आईपीएल के एक सीजन को याद करते हुए भारतीय क्रिकेटर और दिल्ली कैपिटल्स के खिलाड़ी केएल राहुल ने हाल ही में अपने करियर के एक ऐसे पल को याद किया, जो आज भी उनके दिल को कचोटता है। वह पल था 2016 का आईपीएल फाइनल, जब रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (अब रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु) सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ सिर्फ आठ रनों से जीत से चूक गई थी। स्टार स्पोर्ट्स पर बात करते हुए राहुल ने इस हार को अपने करियर का सबसे बड़ा अफसोस बताया और उस सीजन की यादों को ताजा किया, जो उनके लिए बेहद खास थी।
2016 का आईपीएल सीजन रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के लिए किसी रोलर-कोस्टर राइड से कम नहीं था। टूर्नामेंट की शुरुआत में टीम पॉइंट्स टेबल में सबसे नीचे थी लेकिन फिर शुरू हुआ एक चमत्कारी सफर। राहुल ने बताया कि हमने लगातार सात मैच जीते और क्वालिफायर तक पहुंचे। हमने एलिमिनेटर जीता और फाइनल में जगह बनाई। यह सीजन सिर्फ टीम के लिए ही नहीं, बल्कि राहुल के लिए भी यादगार था, क्योंकि यहीं से उनकी सफेद गेंद वाली क्रिकेट में आत्मविश्वास की शुरुआत हुई।
फाइनल में सनराइजर्स हैदराबाद ने 209 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। जवाब में आरसीबी ने दमदार कोशिश की, लेकिन 200 रनों पर सिमट गई। विराट कोहली ने 35 गेंदों में 54 रनों की शानदार पारी खेली, जबकि राहुल ने 9 गेंदों में 11 रन बनाए। लेकिन जीत सिर्फ आठ रनों की दूरी पर रह गई। राहुल ने इस पल को याद करते हुए कहा कि विराट और मैंने कई बार इस हार के बारे में बात की है। अगर हम में से कोई एक और थोड़ा लंबा खेल पाता तो कहानी कुछ और होती। चिन्नास्वामी स्टेडियम में घरेलू दर्शकों के सामने ट्रॉफी जीतना एक सपना होता।
एक स्कूल की तरह आरसीबी
राहुल के लिए आरसीबी सिर्फ एक टीम ही नहीं, बल्कि एक स्कूल थी, जहां उन्होंने क्रिकेट और जिंदगी के कई सबक सीखे। जब वे युवा खिलाड़ी के तौर पर टीम में शामिल हुए, तो उन्हें अपनी सफेद गेंद वाली क्रिकेट पर भरोसा नहीं था। लेकिन विराट कोहली, एबी डिविलियर्स और क्रिस गेल जैसे दिग्गजों के साथ ड्रेसिंग रूम साझा करना उनके लिए किसी अनमोल खजाने से कम नहीं था।
राहुल ने आगे बताया कि विराट, एबी और क्रिस को देखकर मैंने जाना कि खेल के प्रति जुनून और अनुशासन क्या होता है। उनकी ट्रेनिंग, फिटनेस और मानसिक दृढ़ता ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। खास तौर पर विराट की फिटनेस यात्रा ने राहुल को प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “विराट ने जिस तरह अपनी फिटनेस को गंभीरता से लिया, उसने मुझे भी ट्रेनिंग को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया। इससे मेरी निरंतरता में सुधार हुआ और मैंने सभी प्रारूपों में बेहतर प्रदर्शन करना शुरू किया।”
आत्मविश्वास की नई शुरुआत
2014-15 तक राहुल को लगता था कि वे टेस्ट क्रिकेट के लिए ही बने हैं। लेकिन आरसीबी में बिताए समय ने उनकी सोच को बदला। 2014-15 के बाद मुझे लगा कि मैं सफेद गेंद की क्रिकेट में भी अच्छा कर सकता हूं। यह आत्मविश्वास उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में स्थापित करने में मददगार साबित हुआ।