उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से दो हाई प्रोफाइल सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने अभिनेताओं को उतारा है। दोनों ही सीटों पर विरोधी इन्हें ‘बाहरी’ बता कर भाजपा के अभियान की हवा निकालने में लगे रहे।
इनमें से एक मथुरा सीट पर तीसरी बार भाजपा की तरफ से फिल्म एक्ट्रेस हेमा मालिनी चुनाव मैदान में हैं। वहीं, मेरठ सीट पर पार्टी ने ‘टीवी के राम’ कहे जाने वाले लोकप्रिय अभिनेता अरुण गोविल को टिकट दिया है। दोनों ही सेलिब्रिटी के खिलाफ विपक्षी दल उनके ‘बाहरी’ होने के टैग का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। विरोधी पार्टी और उम्मीदवार मतदाताओं से कह रहे हैं कि यह दोनों उस क्षेत्र से ताल्लुक नहीं रखते हैं।
सबसे पहले बात की जाये मथुरा लोकसभा क्षेत्र की तो ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी मथुरा से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं लेकिन इस बार बीजेपी उम्मीदवार को ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विरोधी इस मुकाबले को ‘ब्रजवासी और बाहरी/प्रवासी’ के बीच का बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
मथुरा में लगे ‘बंबई वाली सांसद’ के पोस्टर
हेमा मालिनी के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश धनगर ने पूरे निर्वाचन क्षेत्र में ‘नहीं चाहिए प्रवासी, अबकी बार बृजवासी’ के नारे के साथ होर्डिंग्स लगाए हैं। यहां तक कि घर-घर प्रचार के दौरान भी कांग्रेस कार्यकर्ता मुकाबले को भाजपा बनाम कांग्रेस के बजाय ब्रजवासी बनाम प्रवासी के बीच का बता रहे हैं। बसपा प्रत्याशी सुरेश सिंह ने भी हेमा मालिनी पर कटाक्ष करते हुए उन्हें ‘बंबई वाली सांसद’ बताते हुए पोस्टर लगाए हैं।
राजपूतों में भाजपा के खिलाफ गुस्सा
एक दूसरा फैक्टर जो हेमा मालिनी के लिए चुनौती पैदा कर सकता है वह है राजपूतों में भाजपा के खिलाफ गुस्सा। मथुरा में 4 लाख से अधिक राजपूत हैं जो जाटों के बाद लगभग दूसरा सबसे बड़ा समूह हैं। मथुरा में तीन लाख से अधिक आबादी ब्राह्मणों की है। यहां करीब दो लाख मुस्लिम और एक लाख दलित और कुछ अन्य जातियां भी हैं।
भाजपा जाटों को अपने साथ लाने के लिए राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ गठबंधन करके सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने की उम्मीद कर रही है। मथुरा में अनुमानित 45% आबादी जाट है लेकिन जाटों का एक वर्ग भी स्थानीय उम्मीदवार नहीं होने का मुद्दा उठाता रहा है। हेमा के समर्थक इसकी काट यह कह कर निकालते हैं कि वह ‘जाट बहू’ हैं। बता दें कि हेमा के पति और अभिनेता धर्मेंद्र जाट हैं।
हेमा मालिनी का “विकसित मथुरा, हेमा की गारंटी” का नारा
बसपा उम्मीदवार सुरेश सिंह, जो जाट समुदाय से हैं मतदाताओं को बार-बार याद दिला रहे हैं, “ध्यान रखो, अपना ही काम आएगा।” इस नैरेटिव के विरोध में हेमा मालिनी एक चार पेज का पैम्फलेट बांट रही हैं, जिसमें वह मथुरा को अपनी ‘कर्मभूमि’ बता रही हैं। पैम्फलेट में उनके दो कार्यकालों के दौरान किए गए विकास कार्यों पर प्रकाश डाला गया है। मौजूदा सांसद ने पीएम के “मोदी की गारंटी” नारे को दोहराते हुए “विकसित मथुरा, हेमा की गारंटी” का नारा भी दिया है। गौरतलब है कि भाजपा ने पिछली बार मथुरा लोकसभा सीट तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीती थी। दूसरे चरण के मतदान के दौरान हेमा मालिनी ने कहा, “पीएम मोदी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री अमित शाह ने देश के लिए बहुत कुछ किया है। हम निश्चित रूप से जीत रहे हैं; कोई समस्या नहीं है।”
भाजपा के मथुरा मीडिया प्रभारी श्याम चतुर्वेदी इसे प्रोपेगैंडा बताते हैं। उन्होंने Indian Express से कहा, “हेमा के विरोधी उनके बाहरी होने के मुद्दे को उठा रहे थे क्योंकि कोई अन्य मुद्दा नहीं है जिस पर भाजपा को निशाना बनाया जा सके। हेमा जी कई दशकों से मथुरा से जुड़ी हुई हैं। चूंकि यहां के सभी जन प्रतिनिधि भाजपा के हैं इसलिए वे जनता की समस्याओं का समाधान करते हैं।”

क्या चाहते हैं स्थानीय मतदाता?
