकेश टिकैत कहने लगे कि क्या केंद्र सरकार ये गारंटी देने को तैयार है कि अगर किसान आंदोलन खत्म हो गया तो कोरोना देश से खत्म हो जाएगा। सरकार को बंगाल, यूपी चुनाव में भीड़ नहीं दिखी पर किसान आंदोलन में भीड़ दिख रही है। एंकर ने डिबेट में पूछा कि किसानों के दूसरे गुट ने कहा कि जब किसान बचेंगे नहीं तो आंदोलन कौन करेगा? राकेश टिकैत ने कहा कि जिन लोगों ने ये बात कही है वे अपने घर जा सकते हैं।

गौरतलब है कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तीन कृषि कानूनों पर बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया। किसान पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। किसानों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन वे तीन केंद्रीय कानूनों पर गतिरोध को तोड़ने में विफल रही है। एसकेएम में किसानों के 40 संघ शामिल हैं। उसने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि उसने सरकार से प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ फिर से बातचीत शुरू करने को कहा है।

एक सरकारी समिति ने 22 जनवरी को किसान नेताओं से मुलाकात की थी। 26 जनवरी के बाद से दोनों पक्षों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है। गणतंत्र दिवस के दिन ही राष्ट्रीय राजधानी में किसानों की ट्रैक्टर रैली हिंसक हो गई थी।

एसकेएम ने एक बयान में कहा, “संयुक्त किसान मोर्चा ने आज प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किसानों से बातचीत फिर से शुरू करने को कहा है। इस पत्र में किसान आंदोलन के कई पहलुओं और सरकार के अहंकारी रवैये का जिक्र है। ”

उसने कहा कि प्रदर्शनकारी किसान नहीं चाहते हैं कि कोई भी महामारी की चपेट में आए। साथ में वे “संघर्ष को भी नहीं छोड़ सकते हैं, क्योंकि यह जीवन और मृत्यु का मामला है और आने वाली पीढ़ियों का भी।” पत्र में कहा गया है, “कोई भी लोकतांत्रिक सरकार उन तीन कानूनों को निरस्त कर देती, जिन्हें किसानों ने खारिज कर दिया है, जिनके नाम पर ये बनाए गए हैं और मौके का इस्तेमाल सभी किसानों को एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने के लिए करती… दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार के मुखिया के रूप में, किसानों के साथ एक गंभीर और ईमानदार बातचीत को फिर से शुरू करने की जिम्मेदारी आप पर है।”

किसानों के संगठन ने हाल ही में दिल्ली की सीमाओं पर उनके प्रदर्शन के छह महीने पूरे होने के मौके पर 26 मई को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में लोगों से 26 मई को अपने घरों, वाहनों और दुकानों पर काले झंडे लगाने की अपील की।