प्रशांत किशोर ने साल 2014 में बीजेपी के लिए चुनावी रणनीति तैयार की थी। इन चुनावों में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई थी। इसके बाद प्रशांत किशोर ने बिहार का सफर तय किया था और जेडीयू के लिए चुनाव प्रचार की रूपरेखा बनाई थी। जेडीयू की जीत के बाद उन्हें पार्टी में बड़ा पद दिया गया था और उनकी गिनती नीतीश कुमार के करीबी लोगों में होती थी। प्रशांत किशोर ने बताया था कि उन्हें ये बिल्कुल पसंद नहीं है कि उन्हें लोग रणनीतिकार के नाम से जानें।
‘द लल्लनटॉप’ से बात करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा था, ‘मैं तो सिर्फ ये देखता हूं कि आपके आस-पास सिस्टम कैसे काम करता है। अगर मैं किसी की मदद करता हूं चुनाव जीतने में तो इसका मतलब है कि मैं इसके काबिल हूं। मुझे रणनीतिकार शब्द बिल्कुल भी पसंद नहीं है। चुनाव एक तरह से युद्ध होता है, इसलिए इसे कभी भी एक तरह से नहीं देखना चाहिए।’ सौरभ द्विवेदी कहते हैं, ‘आप अब इस सिस्टम का हिस्सा है तो आपको कई दोस्ती भी कायम करनी होगी।’
प्रशांत किशोर ने जवाब दिया था, ‘मेरा हर नेता दोस्त है। लेकिन जब मैं उस युद्ध को लड़ता हूं तो मेरा कोई दोस्त नहीं होता। मैं बिल्कुल साफ कर दूं कि नीतीश का उत्तराधिकारी या जेडीयू का नंबर 2 कहना ठीक नहीं है। मैं अभी ही राजनीति में आया हूं। ऐसा नहीं है कि मैं कोई नया दावा करूं। पार्टी ने मुझे जो काम दिया है वो मैं कर रहा हूं। नीतीश जी अभी हैं और लंबे समय तक बने रहें। इसके सहारे बिहार का विकास भी होता रहेगा।’
नीतीश कुमार के पास इस्तीफा लेकर पहुंच गए थे PK: बरखा दत्ता के साथ बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा था, ‘मैं नीतीश कुमार के सीएए-एनआरसी पर दिए गए बयान से खुश नहीं था। उन्होंने इसका समर्थन किया था। हालांकि इस पर मेरी उनसे लंबी बातचीत भी हुई थी। उन्होंने कहा था कि बिहार में किसी भी कीमत पर सीएए-एनआरसी लागू नहीं होगा। इसके बाद मैंने अपना फैसला वापस ले लिया। अब नीतीश जी से मेरी कमरे के अंदर क्या बात हुई ये तो नहीं बता सकता। मुझे लगता है कि इसे सार्वजनिक रूप से बताने का अभी फायदा भी नहीं है।’