हिमालय सिर्फ बर्फ और आध्यात्मिकता का प्रतीक नहीं, बल्कि आज सबसे बड़े संकटों का गढ़ बनता जा रहा है। हाल ही में हिमाचल और उत्तराखंड से लेकर जम्मू-कश्मीर तक बादल फटने, भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या इन आपदाओं के पीछे सिर्फ जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है, या फिर अनियोजित विकास और अंधाधुंध निर्माण ने खुद आपदा को न्योता दिया है? वहां जान-माल के नुकसान ने कई सवाल उठाए हैं।
बाढ़ का खतरा बढ़ा क्यों
आपदाओं की आवर्ती प्रकृति : हिमालय में ऐतिहासिक रूप से भारी मानसून-पूर्व तूफान और बाढ़ आती रही है, लेकिन इन्हें केवल जलवायु परिवर्तन के कारण बताना, गहरे प्रणालीगत कारणों की अनदेखी करने का जोखिम है।
अनियोजित विकास का प्रभाव : नाजुक क्षेत्रों में सड़कों, होटलों, आश्रमों, अतिथिगृहों और अस्थायी शिविरों का अंधाधुंध निर्माण बाढ़ के खतरे को बढ़ाता है।
संसाधन और भूमि पर दबाव : पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण योग्य भूमि की कमी के कारण नदी के संवेदनशील किनारों और खड़ी ढलानों पर निर्माण कार्य करना पड़ता है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
क्यों हो रहा है विनाश
पर्यटन के दबाव की भूमिका : तीर्थयात्रियों की आमद, साहसिक पर्यटन, तथा नदियों के निकट होटल और रिसार्ट सहित तेजी से बुनियादी ढांचे के विस्तार ने खतरे को बढ़ा दिया है।
संवेदनशील क्षेत्रों में शहरीकरण : देहरादून और मसूरी जैसे क्षेत्रों में विस्तार से पता चलता है कि अनियमित निर्माण से संवेदनशीलता और अधिक बढ़ जाती है।
क्या होता है बादल फटना? क्यों हिमालय में बढ़ रही हैं Cloudburst और तबाही की घटनाएं?
सबक और आगे का रास्ता
जलवायु परिवर्तन से परे : जलवायु परिवर्तन से वर्षा की तीव्रता बढ़ जाती है। साथ ही भूमि उपयोग के कुप्रबंधन और खराब योजना की अनदेखी से प्रभावी आपदा रोकथाम सीमित हो जाती है।
पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील योजना की आवश्यकता : नदी तटों के निकट उच्च घनत्व वाले निर्माण को प्रतिबंधित करना, भवन निर्माण संहिता को लागू करना, तथा प्रकृति-आधारित समाधानों को प्राथमिकता देना जोखिमों को कम कर सकता है।
विकास और सुरक्षा में संतुलन : सतत पर्यटन माडल, नियंत्रित शहरी विस्तार और मजबूत पर्यावरणीय शासन, आवर्ती आपदाओं को कम करने के लिए आवश्यक हैं।
जुलाई और अगस्त में आपदाएं
1 जुलाई, 2025 : मंडी जिले में सात स्थानों (गोहर, करसोग, थुनाग, धर्मपुर) पर बादल फटने की घटनाएं। 10 लोगों की मौत, 30 लोग लापता। 406 सड़कें बंद, अनुमानित नुकसान 500 करोड़ रुपए।
5 अगस्त : उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से भारी तबाही। खीर गंगा नदी में मलबा आने से बाढ़, कई घर और हर्षिल का सैन्य शिविर बह गया। चार लोगों की मौत, 50 से अधिक लोग लापता।
6 अगस्त : उत्तराखंड के पौड़ी जिले में बुरांसी गांव में बादल फटने से मलबा गिरा, एक महिला की मौत।
14 अगस्त : जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चोसिटी गांव में बादल फटने से 60 से ज्यादा लोगों की मौत, 100 से अधिक घायल।
19 अगस्त: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और मंडी में बादल फटने से भारी तबाही।
23 अगस्त : चमोली जिले में भूस्खलन से एक व्यक्ति की मौत, 9 घायल।
26 अगस्त : वैष्णो देवी तीर्थयात्रा मार्ग पर भारी बारिश और भूस्खलन से 35 लोगों की मौत। डोडा के खारा चारवाह में चार लोगों की मौत, कई मकान बहे।
27 अगस्त : शिमला, कुल्लू, और मंडी में बादल फटने से 22 लोग लापता। रामपुर (शिमला) में समेज खड्ड में बाढ़ से 19 लोग लापता। मंडी के चोहर घाटी में तीन लोग लापता।
29 अगस्त : रुद्रप्रयाग के छेनागाड़ में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण पांच लोगों की मौत।
30 अगस्त : रियासी और रामबन जिलों में बादल फटने से एक ही परिवार के सात लोगों समेत 11 की मौत।