विपक्ष ने 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर खुद को एक करने का काम कर लिया है। नाम भी दिया गया है इंडिया। यानी कि जमीन पर नेरेटिव भी सेट किया जा रहा है और देशभक्ति वाली पिच पर भी बीजेपी को चुनौती देनी की तैयारी है। लेकिन वो चुनौती तभी सही मायनों में दी जा सकेगी जब इंडिया गठबंधन खुद को कई दूसरी चुनौतियों से उबार पाएगा। अभी तक इंडिया गठबंधन ने दो बैठक कर ली हैं, लेकिन सीट शेयरिंग, चेहरे और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर ज्यादा आगे नहीं बढ़ा गया है।

हर पार्टी को करना विकास, सीटों पर समझौता कैसे?

अब विपक्ष का ये कुनबा एक बार फिर एकजुट होने जा रहा है। इस बार मुंबई में 31 अगस्त से 1 सितंबर तक फिर कई मुद्दों पर चर्चा की जानी है। अब इन मुद्दों में सीट शेयरिंग वाला मुद्दा कहां रहता है, इसी पर आगे का सारा खेल चलने वाला है। जब तक सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हो जाता, अंदरूनी झगड़ों से इंडिया गठबंधन ग्रस्त रहने वाला है। इस समय कई पार्टियों की तरफ से डिमांड आनी शुरू हो चुकी है। कोई दिल्ली में सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है तो किसी को अब महाराष्ट्र में अपना विकास करना है। यानी कि एकजुट होना है, लेकिन निजी स्वार्थ को नहीं त्यागना।

AAP को साथ लेकर चलना कांग्रेस के लिए मुश्किल

ये इस समय विपक्षी एकता में एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। इसकी शुरुआत राजधानी दिल्ली से हो गई जब कांग्रेस ने ऐलान कर दिया कि वो सभी सात सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है। मतलब एक तरफ आम आदमी पार्टी को इंडिया का हिस्सा बनाया जा रहा है तो दूसरी तरफ उसी को चुनौती देने की बात भी हो रही है। जानकार कांग्रेस के इस कदम को विपक्षी एकता में एक बड़ी दरार की तरह देख रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की पार्टी कहने को अभी कई राज्यों में मजबूत नहीं है, लेकिन दिल्ली और पंजाब में उसने खुद को साबित कर दिया है। प्रचंड बहुमत वाली सरकार चलाई जा रही है, ऐसे में यहां पर उसकी बारगेनिंग पावर ज्यादा है। लेकिन उस बीच कांग्रेस का ये कहना कि वो दिल्ली में सभी सात सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी, इसने AAP को नाराज कर दिया है।

इसी तरह उद्धव गुट की शिवसेना भी महाराष्ट्र में दूसरी सहयोगी पार्टियों के लिए ज्यादा सीटें छोड़ने को राजी नहीं है। संजय राउत ने भी कह दिया है कि हर पार्टी को अपना विकास करने की जरूरत है। अब विकास जरूरी है, लेकिन किस कीमत पर? मोदी को हराने की बात चल रही है, बीजेपी को रोकने की बात कही जा रही है, लेकिन उसके लिए जो समझौता किया जाना है, उस पर सब अभी तक राजी नहीं दिख रहे हैं।

सीट शेयरिंग में हर राज्य कांग्रेस के लिए चुनौती

वैसे सीट शेयरिंग वाली चुनौती तो अभी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों में भी आने वाली है। यूपी में अखिलेश यादव की सपा, कांग्रेस के सामने चुनौती रहेगी तो बंगाल में ममता बनर्जी टीएमजी के लिए ज्यादा सीटें चाहेंगी। इसी तरह बिहार में आरजेडी और जेडीयू के बीच कांग्रेस की बारगेनिंग पावर कम रह जाएगी। इसके ऊपर गुजरात जहां पर इस बार AAP ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा, ऐसे में केजरीवाल भी अपनी पार्टी के लिए यहां से कुछ सीटें जरूर चाहेंगे। यानी कि सीट शेयरिंग ही सबसे बड़ी सिरदर्दी है, जब तक इस पर मंथन नहीं हो जाता, इंडिया गठबंधन की ये राह कन्फ्यूजन से भरी मानी जाएगी।

मोदी बनाम राहुल, कितने नेता सहमत?

अब सीट शेयरिंग पर चर्चा करनी है तो इसके साथ-साथ मोदी बनाम कौन वाले सवाल का जवाब ढूंढना भी जरूरी हो गया है। विपक्ष ज्यादा लंबे समय तक खुद को इस सवाल से नहीं बचा सकता है। बीजेपी की सबसे बड़ी रणनीति ही ये है कि मुकाबले को किसी तरह मोदी बनाम कौन पर लाया जाए। ऐसे में जब तक विपक्ष की तरफ से मजबूत चेहरा प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा, बीजेपी की राह आसान बन जाएगी। अभी के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मोदी सरनेम मामले में राहत मिल गई है, ऐसे में कांग्रेस जरूर उन्हें ही आगे करना चाहेगी। लालू प्रसाद से लेकर कुछ दूसरे नेता इसका समर्थन भी कर सकते हैं। लेकिन क्योंकि खुलकर कुछ नहीं कहा जा रहा, ऐसे में राहुल की दावेदारी को लेकर अभी पुष्टि नहीं की जा सकती।

प्रचार की रणनीति क्या होगी?

वैसे इस बार जो मुंबई में बैठक होने जा रही है, उसमें इस बात पर चर्चा जरूर की जाएगी कि किन मुद्दों को लेकर इंडिया गठबंधन आगे बढ़ने वाला है। जोर देकर कहा गया है कि लोगों के बीच में कई मुद्दों को लेकर जागरूकता फैलाना जरूरी है। उदाहरण के लिए संविधान को बचाने वाला जो नेरेटिव है, उस पर विपक्ष इस बार मंथन करने जा रहा है। वहीं सीट शेयरिंग पर ममता के फॉर्मूले पर ही आगे बढ़ने की बात भी हो सकती है। सीएम ममता ने कहा था कि एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष भी एक ही उम्मीदार को मैदान में उतारे। मतलब साफ था कि हर सीट पर एक साझा प्रत्याशी होना चाहिए। अब जमीन पर ये कितना साकार होता दिखता है, ये इंडिया गठबंधन की असल परीक्षा है।