स्मृति मंधाना की गिनती भारत ही नहीं दुनिया की बेहतरीन महिला क्रिकेटर्स में होती है। वह डे-नाइट टेस्ट (पिंक-बॉल टेस्ट) शतक लगाने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर और दूसरी भारतीय हैं। उनसे पहले विराट कोहली ने 2019 में बांग्लादेश के खिलाफ दिन-रात्रि टेस्ट में शतक लगाया था।

मुंबई में 18 जुलाई 1996 को जन्मीं स्मृति मंधाना ने उस उम्र में ही ऊंचाइयां छूना शुरू कर दी थीं, जिस उम्र में लाखों लड़के-लड़कियां अपना करियर बनाने के बारे में सोचना शुरू करते हैं। क्रिकेट को लेकर उनकी परिपक्वता उनके खेल की पहचान बन गई है। मैदान पर उनका प्रदर्शन महिला क्रिकेट के प्रति लोगों की धारणा बदल रहा है।

हालांकि, यह बात कम ही लोगों को पता होगी कि क्रिकेट में कई उपलब्धियां हासिल करने वाली स्मृति मंधाना जब 15 साल की थीं तब उन्होंने इसे छोड़ने का मन बना लिया था। हालांकि, मां के समझाने पर उन्होने अपना फैसला बदला और एक साल में ही नतीजा उनके सामने था। जी हां, महज 16 साल की उम्र में उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम की जर्सी पहनने का गौरव हासिल कर लिया।

स्मृति मंधाना ने 5 अप्रैल 2013 को वडोदरा में बांग्लादेश के खिलाफ टी20 मैच से अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। पांच दिन बाद उन्होंने वनडे इंटरनेशनल में भी डेब्यू कर लिया, जब एक साल बाद इंग्लैंड के खिलाफ मैच में टेस्ट जर्सी पहनी। 19 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उनकी गिनती भारतीय महिला क्रिकेट टीम की भरोसेमंद बल्लेबाजों में होने लगी थी।

स्मृति मंधाना 15 साल की उम्र में क्रिकेट में अपना करियर बनाना छोड़कर विज्ञान की पढ़ाई करना चाहती थीं। उस समय वह महाराष्ट्र की अंडर-19 टीम की ओर से खेल चुकी थीं। मंधाना जब सिर्फ नौ साल की थीं, तब उन्हें पहली बार महाराष्ट्र अंडर-15 टीम में चुना गया था। महाराष्ट्र के जूनियर कोच अनंत तांबवेकर की निगाहों ने तभी उनके अंदर की प्रतिभा को पहचान लिया था।

स्मृति मंधाना को 11 साल की उम्र में महाराष्ट्र अंडर-19 टीम चुना गया। हालांकि, शुरुआती दो साल उन्हें प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं मिली। जब मौका मिला तो वह ज्यादा फायदा नहीं उठा पाईं। यही वजह थी कि 15 साल की उम्र में मंधाना ने एक फैसला किया। उन्होंने दसवीं कक्षा के बोर्ड परीक्षा की तैयारी या फिर क्रिकेट।

स्मृति मंधाना ने बताया, ‘मैं विज्ञान पढ़ना चाहती थीं, लेकिन मेरी मां ने मुझे मना कर दिया। शायद वह जानती थीं कि मैं तब पढ़ाई और क्रिकेट के बीच संतुलन नहीं बैठा पाऊंगी। इसके बाद मैं अपना फैसला बदला। यह सही भी रहा। मैं अगले साल ही इंडिया टीम में चुन ली गई।’ स्मृति मंधाना की बल्लेबाजी की तुलना विराट कोहली से भी की जाती है। क्रिकेट के गलियारों में वह लेडी विराट के नाम से भी फेमस हैं।

स्मृति मंधाना के बाएं हाथ से बैटिंग करने की कहानी भी रोचक है। ईएसपीएनक्रिकइंफो से बातचीत में उन्होंने बताया था कि वह अपने भाई श्रवण के कारण बाएं हाथ की बल्लेबाज बनीं। श्रवण महाराष्ट्र की अंडर-16 टीम के शानदार खिलाड़ी रह चुके हैं।

समाचार पत्रों में श्रवण की खबरें देखकर स्मृति ने भी सोचा कि उनकी भी तस्वीर न्यूज पेपर्स में आनी चाहिए। वह उनके साथ नेट प्रैक्टिस में हिस्सा लेने लगीं। शुरुआत में वह दाएं हाथ से बल्लेबाजी करती थीं, लेकिन उनके पिता का आकर्षण था बाएं हाथ के बल्लेबाजों के प्रति था। यही वजह थी कि उनके भाई ने बाएं हाथ से खेलना शुरू किया। स्मृति को भी इसी वजह से बाएं हाथ से बल्लेबाजी की प्रैक्टिस शुरू करनी पड़ी।

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली बचपन में अपना सारा काम जैसे लिखना, खाना गेंदबाजी करना दाएं हाथ से ही करते थे, लेकिन बड़े भाई स्नेहाशीष गांगुली बाएं हाथ के खिलाड़ी थे। यही वजह है कि सौरव को उनकी क्रिकेट किट इस्तेमाल करने के लिए बाएं हाथ का बल्लेबाज बनना पड़ा।