भारत और अमेरिका के बीच दूरियां बढ़ती हैं, तो इसका असर चीन पर क्या पड़ेगा। यह सवाल कई लोगों के मन में है। हाल में चीन की मीडिया में छपी एक रपट में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारत के साथ रिश्तों में नजदीकी से जो लाभ हुए थे, अब दूसरे कार्यकाल में शुल्क के कारण उन पर असर पड़ सकता है। साथ ही इन बदलावों से कहीं न कहीं चीन को फायदा हो सकता है।

हालांकि, अमेरिका भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यातक देश है जबकि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बीते कुछ सालों में लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि भारत के लिए चीन क्या अमेरिका का विकल्प हो सकता है?

दोनों देशों के बीच लगातार हो रही बातचीत

कलिंगा इंस्टीट्यूट आफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज के संस्थापक प्रोफेसर चिंतामणि महापात्रा का मानना है कि भारत-चीन के बीच दूरियां कम होने के पीछे अमेरिका एकमात्र वजह नहीं है। महापात्रा कहते हैं, बीते कुछ महीनों से दोनों देशों के बीच लगातार बातचीत हो रही थी। चीन आर्थिक रूप से संपन्न है और भारत का अहम व्यापारिक साझेदार है।

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गलवान के बाद रिश्तों में आई तल्खी को दूर करने के लिए यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इस हफ्ते की शुरूआत में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने दिल्ली की दो दिवसीय यात्रा की इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत और चीन को एक दूसरे को प्रतिद्वंद्वी या खतरे के बजाय भागीदार के रूप में देखना चाहिए।

भारत के लिए चीन क्या अमेरिका का विकल्प हो सकता है। इस सवाल के जवाब में पात्रा ने कहा कि ऐसा कभी नहीं होगा। इसके पीछे की वजह बताते हुए प्रोफेसर महापात्रा कहते हैं, चीन और पाकिस्तान की दोस्ती में कोई दरार नहीं आएगी। इसलिए चीन कभी अमेरिका की जगह नहीं ले सकता है।

भारत-चीन के बीच दूरियां कम होने के पीछे अमेरिका एकमात्र वजह नहीं है। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती में कोई दरार नहीं आएगी। इसलिए चीन कभी अमेरिका की जगह नहीं ले सकता है। भारत ने जो ‘मल्टी एलाइनमेंट पालिसी’ अपनाई है, उसी के तहत वह चीन से अपने संबंध सही करने की कोशिश कर रहा है।

प्रो चिंतामणि महापात्रा, कलिंगा इंस्टीट्यूट आफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज के संस्थापक

कई मुद्दों पर अब भी सवाल

भारत और चीन के बीच लगातार बातचीत जारी है, लेकिन कई मुद्दों पर अब भी सवाल बने हुए हैं। दोनों देश तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी सीमा साझा करते हैं जो अब तक स्पष्ट नहीं है। इसी कारण एलएसी पर बीते कुछ सालों में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं। भारत लंबे समय से ‘सीमा पार आतंकवाद’ के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता रहा है, जबकि चीन पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक मदद देता है। यह भारत के लिए चिंता का बड़ा कारण है, हालांकि पाकिस्तान भारत के आरोपों को नकारता आया है।

इसी कड़ी में चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) भी विवाद का विषय है। पाकिस्तान में बन रहा सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से होकर गुजरता है, जिस पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है। साथ ही, भारत ने दलाई लामा और तिब्बती शरणार्थियों को शरण दी हुई है, जिसे चीन अपनी आंतरिक राजनीति में दखल मानता है। ऐसे में अब सबकी नजर इस बात पर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के बाद क्या दोनों देशों के रिश्तों को नई दिशा मिल पाएगी।

प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में चीन

अमेरिका और भारत के बीच मजबूत साझेदारी, खास तौर पर क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया) जैसे समूहों के जरिए चीन के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास करती है। क्वाड देश इसे औपचारिक सैन्य गठबंधन न बताकर इसे एक अनौपचारिक समूह के रूप में पेश करते हैं लेकिन चीन इसे अपने खिलाफ एक गठजोड़ के रूप में देखता है।

अगर भारत और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ता है, तो यह साझेदारी कमजोर पड़ सकती है, जिससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ सकता है। प्रोफेसर चिंतामणि महापात्रा के मुताबिक,अभी यह देखना होगा कि अमेरिका क्वाड को कितना समर्थन करेगा। जापान भी 15 फीसद अमेरिकी शुल्क से खुश नहीं है।

चीन हो या अमेरिका, दोनों के खिलाफ जन भावनाओं के स्तर पर यह देखना होगा कि लोग किसके खिलाफ ज्यादा हैं। चीन के साथ लंबे समय से सीमा विवाद है लेकिन ट्रंप और मोदी की दोस्ती के बावजूद एकतरफा शुल्क का लगना भारत में कई लोगों के लिए धक्का है। वहीं, दूसरी ओर भारत और चीन के बीच संबंधों में तेजी से नरमी महसूस की जा रही है।

प्रोफेसर अलका आचार्य, इंस्टीट्यूट आफ चाइनीज स्टडीज

भारत और चीन में करार

नई दिल्ली में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस व्यापक बातचीत के बाद एक संयुक्त दस्तावेज जारी किया गया। उस दस्तावेज में कहा गया कि दोनों देशों ने सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है। यह व्यापार तीन निर्धारित मार्गों लिपुलेख दर्रा, शिपकी ला दर्रा और नाथु ला दर्रा से होगा।

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