Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी हत्याकांड के दो मुख्य आरोपियों में से एक अशफाक हुसैन को जमानत देने से इनकार कर दिया। जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने यह आदेश दिया।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने प्रत्यक्षदर्शी की पहचान, सीसीटीवी फुटेज और आरोपी से .32 बोर पिस्तौल की बरामदगी सहित रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर मामला लंबित रहने तक उसकी रिहाई के लिए उपयुक्त नहीं है।

सिंगल जज ने यह भी कहा कि आवेदक की घटनास्थल पर उपस्थिति स्थापित है। गुजरात निवासी होने के बावजूद उसने लखनऊ में मौजूदगी का कोई ठोस कारण नहीं बताया। थाना नाका हिंडोला में 18 अक्टूबर 2019 को विभिन्न धाराओं में इस प्रकरण की एफआईआर दर्ज है।

मुख्य आरोपी-आवेदक अशफाक हुसैन (39) के खिलाफ 18 अक्टूबर 2019 को एफआईआर दर्ज की गई थी, जब मृतक तिवारी अपने कार्यालय में खून से लथपथ पाए गए थे। मेडिकल रिकॉर्ड से पता चला कि उन्हें ट्रॉमा सेंटर में मृत घोषित कर दिया गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में एक बन्दूक की चोट और नौ धारदार हथियार की चोटें भी दर्ज की गईं।

मामले में जमानत की मांग करते हुए आवेदक के वकील ने हाई कोर्ट के समक्ष दलील दी कि उनका नाम प्राथमिकी में नहीं था और उनका नाम बाद में जांच के दौरान सामने आया, वह भी अस्पष्ट और अस्वीकार्य साक्ष्य के आधार पर।

उनके वकील ने यह भी तर्क दिया कि कुल 5 सह-आरोपियों को हाई कोर्ट द्वारा जमानत दी गई है। इसलिए आवेदक को भी समानता के आधार पर राहत दी जानी चाहिए।

महत्वपूर्ण बात यह है कि यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवेदक अक्टूबर 2019 से जेल में बंद है और मुकदमा धीमी की गति से आगे बढ़ रहा है और इसके शीघ्र निष्कर्ष की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि आरोप पत्र में जांच किए जाने वाले गवाहों की संख्या 73 बताई गई है।

दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने कहा कि वह 33 गवाहों से पूछताछ करना चाहता है, जिनमें से अभी तक केवल 30 गवाहों से ही पूछताछ हुई है।

सरकारी वकील ने आवेदक को अपराध से जोड़ने के लिए गवाहों के बयानों और फोरेंसिक सामग्री का सहारा लिया। जाँच के दौरान आवेदक के पास से पिस्तौल की बरामदगी का भी हवाला दिया गया। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवेदक गुजरात का निवासी है और प्रासंगिक समय पर लखनऊ में उसकी उपस्थिति के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।

शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि एक स्वतंत्र देश होने के नाते, भारत का कोई भी नागरिक अपनी पसंद के किसी भी स्थान पर जा सकता है और रिश्तेदारों, दोस्तों या पर्यटन या धार्मिक महत्व के स्थानों पर जाने के लिए यात्रा कर सकता है, लेकिन वर्तमान मामले में, आरोपी-आवेदक द्वारा गुजरात से लखनऊ तक की अपनी यात्रा के उद्देश्य के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था।

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपीलार्थी की पहचान दो गवाहों सौराष्ट्र जीत सिंह और ऋषि तिवारी ने की तथा सीसीटीवी फुटेज से उपस्थिति भी स्थापित होती है, मामला जमानत देने के लिए उपयुक्त नहीं है।

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हालांकि, निचली अदालत को मामले के शीघ्र निपटारा का निर्देश देते हुए कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसकी टिप्पणियां जमानत आवेदन से संबंधित हैं और उनका मुकदमे के दौरान मामले के गुण-दोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। कमलेश तिवारी की अक्टूबर 2019 में लखनऊ में चाकू घोंपकर और गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

पुलिस के अनुसार, 2016 में दो मुख्य संदिग्धों मोहम्मद मुफ्ती नईम काजमी और इमाम मौलाना अनवारुल हक ने कथित तौर पर फरमान जारी किया था। इसमें तिवारी की हत्या करने वाले को क्रमशः 51 लाख और 1.5 करोड़ रुपये की रकम देने का वादा था।

अभियुक्त व सह-अभियुक्तों ने की याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपर सत्र न्यायाधीश लखनऊ-1 की अदालत में लंबित सत्र वाद (राज्य बनाम अशफाक हुसैन एवं अन्य) को प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया है।

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