महात्मा गांधी का साहस और सत्य का निर्भयता से सामना करना आज की दुनिया में अकल्पनीय लगता है, लेकिन यह सच है। गांधी में वह साहस था। बचपन में मुझे यह अहसास कराया गया कि वे लोग कितने किस्मत वाले हैं कि वे चीजों को खरीद पा रहे हैं। दुनिया में बहुत से लोग तो कभी बाजार जाते ही नहीं हैं, क्योंकि वे इतने सक्षम नहीं हैं कि खरीदारी कर सकें।

गांधी की निर्भयता अविश्वसनीय थी : 
वे कहते हैं जब मैं 15 या 16 साल का रहा होऊंगा, तब मुझे मेरे चाचा ने गुजराती भाषा में लिखी गांधी जी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग मुझे उपहार में दिए। इसको पढ़ते ही जिंदगी बदल गई। जब मैं इसे पढ़ा तो मुझे लगा कि कितना निर्भय इंसान थे वे, मेरे मन में गांधी के बारे में यह पहली छवि थी। यह अब भी है। मैं उनकी निर्भयता से डरता था। मैं सोचता था कि मैं कभी भी उतना निर्भय नहीं हो पाऊंगा। जब जरूरत हो तो सत्य बोलिए, उनकी तरह अन्याय का विरोध करिए, शक्ति जो उनके पास थी वह अविश्वसनीय थी। मैं हर वक्त घबड़ाया रहता था। मैं सोचता था कि मैं कैसे उनके सत्य, प्रेम और अहिंसा में प्रबल विश्वास का पालन कर पाऊंगा।

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बचपन में ही गांधी को पढ़ लिया था : वे कहते हैं कि 70 के दशक में, जब हम मुंबई के एक चाल में रहा करते थे, यह सब हमारे जीवन का हिस्सा हो चुका था। स्कूल में भी हमें सहिष्णुता, शांति और सबके साथ भाईचारे के साथ रहने का पाठ पढ़ाया जा चुका था। कहा-हम सभी धर्मों को मनाते थे। यह सब हमारे आसपास गांधीवादी सोच की वजह से था। जैसा मैंने गांधी को समझा, जीया और अपनाया वह हमारे लिए बहुत महत्व रखता था। सत्य के साथ साहसपूर्वक खड़ा होना सिर्फ गांधी में ही संभव है।

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गांधीवादी सोच हिंसा को नहीं अपनाती : वे बताते हैं कि पेरिस के इकोल डेसबॉक्स आर्टीजन कालेज से पढ़ाई पूरी होने के बाद में 1992 में जब वे भारत लौटे तो दो महीने के बाद ही बाबरी मस्जिद के विध्वंश की घटना हो गई। इसके बाद मुंबई में दंगे और बम ब्लास्ट हुए, जिसमें कई निर्दोष लोग मारे गए। कहा कि मुझे पक्का यकीन था कि लोगों के बीच सांप्रदायिक तनाव नहीं थे और इनमें से अधिकतर घटना राजनीति से प्रेरित है। कहा कि यह गांधी का देश है। उन्होंने सांप्रदायिक तनाव के बारे में काफी कुछ बोला है और हम सब सद्भावपूर्वक कैसे रह सकते हैं, इस पर जोर दिया है। ऐसी घटनाएं गांधी की सोच रखने वाले लोग नहीं कर सकते हैं।

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लोगों के मन में बसने की कला जानते थे : वे कहते हैं कि वह गांधी की तस्वीर को देखते हैं तो महसूस करते हैं कि वह आम लोगों की भावनाओं को कितना अधिक समझते थे। उनको देखकर यह स्प्ष्ट रूप से पता चलता है कि वे देश के पहले वैचारिक कलाकार थे जो आम लोगों तक अपने संदेश पहुंचाने और उनके मन में बसने की कला से परिचित थे। वह इसके लिए कई प्रयोग करते थे। नमक कानून तोड़ने के लिए डांडी मार्च की घटना ने हमें बहुत प्रेरित किया।

गांधी अब भी हमें प्रेरित करते हैं  : 1997 में जब भारत आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा था, तब मुझे लगा कि यह सबसे अच्छा समय है कि हम उनके दर्शन को अपने जीवन में उतारें। यह समकालीन कलाकारों की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के सामने उनके बारे में बातें करें। मैंने पेंटिंग्स की एक शृंखला बनाई जो गांधी और पिकासो को साथ लाई। गांधी अब भी हमें प्रेरित करते हैं, मन को बेचैन करते हैं। हम गांधीवाद को खत्म करने का साहस नहीं कर सकते हैंं।