17 मार्च 2017 की सुबह झारखंड की वनडे टीम को आनन-फानन में दिल्ली के द्वारका स्थित पांच सितारा होटल आईटीसी वेलकम को खाली करना पड़ा। खिलाड़ी नाश्ता कर रहे थे, तभी उन्हें अचानक आग से निकलने वाले घने धुएं का सामना करना पड़ा। धुआं होटल के हिस्से में पूरी तरह फैल गया था।
होटल के रेस्टोरेंट में दहशत का माहौल था, लेकिन झारखंड टीम का एक सदस्य जो विजय हजारे ट्रॉफी (50 ओवर का घरेलू टूर्नामेंट) के लिए दिल्ली में था, अजीब तरह से खुद को ‘उत्साहित’ महसूस कर रहा था। यह वह था जिसने खिलाड़ियों को सुरक्षित बाहर निकालने की जिम्मेदारी संभाली। उसने अपने साथियों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने मना किया और सुरक्षित रूप से बाहर निकलने से पहले एक विशेष स्थान पर इकट्ठा होने के लिए कहा।
जी हां यह कैप्टन कूल अवतार वाले एमएस धोनी नहीं, बल्कि प्रादेशिक सेना की 106 पैराशूट रेजीमेंट के मानद लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र सिंह धोनी थे, जो अपनी टीम को एक खतरनाक मिशन से सुरक्षित लेकर जा रहे थे। शुक्र था कि झारखंड की टीम बाल-बाल बच गई, लेकिन उनका मैच स्थगित करना पड़ा, क्योंकि उनके किटबैग होटल के अंदर ही रह गए थे। इस घटना के बारे में भरत सुंदरसन की किताब ‘द धोनी टच’ (The Dhoni Touch) में बताया गया है।
भरत सुंदरसन के मुताबिक, कुछ दिनों बाद, धोनी ने अपने करीबी सैन्य सहयोगी और प्रिय मित्र कर्नल वेम्बु शंकर को उस घटना के बारे में बताया। होटल की आग ठीक वैसा ही संकट था, जिससे निपटने के लिए दोनों अक्सर चर्चा करते थे। इन चर्चाओं में वे यह भी अंदाजा लगाते थे कि धोनी रसोई या अन्य गुप्त दरवाजों के जरिए जल्दी से भाग जाएं, ताकि वह देश या विदेश में होटल की लॉबी में इंतजार कर रहे अपने प्रशंसकों की नजरों में आने से बच जाएं।
कर्नल शंकर ने भरत सुंदरसन को जो बताया उसके मुताबिक, ‘मेरे दोस्त लंबे-लंबे डग भरते हुए एक अंधेरी गली से होते हुए होटल के एक अज्ञात हिस्से में खड़ी अपनी कार तक पहुंचेंगे। इन संक्षिप्त लेकिन रोमांचकारी क्षणों में, उन्हें एक ऐसी भूमिका निभाने को मिलेगी जो वह जीवन में सबसे ज्यादा चाहते हैं। एमएस धोनी दिल और दिमाग पूरी तरह से फौजी हैं।’
कर्नल शंकर कहते हैं, ‘धोनी के अधिकांश निकासी मार्गों में बिना फोन सिग्नल के तहखाने का कुछ हिस्सा शामिल होगा। यहां तक कि जब हमें होटल के कर्मचारी निर्देश दे रहे होंगे तो वह पूछेंगे अभी कुछ हो गया तो, कैसे निकलेंगे? उनका दिमाग हमेशा इस बात पर काम कर रहा है कि हम कैसे सुधार कर सकते हैं और आपातकालीन स्थितियों पर प्रतिक्रिया कर सकते हैं। दिल्ली की आग की घटना के दौरान कार्यभार संभालने को लेकर वह काफी रोमांचित थे।’
गैलन्ट्री अवॉर्ड विनर कर्नल शंकर अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वह इकलौते नहीं हैं जो यह कहते हों कि वह दिल, दिमाग से पूरा फौजी है। कर्नल शंकर कहते हैं, ‘अगर वह (धोनी) सेना में होते, तो एक बड़े लीडर बन जाते। भले ही वह एक जनरल या ब्रिगेडियर नहीं बनते, लेकिन मुझे विश्वास है कि वह अच्छे और सफल संचालन का नेतृत्व करते और जो उनके अधीनस्थ होते उनके वे अच्छे लीडर होते।’