नौ मई 1998…चांदीपुर मिसाइल टेस्टिंग रेंज- दो दिन पहले से ही इस सेंटर पर सरगर्मी बढ़ गई थी। नौ मई की सुबह से ही सरफेस टू एयर मिसाइल त्रिशूल की लांचिंग शुरू हुई। चांदीपुर टेस्ट रेंज से हर दो घंटे बाद एक त्रिशूल मिसाइल लांच की जा रही थी। शाम ढलते-ढलते 12 त्रिशूल मिसाइलें दागी जा चुकी थीं, पर ये सीरियल मिसाइल लांच किसी टेक्नोलॉजी टेस्टिंग का हिस्सा नहीं थी।

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इसी टेस्ट फ्लाइट रेंज में 2000 किमी से ज्यादा दूरी तक मार करने वाली आईआरबीएम अग्नि-दो की लॉन्चिंग की तैयारियां भी तेज कर दी गई थीं। 10 मई 1998 को राजस्थान के रेगिस्तान में भारतीय वायुसेना ने अचानक युद्धाभ्यास शुरू कर दिया था। वायुसेना के फाइटर जेट और बॉम्बर्स ने इस दिन कई उड़ानें भरीं। मिग-29 विमानों ने कारपेट बॉम्बिंग कर हवाई अड्डों और रनवे को ध्वस्त करने का अभ्यास किया।

उधर, वायुसेना की युद्धाभ्यास रेंज से कुछ किमी दूर इंडियन आर्मी भी पिनाका रॉकेटों के परीक्षण में जुटी थी। इस प्रैक्टिस के करीब एक महीने पहले से 58वीं इंजीनियर्स रेजिमेंट की सक्रियता भी एकाएक बढ़ गई थी। अप्रैल 1998 की एक सुबह रेजिमेंट के जवान और भारी-भरकम डोजर राजस्थान के रेगिस्तान में एक अलग तरह के मिशन में जुटे थे।

डोजर्स और जवान एक कुएं को भर रहे थे। दो घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद उन्होंने कुएं को भरकर उसके ऊपर बालू का एक बड़ा सा ढेर तैयार कर दिया। फिर उसे लोहे की मोटी रस्सियों से घेरा और चलने से पहले उन्होंने बालू के उस टीले पर एक साथ कई स्मोक कैनिस्टर जला दिए।

थोड़ी देर में पूरा आसमान धुएं के बादल से ढंक गया था। 58वीं इंजीनियर्स रेजिमेंट के जवानों ने एक दूसरे को शाबाशी दी और फिर काफिला लौट चला। बेस कैंप लौटकर कमांडेंट गोपाल कौशिक ने अपनी डायरी में लिखा, “आज हमनें अच्छा अभ्यास किया…कल और करेंगे…।”

आखिर ये क्या हो रहा था…अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए से लेकर दुनिया के कई ताकतवर मुल्कों की इंटेलिजेंस एजेंसियों के मुख्यालय में इस सवाल पर माथापच्ची हो रही थी। सवाल इसलिए भी ज्यादा मुश्किल था क्योंकि दो महीने पहले ही दिल्ली की सत्ता बदली थी। केंद्र में दक्षिणपंथी पार्टी बीजेपी की अगुवाई में एक ऐसी सरकार थी, जिसकी रक्षा मामलों पर सख्त नीतियां किसी से छिपी नहीं थीं।

मई आते-आते 58वीं इंजीनियर्स रेजिमेंट के बेसकैंप में हलचल कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। दिन रात तैयारियां चल रही थीं। मिशन में जुटे अधिकारी हॉटलाइन के जरिए दिल्ली में मिलिट्री ऑपरेशन्स हेडक्वार्टर के संपर्क में थे। ऐसी ही एक बातचीत में हेडक्वार्टर से पूछा गया…इज सिएरा सर्विंग व्हिस्की इन द कैंटीन एट? – हैज द स्टोर एराइव्ड?