मथुरा में हर कोई लेकिन इससे आश्वस्त नहीं है। इंडियन एक्स्प्रेस से बात करते हुए निर्वाचन क्षेत्र के हथौड़ा गांव के एक जाट प्रीतम सिंह ने कहा, “हेमा ने मथुरा में विकास कार्य करवाए हैं लेकिन ये बड़ी परियोजनाएं हैं जिनकी योजना उन्होंने खुद बनाई थी। वह स्थानीय समस्याओं के बारे में पूछने के लिए कभी भी गांवों में नहीं आईं।” उन्होंने कहा, “हिंदू चाहते हैं कि कृष्ण जन्मस्थान को अयोध्या के राम मंदिर जैसा भव्य आकार मिले, वह मंदिरों के मुद्दे पर वोट नहीं देंगे। भाजपा ऐसे मुद्दे केवल मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए उठाती है। मंदिर से मेरे परिवार का पेट नहीं भरेगा, महंगाई और बेरोज़गारी बड़ी समस्याएं हैं।”
उसी गांव के एक जाट किशन सिंह, जिन्होंने 2014 और 2019 में भाजपा को वोट दिया था, उन्होंने कहा कि वह इस बार किसी बाहरी को वोट नहीं देंगे, भाजपा किसी भी स्थानीय नेता को मौका क्यों नहीं देती जो उपलब्ध हो सकता है हम लोगो के लिए?
मथुरा लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम
पिछले लोकसभा चुनावों की बात करें तो मथुरा सीट पर हेमा मालिनी 2014 से जीतती आ रहीं हैं। 2019 के चुनाव में उन्हें 6.71 लाख वोट मिले थे जो कुल वोटों का 60.87% था। दूसरे स्थान पर आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह थे जिन्हें 3.77 लाख (34.26%) वोटों से संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस के महेश पाठक को पिछले चुनाव में महज 28, 084 वोट मिले थे। 2019 में सपा, बसपा और आरएलडी का गठबंधन था।
पार्टी | वोट शेयर (%) |
बीजेपी | 60.88 |
आरएलडी | 34.26 |
अन्य | 4.86 |
मथुरा लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम
लोकसभा चुनाव 2014 में हेमा मालिनी को 6.74 लाख (53.29%) वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर आरएलडी के जयंत चौधरी थे जिन्हें 2.43 लाख (22.62%) वोटों से संतोष करना पड़ा था। बीएसपी के विवेक निगम को चुनाव में महज 73,572 वोट मिले थे। 2014 में आरएलडी और कांग्रेस गठबंधन में थे।
पार्टी | वोट शेयर (%) |
बीजेपी | 53.36 |
बीएसपी | 16.12 |
अन्य | 7.87 |
आरएलडी | 22.65 |
मेरठ सीट पर अरुण गोविल को भी ‘बाहरी’ बता रहे विरोधी
अब बात करते हैं मेरठ लोकसभा सीट की, मेरठ में भाजपा, इंडिया गठबंधन और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। भाजपा ने लोकप्रिय टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ में भगवान राम का किरदार निभाने के लिए जाने जाने वाले अरुण गोविल को मेरठ से मैदान में उतारा है। अरुण गोविल राम मंदिर फैक्टर के साथ ही लोगों के बीच राम फैक्टर का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी उम्मीद कर रही है कि गोविल को दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिलेगा जबकि उच्च मतदान प्रतिशत और मोदी फैक्टर से भी पार्टी को फायदा हो सकता है। हालांकि, मेरठ में अरुण “बाहरी” टैग से लड़ रहे हैं।
मेरठ सहित 8 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान के दौरान भाजपा उम्मीदवार अरुण गोविल ने कहा, “मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि वे अपना वोट डालें। हमें अपने वोट अधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। मैं मेरठ में पैदा हुआ हूं और बड़ा हुआ हूं और यहां तक कि मेरी पढ़ाई यहीं हुई, तो मैं बाहरी कैसे हूं?”
कौन-कौन है मेरठ के चुनाव मैदान में?
