प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का जिक्र करते हुए कहा है कि क्या ऐसा घर कभी चल सकता है, जहां परिवार के हर सदस्य के लिए अलग-अलग कानून हों? पीएम के इस बयान के बाद विपक्षी पार्टियां भले ही हल्ला मचा रही हों, लेकिन संकेत साफ है कि बीजेपी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आगे बढ़ने का मन बना चुकी है। UCC ऐसा मुद्दा है जो लंबे वक्त से बीजेपी और संघ (RSS) के एजेंडे में है। बीजेपी के तमाम नेता 2024 के लोकसभा में इसे गेम चेंजर मान रहे हैं, लेकिन पार्टी के लिए इस मसले पर आगे बढ़ना इतना भी आसान नहीं है, खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में।

उदाहरण के तौर पर मिजोरम को ही ले लें। यहां मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) की सरकार है, जो बीजेपी की सहयोगी है। लेकिन MNF ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में नहीं है। मिजोरम में कुछ महीने में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, ऐसे में बीजेपी के सामने चुनौती है कि वह किस तरीके से इस मुद्दे पर आगे बढ़ती है।

मिजोरम विधानसभा में तो इस साल की शुरुआत में ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पास हो चुका है। इस प्रस्ताव में कहा गया था, ”यदि भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की दिशा में एक भी कदम उठाया गया तो यह अल्पसंख्या की धार्मिक व सांस्कृतिक प्रथाओं, संस्कृति और परंपरा को खत्म कर देगा। जो किसी भी नजरिए से ठीक नहीं है”।

पूर्वोत्तर में कहां-कहां विरोध?

पूर्वोत्तर भारत (North East India) में मिजोरम इकलौता ऐसा राज्य नहीं है, जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध है। ऐसे राज्य, जहां बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी है- मसलन नागालैंड और मणिपुर में भी इसका विरोध हो रहा है। मणिपुर में भले ही बीजेपी की सरकार हो लेकिन पिछले करीब 3 महीने से जैसे हालात हैं और जिस तरीके से दो समुदाय आमने-सामने हैं, इस स्थिति में वहां यूनिफॉर्म सिविल कोड पर एक राय बनाना आग के दरिया को पार करने जैसा होगा।

साल 2016 में ही आदिवासियों के लिए काम करने वाली संस्था ‘राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद’ इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट गई थी और अपने रीति-रिवाजों व धार्मिक परंपराओं (जिसमें बहु-विवाह या एक से ज्यादा पति रखने का अधिकार भी शामिल है) को संरक्षित करने की मांग की थी। तर्क दिया था कि आदिवासियों के अपने अलग कानून हैं, अलग देवी देवता हैं और अपनी मान्यताएं हैं। ये सब ऐसे मसले हैं जो यूनिफॉर्म सिविल कोड के एजेंडे में अहम हैं। एकता परिषद 11 करोड़ ट्राइबल की अगुवाई का दावा करता है।

बीच का रास्ता अपना सकती है सरकार?

सूत्रों का कहना है कि सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड में आदिवासी समुदाय, उनकी परंपराओं, रीति-रिवाजों पर बीच का कोई रास्ता अख्तियार कर सकती है। आदिवासी समुदाय के बीच नजदीक से काम करने वाले संघ के एक नेता भी यही इशारा करते हैं। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में वह कहते हैं कि पहले ड्राफ्ट आने दीजिए… अभी जो बातें चल रही हैं वह महज अफवाह हैं। किसे पता, आदिवासी समुदाय की जो चिंताएं हैं UCC में उसका समाधान हो।

सिर्फ पूर्वोत्तर से ही चुनौती नहीं…

बीजेपी को UCC पर सिर्फ पूर्वोत्तर से ही चुनौती नहीं मिल सकती है। बल्कि आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ YSRCP ने भी साफ कर दिया है कि वह यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में नहीं है। वाईएस जगन मोहन रेड्डी की अगुवाई वाली वाईएसआरसीपी से बीजेपी के अच्छे संबंध हैं। हालिया कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जिस तरीके से करारी हार का सामना करना पड़ा, उसके बाद 2024 से पहले बीजेपी YSRCP को करीब रखना चाहेगी।

इसी तरह अकाली दल ने UCC का विरोध किया है। वह भले ही एनडीए गठबंधन में नहीं है, लेकिन हाल के दिनों में दोबारा गठबंधन में लौटने का इशारा कर चुकी है।