अधिकारियों का जवाब था, “यस सर।” थोड़ी देर बाद दिल्ली हेडक्वार्टर से दूसरा पैगाम था। हैज चार्ली गॉन टू द जू एंड इज ब्रैवो सेइंग प्रेयर…माइक इज ऑन। कोडवर्ड में हुई इस बात के दो दिनों बाद राजस्थान के रेगिस्तान में जो हुआ उसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया…। 11 मई 1998 की दोपहर तीन बजकर 45 मिनट पर जैसे धरती हिल गई।

पोखरण और आसपास के सैकड़ों किमी के दायरे में मौजूद लोगों को लगा जैसे भूकंप का झटका आया हो। कुछ घंटे बाद दुनिया ने जाना कि यह भूकंप नहीं भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण की धमक थी। भारत ने एक साथ तीन परमाणु परीक्षण किए थे, जिसमें से एक थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस यानी हाईड्रोजन बम भी शामिल था। उमस भरी उस शाम को जल्दीबाजी में बुलाए गई एक प्रेस कांफ्रेंस में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एलान किया कि भारत अब पूरी तरह से परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है।

दुनिया हैरान थी…अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों को भनक तक नहीं लगी और भारत ने पांच परमाणु विस्फोट कर डाले थे। अमेरिकी स्पाई सैटेलाइट जो पोखरण के रेगिस्तान में गिरी किसी रिस्टवॉच का वक्त तक पढ़ सकने की ताकत रखते हैं। परमाणु परीक्षण की तैयारियों का सुराग पाने में फ्लॉप साबित हुए थे। पोखरण-दो के नतीजे जितने उत्साहवर्धक थे, इस मिशन को अंजाम देने का सीक्रेट तरीका उतना ही रोचक था।

असल में 11 मई से दो दिन पहले चांदीपुर में त्रिशूल की सीरियल लांचिंग और भारतीय वायुसेना का युद्धाभ्यास अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और खुफिया सैटेलाइटों का ध्यान पोखरण से हटान की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा थी। 58वीं इंजीनियर्स रेजिमेंट के जवानों का डोजर के साथ अभ्यास और स्मोक कैनिस्टर का इस्तेमाल भी इसी स्ट्रैटजी का हिस्सा थी। 11 मई को परमाणु परीक्षण से पहले भारतीय फौज ने पोखरण के रेगिस्तान में ऐसे कई मॉक ड्रिल किए थे जिनका मकसद सिर्फ अमेरिकी सैटेलाइट और खुफिया एजेंसियों को भ्रमित करना था…और भारत की यह रणनीति कारगर भी साबित हुई।

असल में भारत इस बार 1995 की गलती को दोहराना नहीं चाहता था। जब अमेरिका को भारत के परमाणु परीक्षण की योजना की भनक पहले मिल गई थी। खुफिया सैटेलाइट से ली गई पोखरण की तस्वीरों ने अमेरिका को सुराग दे दे दिया था कि भारत दूसरे परमाणु परीक्षण की तैयारियों में जुटा हुआ है। नतीजा ये हुआ कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को परीक्षण की योजना को टालना पड़ गया था।

साल 1995 की गलतियों से सबक लेते हुए इस बार भारत हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा था। माना जाता है कि वाजपेयी ने 1996 में अपने 13 दिन की सरकार के दौरान ही एपीजे अब्दुल कलाम को यह संकेत दे दिया था कि वो भारत को परमाणु ताकत बनाने के पक्ष में है। दो साल बाद बीजेपी ज्यादा ताकत के साथ सत्ता में लौटी और शपथग्रहण के अगले ही दिन यानी 20 मार्च 1998 को वाजपेयी ने वैज्ञानिक सहालकार अब्दुल कलाम और एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चीफ आर चिदंबरम को एक मीटिंग के लिए बुलाया। इस मीटिंग में वाजपेयी ने उन्हें परमाणु परीक्षण के लिए तैयार रहने को कहा।

आगे अप्रैल में तारीख तय हुई 11 मई और इस दिन जो हुआ, वो इतिहास के पन्नों में सुनहरे लफ्जों में दर्ज है। परीक्षण के बाद अंतरार्ष्ट्रीय प्रतिंबधों का डर था, मगर वाजपेयी जानते थे कि जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान भी परीक्षण जरूर करेगा और ऐसा हुआ भी। इसके बाद शक्ति संतुलन में भारत को कुछ खास दिक्कत नहीं हुई।