पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को आईएएस अधिकारी संजीव हंस को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी। उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अवैध तरीके से करोड़ों रुपये अर्जित किए। यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के तहत चल रहा था। न्यायमूर्ति चंद्र प्रकाश सिंह ने जमानत मंजूर करते हुए कहा कि हंस लगभग एक साल से जेल में हैं, जबकि मामले में आरोपपत्र पहले ही दाखिल हो चुका है, पर अब तक आरोप तय नहीं हुए हैं। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि निकट भविष्य में मुकदमे की सुनवाई शुरू होने की कोई संभावना नहीं दिख रही।

न्यायमूर्ति चंद्र प्रकाश सिंह ने यह भी माना कि हंस का रूपसपुर मामले के अलावा कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, और मौजूदा प्रकरण में दस्तावेजों से छेड़छाड़ की संभावना नगण्य है। अदालत ने यह कहते हुए राहत दी कि जांच पहले ही पूरी हो चुकी है और जमानत देते समय उन पर कड़ी शर्तें लगाई जा सकती हैं।

बचाव पक्ष की दलील — ‘फंसाया गया है, कोई ठोस सबूत नहीं’

आईएएस हंस का पक्ष रखते हुए उनके वकील फारुख खान ने अदालत में कहा कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं और उन्हें साजिशन इस मामले में फंसाया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि जब यह मामला हाईकोर्ट में लंबित था, तब ईडी ने “दुर्भावनापूर्ण तरीके” से तलाशी और जब्ती की कार्रवाई की। खान के मुताबिक, एजेंसी कोई भी ऐसा स्वतंत्र साक्ष्य पेश नहीं कर पाई जो हंस को “कथित अपराध की आय” से जोड़ता हो।

बचाव पक्ष ने कहा कि पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) के तहत लगाए गए आरोप “पूरी तरह काल्पनिक और कानूनी रूप से निराधार” हैं, क्योंकि प्रत्यक्ष वित्तीय लेन-देन का कोई प्रमाण सामने नहीं आया है।

अभियोजन पक्ष का पक्ष — ‘पद का दुरुपयोग कर जुटाई 90 करोड़ की संपत्ति’

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने अदालत में कहा कि संजीव हंस ने अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग कर अनुचित आर्थिक लाभ कमाए। अभियोजन के अनुसार, 2014 से 2024 के बीच हंस ने अनुसूचित अपराधों से जुड़ी गतिविधियों से करीब 90 करोड़ रुपये “अवैध रूप से अर्जित” किए। उन्होंने इन पैसों को अपने करीबियों के नेटवर्क के माध्यम से कई स्तरों पर घुमाकर वैध दिखाने की कोशिश की।

राजू ने बताया कि इन अवैध आय से खरीदी गई संपत्तियां उनके परिवार और सहयोगियों के नाम पर दर्ज की गईं ताकि “काले धन को सफेद” किया जा सके और वास्तविक स्रोत छिपाया जा सके।

मामले की पृष्ठभूमि — रूपसपुर से शुरू होकर ईडी तक पहुंचा मामला

संजीव हंस के खिलाफ धन शोधन की जांच की शुरुआत जनवरी 2023 में दर्ज रूपसपुर थाने की एफआईआर से हुई थी। उस एफआईआर में उनके खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म, ब्लैकमेल, जबरदस्ती और पद के दुरुपयोग के आरोप लगाए गए थे। हालांकि हाईकोर्ट ने बाद में यह प्राथमिकी रद्द कर दी, लेकिन उसी दौरान हंस और राजद के पूर्व विधायक गुलाब यादव के बीच वित्तीय लेन-देन का एक नया मामला सामने आया।

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इसके बाद, बिहार पुलिस की विशेष सतर्कता इकाई (SVU) ने हंस के खिलाफ ज्ञात आय से अधिक संपत्ति रखने का केस दर्ज किया। जांच के दौरान कई संदिग्ध वित्तीय लेन-देन सामने आए, जिन पर आगे चलकर ईडी ने पीएमएलए के तहत जांच शुरू की।

दिसंबर 2024 में ईडी ने हंस के करीबी सहयोगियों से जुड़ी 23.72 करोड़ रुपये की संपत्ति अस्थायी रूप से जब्त की। इनमें नागपुर की जमीन, दिल्ली और जयपुर में फ्लैट शामिल थे, जिन्हें कथित तौर पर अवैध धन से खरीदा गया बताया गया।

एजेंसी ने इसके अलावा 1.25 करोड़ रुपये मूल्य के सोने के आभूषण, 65 लाख रुपये की लग्जरी घड़ियां, 11 लाख रुपये के चांदी के सिक्के और करीब 60 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर भी बरामद किए। जांच के दौरान 6 करोड़ रुपये की संदिग्ध जमा राशि वाले 70 से अधिक बैंक खाते सील किए गए। ईडी का दावा है कि हंस ने बिहार के प्रभावशाली नेताओं से करीबी संबंध बनाए रखे, जिनकी मदद से उन्होंने यह “अवैध नेटवर्क” चलाया।

एजेंसी की नजर में हंस की भूमिका बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड के चेयरमैन रहते हुए दिए गए 3,300 करोड़ रुपये के ठेकों से जुड़ी है, जिनमें रिश्वत के बदले सौदेबाजी की आशंका जताई गई है। ईडी ने हंस और राजद के पूर्व विधायक गुलाब यादव को 18 अक्टूबर 2024 को पीएमएलए के तहत गिरफ्तार किया था। एजेंसी का कहना है कि दोनों ने मिलकर एक बड़े धन शोधन नेटवर्क को अंजाम दिया। गिरफ्तारी के बाद से ही हंस बेउर सेंट्रल जेल में बंद थे।