महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बुधवार को मॉस्को में लोक शाहिर अण्णा भाऊ साठे की एक पोर्ट्रेट का अनावरण किया। पोर्ट्रेट मॉस्को स्थित ऑल-रूस स्टेट लाइब्रेरी फॉर फॉरेन लिटरेचर में लगी है। यह कार्यक्रम भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में और भारत-रूस संबंधों का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया गया था।

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रूसी क्रांति और कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित साठे का निधन 1969 में हुआ था। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के सदस्य और भारत के उन चुनिंदा लेखकों में शामिल हैं जिनकी राइटिंग्स का का रूसी में अनुवाद हुआ है।

कौन थे अन्नाभाऊ साठे?

अन्नाभाऊ साठे का जन्म 1 अगस्त 1920 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के वटेगांव गांव में हुआ था। बचपन में उनका नाम तुकाराम भाऊराव साठे था। दलित परिवार में पैदा साठे का परिवार 1930 में गांव छोड़कर मुंबई आ गया। शहर में आजीविका चलाने के लिए उन्होंने कुली, फेरीवाले और एक कपास मिल सहायक के रूप में काम किया। साल 1934 में मुंबई में लाल बवता मिल वर्कर्स यूनियन के नेतृत्व में मजदूरों की हड़ताल हुई। इसमें साठे ने भी भाग लिया।

महाड़ में प्रसिद्ध ‘चावदार झील’ सत्याग्रह के दौरान साठे डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर के सहयोगी आर.बी. मोरे के संपर्क में आए। मोरे को नीले आसमान का लाल सितारा  (A Red Star In A Blue Sky) कहा जाता है। नीला रंग दलित आंदोलन और लाल रंग वामपंथी आंदोलन का प्रतीक है। मोरे से मिलने के बाद साठे श्रम अध्ययन मंडल में शामिल हो गए। दलित होने के कारण उन्हें उनके गांव में स्कूली शिक्षा से वंचित कर दिया गया था। अध्ययन मंडली में ही उन्होंने पढ़ना और लिखना सीखा।

साठे ने ‘दलित युवक संघ’ नामक एक सांस्कृतिक समूह का गठन किया। उन्होंने श्रमिकों के विरोध, आंदोलन पर कविताएं लिखना शुरू किया। दलित युवक संघ मिल गेट के सामने प्रदर्शन करता था। वह प्रगतिशील लेखक संघ में भी सक्रिय रहे। साठे पर मैक्सिम गोर्की, एंटोन चेखव, लियो टॉल्स्टॉय, इवान तुर्गनेव के लेखन का भी प्रभाव हुआ। उसने उन्हें नुक्कड़ नाटक, कहानी, उपन्यास आदि लिखने के लिए प्रेरित किया। 1939 में उन्होंने अपना पहला गीत ‘स्पेनिश पोवाडा’ लिखा।

साठे और उनके समूह ने पूरे मुंबई में मजदूरों के अधिकारों के लिए अभियान चलाया। साठे ने 32 उपन्यास, लघु कथाओं का 13 संग्रह, चार नाटक, एक यात्रा वृत्तांत और 11 पोवदास (गाथागीत) का लिखा। उनके लगभग छह उपन्यासों को फिल्मों में बदल दिया गया और कई का रूसी सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया। बंगाल के अकाल पर उन्होंने ‘बंगालची हक’ लिखा। उसका बंगाली में अनुवाद किया गया और बाद में लंदन के रॉयल थियेटर में भी प्रस्तुत किया गया। उनका साहित्य उस समय के भारतीय समाज की जाति और वर्ग की वास्तविकता को दर्शाता है।

साठे ने अपना सबसे प्रसिद्ध उपन्यास ‘फकीरा’ डॉ अम्बेडकर को समर्पित किया है। 1943 में वह उस प्रक्रिया का हिस्सा थे जिसके कारण इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) का गठन हुआ। 1949 में वह इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। साठे की लेखनी मार्क्सवाद से प्रभावित थी। प्रसिद्ध मराठी कवि बाबूराव बागुल ने कभी साठे को महाराष्ट्र का मैक्सिम गोर्की कहा था। साठे गोर्की की ‘द मदर’ और रूसी क्रांति से बेहद प्रभावित थे, इसका असर उनके लेखन पर भी दिखता है।

भारत सरकार का इरादा

केंद्र सरकार मॉस्को स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में साठे की तेल चित्रकला लगाकर रूस और भारत के बीच सांस्कृतिक संवाद को बढ़ाने की कोशिश कर रही है। सरकार रूस के साथ अपने संबंध को प्रगाढ़ करना चाहती है।

भाजपा का इरादा

भारतीय वामपंथी साठे की कलात्मक विरासत का दावा करने में विफल रहे। अब साठे महज समुदाय विशेष का प्रतीक बनकर रह गए हैं। ऐसे में भाजपा साठे को ग्लोबल आइकॉन बनाने का श्रेय लेने की फिराक में है। भाजपा इस तरह का प्रयोग पहले सुभाष चंद्र बोस के मामले में कर चुकी है। वह भी साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित थे। उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की थी। फॉरवर्ड ब्लॉक भारत के प्रमुख वामपंथी दलों में से एक है और चुनावी राजनीति में सक्रिय भी है।