Jyotiraditya Scindia Family: सिंधिया राजघराने का इतिहास दिलचस्प रहा है। इस परिवार ने पिछले करीब 300 साल के दौरान राजतंत्र से लेकर लोकतंत्र तक अपना वर्चस्व कायम रखा है। सिंधिया परिवार पर अंग्रेजी हुकूमत से नजदीकी के आरोप भी लगे और कई ऐसे मौके भी आए जब द्वंद भी दिखा।

साल 1886 में माधो राव ने सिंधिया परिवार की गद्दी संभाली, तब उनकी उम्र महज 10 साल थी। अपने प्रशंसकों के बीच माधो महाराज के नाम से चर्चित माधो राव एक तरीके से सिंधिया खानदान के पहले आधुनिक महाराजा थे। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से एलएलडी ( डॉक्टर ऑफ लॉज) की पढ़ाई करने वाले माधो राव सिंधिया खानदान से पहले शख्स थे जो विदेश गए थे।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राशिद किदवई ने अपनी हालिया किताब “द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रिग” में सिंधिया परिवार से जुड़े तमाम किस्सों को दिलचस्प अंदाज में पेश किया है। वे लिखते हैं कि माधो महाराज जब लंदन गए तो वहां एक से बढ़कर एक कार देखकर खासे प्रभावित हुए। वापसी में अपने साथ एक सिंगल सिलेंडर 6 एचपी डी-डायन कार ले भी आए थे।

अंग्रेज नहीं चाहते थे सिंधिया की सेना हो मजबूत: माधो राव को अपनी सेना का आधुनिकीकरण करना चाहते थे और नए हथियार, साजो-सामान से लैस करना चाहते थे। हालांकि अंग्रेजी हुकूमत से अच्छे संबंध के बावजूद वे बार-बार इसमें अड़ंगा लगा देते थे। अंग्रेज न तो उन्हें आधुनिक हथियार खरीदने देते थे और न ही सैनिकों की संख्या बढ़ाने देते थे। खासकर 1857 के विद्रोह के बाद वे और सतर्क हो गए थे।

डकैत का घर गिराने भेज दी सेना: किदवई के मुताबिक उस वक्त सिंधिया आर्मी में कुल 7000 सैनिक थे और इनपर 40 लाख रुपये सालाना खर्च होता था। अंग्रेजों की इस रोक के चलते एक मौका ऐसा भी आया जब माधो राव को शर्मिंदा होना पड़ा। दरअसल, उस वक्त उनकी रियासत में बलदेव सिंह नाम का एक डकैत हुआ। उसने पहाड़ी पर अपना घर बना रखा था। लोग परेशान थे। माधो राव को जब इसकी खबर लगी तो उन्होंने तोप के साथ उसका घर गिराने के लिए सेना भेज दी।

न तो निशाना लगाना और न एक खरोंच आई: किदवई लिखते हैं, माधो राव ने जो तोपें भेजी थीं उनका एक भी निशाना डकैत के घर पर नहीं लगा। यहां तक कि उसके घर पर एक खरोंच भी नहीं आई। इसकी वजह थी घटिया क्वालिटी का ब्लैक गन पाउडर।

1857 की क्रांति में क्या भूमिका थी? जब भी आजादी की लड़ाई, खासकर 1857 की क्रांति का जिक्र होता है तो सिंधिया परिवार की भूमिका पर भी सवाल किए जाते हैं। जाने-माने इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा ने बीबीसी से बातचीत में कहा था कि 1857 के विद्रोह में सिंधिया परिवार ने साफ-साफ किसी का पक्ष तो नहीं लिया था, लेकिन तब भी अंग्रेजों से उनके रिश्ते अच्छे ही थे। सिंधिया खानदान को ब्रिटिश हुकूमत से मिले तमाम ख़िताब भी इसकी गवाही देते हैं।