अरुण के लिए मुख्य चुनौती समाजवादी पार्टी की सुनीता वर्मा हैं जो दलित हैं। बसपा ने देवव्रत त्यागी को मैदान में उतारा है जो जाति से ब्राह्मण हैं। हालांकि इस सीट पर किसी भी बड़ी पार्टी से मुस्लिम उम्मीदवार न होने से चुनाव दिलचस्प हो गया है। भाजपा उम्मीदवार की जीत काफी हद तक दलित वोटों के विभाजन और शहर के मतदान प्रतिशत पर निर्भर करती है।

राम-सीता-लक्ष्मण उतरे चुनाव प्रचार में
1980 के दशक की हिट रामायण टीवी श्रृंखला में सीता की भूमिका निभाने वाले दीपिका चिखलिया और लक्ष्मण की भूमिका निभाने वाले सुनील लाहिड़ी जैसे अभिनेताओं के साथ अरुण एक खुले वाहन में निर्वाचन क्षेत्र से गुजरते हैं, लोग उन्हें देखने के लिए कतार में खड़े हो जाते हैं और फूलों की बौछार करते हैं। उनके प्रचार के दौरान, “जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे” और “जय श्री राम” के नारे हवा में गूंजते हैं। काफिले में ऑटो-रिक्शा सहित वाहनों पर जो पोस्टर लगे हुए हैं,उन पर लिखा रहता है, “इस पर सवार, मोदी का परिवार।” पीएम मोदी और सीएम आदित्यनाथ दोनों ने भी मेरठ में प्रचार किया है।
पीएम मोदी और सीएम योगी के पास होगी रणनीति- अरुण गोविल
अरुण गोविल का मानना है कि अकेले भगवान ही उन्हें मेरठ में नहीं जिता पाएंगे, वह नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ पर भी भरोसा कर रहे हैं।अरुण गोविल ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास न केवल मेरठ बल्कि पश्चिम यूपी की प्रमुख सीटों के लिए मुझ पर विश्वास करते हुए कोई रणनीति तो होगी। यह रणनीति केवल रामजी या दो नेताओं को ही पता है। मैं तो बस अपनी जन्मभूमि मेरठ को अपनी कर्मभूमि बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं।”
भीड़ की उत्सुकता और उत्साह के बावजूद, अरुण गोविल को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहते हैं, “जिस निर्वाचन क्षेत्र में उनकी संख्या 36% है, वहां मुस्लिम उम्मीदवार की अनुपस्थिति ने अंतिम समय में धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावना को खत्म कर दिया है, जिससे 2009 से भाजपा को फायदा हुआ है। इसके अलावा, अरुण गोविल के पास ‘बाहरी’ होने का टैग है।

बाहरी नहीं हैं अरुण- भाजपा
वहीं, भाजपा के व्यापार प्रकोष्ठ के उत्तर प्रदेश प्रमुख विनीत शारदा इस आरोप को खारिज करते हैं कि गोविल एक बाहरी व्यक्ति हैं। उन्होंने इंडियन एक्स्प्रेस से कहा, “1951 के बाद से 16 आम चुनावों में, मेरठ ने 10 बार एक ‘बाहरी व्यक्ति’ को चुना है, जिसमें शाह नवाज़ खान, मोहसिना किदवई और अवतार सिंह भड़ाना शामिल हैं। गोविल इस धरती के पुत्र हैं क्योंकि उनका जन्म यहीं हुआ और उन्होंने यहीं पढ़ाई की। वह बाहरी व्यक्ति क्यों है?”
मेरठ लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम
2019 में, भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा के हाजी मोहम्मद याकूब के खिलाफ 5,000 से अधिक वोटों के मामूली अंतर से मेरठ सीट जीती थी। अग्रवाल के लिए यह 2014 की तुलना में भारी गिरावट थी, जब उन्होंने उसी सीट पर 2.3 लाख वोटों से जीत हासिल की थी। 2019 के चुनाव में राजेंद्र को 5.86 लाख वोट मिले थे जो कुल वोटों का 48.19% था। दूसरे स्थान पर बीएसपी के हाजी याक़ूब थे जिन्हें 5.81 लाख (47.80%) वोटों से संतोष करना पड़ा था।
मेरठ लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम
लोकसभा चुनाव 2014 में राजेंद्र अग्रवाल को 5.32 लाख वोट मिले थे जो कुल वोटों का 47.86% था। दूसरे स्थान पर बीएसपी के मोहम्मद शाहिद थे जिन्हें 3 लाख (27%) वोटों से संतोष करना पड़ा था। सपा के शाहिद मंजूर को 2.11 लाख वोट और तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था।
