सुप्रीम कोर्ट सोमवार को असम के एक कॉलेज प्रोफेसर को अंतरिम जमानत दे दी। प्रोफेसर पर इस साल भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में टिप्पणी करने का आरोप था। उस पर सोशल मीडिया पर अश्लील पोस्ट करने का भी आरोप था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपी प्रोफेसर ने फेसबुक पर एक पोस्ट अपलोड की जिसमें लिखा था, “हम पाकिस्तानी नागरिकों के भाई के साथ हैं”। पोस्ट में आगे लिखा था, “हम भविष्य में भी उनके साथ रहेंगे”। इसमें तुर्की के राष्ट्रपति का भी समर्थन किया गया था, जिन्होंने कथित तौर पर कहा था कि वे पाकिस्तानी नागरिकों के साथ रहेंगे।
याचिकाकर्ता एक सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर हैं। उन्हें पहले ही निलंबित किया जा चुका है और वे 179 दिन हिरासत में रह चुके हैं।
सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ प्रोफेसर की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि मुकदमा अभी शुरू होना बाकी है। अदालत ने यह भी कहा कि उसके खिलाफ दो अन्य एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें आरोप लगाया गया है कि उसने 12 छात्राओं और महिला कर्मचारियों के साथ छेड़छाड़ की, जिनकी जांच चल रही है और आरोपपत्र अभी दाखिल नहीं किए गए हैं।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हमें ऐसा लगता है कि मुकदमा पूरा होने में समय लगेगा। याचिकाकर्ता 6 महीने से अधिक समय से हिरासत में है। इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए और गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना, याचिका को अनुमति दी जाती है, और याचिकाकर्ता को निर्देशानुसार जमानत बांड प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया जाता है।
अदालत ने आगे शर्त रखी कि वह हर सुनवाई में निचली अदालत में पेश होगा। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश को कॉलेज में उसकी बहाली का आधार नहीं माना जाना चाहिए।
इससे पहले, न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा पाकिस्तान के समर्थन में सोशल मीडिया पोस्ट के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ अश्लील पोस्ट पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि उसका दिमाग विकृत है और वह इंटरनेट का दुरुपयोग कर रहा है।
पीठ को यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें से एक पॉक्सो एक्ट के तहत मामला है। दलील दी गई कि उसने पहले भी महिलाओं/लड़कियों के खिलाफ अश्लील पोस्ट की हैं, जिन्हें खुली अदालत में पढ़ना भी मुश्किल हो सकता है।
क्या है पूरा मामला?
पोस्ट के सिलसिले में गिरफ्तारी के बाद याचिकाकर्ता ने ज़मानत के लिए निचली अदालत का रुख किया। हालांकि, उसे इस आधार पर राहत नहीं मिली कि मामला आरोप तय होने के चरण में है। इससे परेशान होकर उसने हाई कोर्ट का रुख किया।
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ज़मानत देने से इनकार करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यह पोस्ट ऐसे समय में अपलोड की गई थी जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण थे। पोस्ट को सीधे पढ़ने पर यह भी पता चला कि याचिकाकर्ता अपने देश का नहीं, बल्कि पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था। इस प्रकार, उसने अनुच्छेद 51ए में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का पालन नहीं किया।
याचिका का निपटारा करते हुए हाई कोर्ट ने निचली अदालत को आरोप तय करने की अनुमति दे दी। यदि आरोप तय हो जाते हैं, तो कम से कम दो अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच के बाद याचिकाकर्ता की ज़मानत याचिका पर विचार किया जाएगा। इस आदेश के विरुद्ध, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
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