लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं और उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। सपा और कांग्रेस गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीती हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीत पायी है। दूसरी ओर बसपा को मात देते हुए युवा दलित नेता चन्द्रशेखर आज़ाद ने पश्चिमी यूपी के नगीना अनुसूचित जाति-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से 1.51 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की है।

चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपनी पार्टी आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के बैनर तले चुनाव लड़ा और 51.19% वोट हासिल करके भाजपा के ओम कुमार को हराया। नगीना सीट पर बसपा के सुरेंद्र पाल सिंह को केवल 1.33% वोट मिले। 2019 में यहां से बीएसपी के गिरीश चंद्र ने बीजेपी के यशवंत सिंह को 1.66 लाख वोटों के अंतर से हराया था।

दलितों के नेता के रूप में उभरे चंद्रशेखर

आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “लोकसभा में अब बसपा का कोई सदस्य नहीं है। आजाद ही सदन में दलितों और मुसलमानों के मुद्दे उठाएंगे। इससे उन्हें दलितों के नेता के रूप में उभरने में मदद मिलेगी और निश्चित रूप से वह मायावती के विकल्प के रूप में उभरेंगे। इससे बसपा और कमजोर होगी।”

नगीना से आज़ाद की जीत दो और कारणों से महत्वपूर्ण है। इस लोकसभा क्षेत्र को पाने की उनकी जिद के कारण ही इस बार सपा और सपा के बीच गठबंधन की बात नहीं बन पाई थी। जिसके बाद, सपा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और आजाद ने नगीना में घर-घर अभियान चलाया।

कई महीनों तक जेल में रहे चंद्रशेखर

मूल रूप से सहारनपुर जिले के छुटमलपुर क्षेत्र के रहने वाले चंद्रशेखर आज़ाद ने दलितों और अन्य हाशिए के वर्गों के विकास के लिए लड़ने के लिए 2015 में भीम आर्मी का गठन किया। वह पहली बार भीम आर्मी के प्रमुख के रूप में सुर्खियों में आए। 2017 में उन्हें सहारनपुर जिले के शब्बीरपुर गांव में ठाकुर समुदाय के साथ झड़प के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार द्वारा उनके खिलाफ सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लागू करने के बाद गिरफ्तार किए गए चंद्रशेखर ने जेल में लंबा समय बिताया। अधिनियम रद्द होने के बाद सितंबर 2018 में उन्हें रिहा किया गया था।

राजनीति में चंद्रशेखर के कदम

राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश में विस्तार करने के बाद, आज़ाद ने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने पहले बसपा में शामिल होने के लिए प्रस्ताव रखा, लेकिन जब मायावती ने उनके हाथ मिलाने की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया, तो आज़ाद ने 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की।

हालांकि, उनके बीच गठबंधन पर बातचीत विफल रही और आज़ाद ने घोषणा की कि वह भाजपा उम्मीदवार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने अखिलेश पर उनका अपमान करने और अनुसूचित जाति को दरकिनार करने का भी आरोप लगाया। हालाँकि, 2022 के चुनाव में आज़ाद गोरखपुर से बुरी तरह हार गए और चौथे स्थान पर रहे।

बीएसपी का मेन वोट बैंक हैं दलित

दलित, ज्यादातर जाटव बीएसपी का मुख्य समर्थन माने जाते हैं। नगीना में इनकी लगभग 20% आबादी है और यहां मुस्लिम लगभग 40% हैं। बाकी जातियों में ठाकुर, जाट, चौहान राजपूत, त्यागी और बनिया शामिल हैं। हालांकि, पूरे राज्य में मुसलमानों को सपा-कांग्रेस गठबंधन के पीछे लामबंद होते देखा जा रहा है, जबकि बसपा का वोट बैंक सिमटता जा रहा है। आज़ाद को दोनों से वोट मिलते दिख रहे हैं।

बसपा ने लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती

पिछले तीन दशकों में यह दूसरी बार है जब बसपा ने लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती है। 2014 में भी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इससे पहले बसपा ने 2009 के चुनाव में 21 सीटें, 2004 में 19 सीटें, 1999 में 14 सीटें, 1998 में पांच सीटें और 1996 में 11 सीटें जीती थीं।

यूपी में किसे मिली कितनी सीटें

पार्टी सीट
बीजेपी 33
सपा 37
कांग्रेस 6
आरएलडी 2
आजाद समाज पार्टी (कांशीराम)1
अपना दल (सोनेलाल)1

एक बार फिर मुस्लिम वोट पाने में नाकाम रही बसपा

यह दूसरी बार है जब मुसलमानों और दलितों के वोट बैंक समीकरण बनाने की बसपा की कोशिश विफल रही है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उनमें से एक भी जीतने में कामयाब नहीं हुआ था। पार्टी ने उस चुनाव में एक विधानसभा सीट जीती थी।

इस लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने एक बार फिर अपना समर्थन आधार बढ़ाने के लिए यूपी में सबसे अधिक 35 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। राज्य में जहां मुसलमानों की आबादी करीब 20 फीसदी है, वहीं दलित 21 फीसदी हैं। हालाँकि, इसके कारण समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के विपक्षी गठबंधन ने बसपा पर सत्तारूढ़ भाजपा की ‘बी-टीम’ होने का आरोप लगाया क्योंकि उन्हें आशंका थी कि मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर मायावती इंडिया गठबंधन के वोट शेयर में सेंध लगाएंगी जिससे बीजेपी को फायदा हुआ।

हालांकि, रुझानों से साफ पता चला कि पार्टी फिर से मुस्लिम वोट हासिल करने में विफल रही और दलित वोटों का एक वर्ग भी बसपा से दूर चला गया लगता है। बसपा के लगभग सभी मुस्लिम उम्मीदवार अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रहे।

बसपा को झटका

पिछले दो महीनों में बसपा प्रमुख मायावती ने देश भर में 40 से अधिक रैलियों को संबोधित किया, जिसमें यूपी में लगभग 30 रैलियां शामिल हैं। उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद, जिन्हें उन्होंने पार्टी में अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था को भी प्रचार में लगाया । लेकिन पार्टी के अभियान को पिछले महीने तब झटका लगा जब मायावती ने आकाश को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक और अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के पद से हटा दिया.